आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी का सोमवार को निधन हो गया। स्वामी को पिछले साल 8 अक्टूबर को गिरफ्तार किया गया था और अगले दिन मुंबई ले जाया गया, लेकिन केंद्रीय एजेंसी ने पूछताछ के लिए उनकी हिरासत की मांग नहीं की थी। अगले दिन, 9 अक्टूबर को  एनआईए अदालत ने जहां स्वामी को पेश किया गया था उन्हें तलोजा सेंट्रल जेल में न्यायिक हिरासत में भेज दिया। स्वामी 28 मई तक वहीं रहे हैं जिसके बाद उन्हें एक निजी अस्पताल में स्थानांतरित किया गया, जहां सोमवार को उनकी मृत्यु हो गई।

स्वामी के वकील मिहिर देसाई ने सोमवार को बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष सवाल उठाया “उनकी गिरफ्तारी की क्या आवश्यकता थी क्योंकि एक दिन की हिरासत नहीं मांगी गई थी?” पूरे मामले की जांच की मांग करते हुए देसाई ने कहा कि उन्हें अदालत या अस्पताल के खिलाफ कोई शिकायत नहीं है, लेकिन एनआईए और जेल अधिकारियों को लेकर जांच जरूर होनी चाहिए। बताते चलें कि पहली बार एल्गर परिषद मामले के संबंध में जांच के लिए पुणे पुलिस  2018 और 2019 में रांची उनके घर पहुंची थी।


होली फैमिली हॉस्पिटल जहां स्टेन स्वामी का इलाज चल रहा था (एक्सप्रेस फोटो: गणेश शिरसेकर)

जनवरी 2020 में एनआईए द्वारा मामले की जिम्मेदारी लेने के बाद, जुलाई-अगस्त में पांच दिनों में उनसे लगभग 15 घंटे तक पूछताछ की गई थी। एनआईए ने उन्हें पिछले साल अक्टूबर में फिर से मुंबई कार्यालय में तलब किया था। 9 अक्टूबर को, जिस दिन उन्हें अदालत के सामने पेश किया गया उस दिन एनआईए ने उनके और सात अन्य के खिलाफ आरोप पत्र दायर किया, जिसमें उन पर प्रतिबंधित संगठन सीपीआई (माओवादी) के सदस्य होने और इसकी गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए काम करने का आरोप लगाया गया था।

हालांकि, एजेंसी ने आगे की पूछताछ के लिए स्वामी की हिरासत की मांग नहीं की। लेकिन लगातार उनके जमानत का विरोध किया। जब स्वामी की तरफ से कोविड महामारी और अपनी उम्र के आधार पर अंतरिम जमानत की मांग की गयी तो एनआईए की तरफ से इसका अदालत में विरोध किया गया। स्वामी ने उसके खिलाफ दायर चार्जशीट के आधार पर नवंबर में फिर से जमानत के लिए अर्जी दी।

सीपीआई (माओवादी) के साथ उनके कथित जुड़ाव के ‘सबूत’ के रूप में, एनआईए ने अदालत को बताया कि स्वामी और अन्य सह-आरोपियों के बीच ईमेल का आदान-प्रदान हुआ था साथ ही यह भी दावा किया गया कि 2019 में, उन्होंने कोलकाता में एक बैठक में भाग लिया था। जो एल्गार परिषद मामले में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के विरोध में आयोजित किया गया था।

आदिवासियों के लिए काम करने वाले रांची स्थित संगठन बगैचा के संस्थापक स्वामी ने कहा था कि उन्हें सरकार की तरफ से निशाना बनाया जा रहा है। क्योंकि वो आदिवासी युवाओं के माओवादी के नाम पर होने वाले अवैध गिरफ्तारी का विरोध करते रहे हैं। बताते चलें कि अदालत ने इस साल मार्च में स्वामी की जमानत याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि उनकी वृद्धावस्था और बीमारी सहित राहत मांगने के उनके आधार “समुदाय के सामूहिक हित से बढ़कर नहीं है”।

विशेष अदालत के आदेशों के खिलाफ स्वामी की ओर से बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष दायर अपील पर सुनवाई लंबित थी, एनआईए ने उनकी मृत्यु तक चिकित्सा आधार सहित अन्य आधारों पर उनके द्वारा मांगी गयी जमानत का विरोध किया।