दिल्ली के पाटियाला हाउस स्थित निचली अदालत एक बार फिर अहम कार्यवाही का गवाह बना। नेशनल हेराल्ड मामले में देश के सबसे पुराने राजनीतिक घराने व पार्टी के प्रमुख आरोपी के तौर पर तलब थे। जज की कुर्सी पर मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट लवलीन थे। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री तय करने वाले लोग मुलजिम के खड़े होने की जगह खड़े थे। अमेरिकी पत्रिका फोर्ब्स की सूचि में विश्व की सबसे ताकतवर महिलाओं में सुमार कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गंधी व उनके बेटे राहुल गांधी समेत सभी आरोपी, मुलजिम के लिए आरक्षित जगह पर करीब 20 मिनट तक चली कार्यवाही के दौरान खड़े रहे। केवल मोती लाल बोरा को अस्वस्थता के चलते कुर्सी पर बैठने की ईजाजत अदालत ने दी। यह अलग बात रही कि जो तनाव सोनिया राहुल के मुख पर अदालत में दाखिल होते समय थी वह सुनवाई को महज 12 मिनट बाद मुस्कान में बदल चुकी थी। कहना न होगा तबतक जज ने जमानत की अर्जी मंजूर कर ली थी।
10 जनपथ पर सर्व सुविधायुक्त अहाते में रहने वाला मौजूदा गांधी परिवार को शायद पहली बार निचली अदालत में इस तरह पेश होने पर विवश होना पड़ा। यह सब दिल्ली हाई कोर्ट के अड़ जाने से संभव हो पाया। हाई कोर्ट ने सोनिया-राहुल को पेश होने की हिदायत देकर सविधान के उस उपबंद को स्थापित किया कि कानून से ऊपर कोई नहीं है। देश के सभी नागरिकों के लिए एक कानून व एक ही न्यायिक प्रक्रिया है। हाई कोर्ट ने सात दिसंबर को शिकायत रद्द करने और हाजिर होने के आदेश को रोकने की इनकी याचिका खारिज कर दी थी और उन्हें आखिरकार हाजिर होना पड़ा। देश की चोटी के वकीलों के तर्क धरे रह गए। वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी, हरिन रावल और रमेश गुप्ता,कपिल सिब्बल,अभिषेक मनु सिंघवी समेत कांग्रेस के अनेक वकीलों ने अपने तर्क दिए। दोनों नेता अपनी पार्टी के निष्क्रिय हो चुके अखबार नेशनल हेराल्ड को एक नई कंपनी के रूप में सृजित किए जाने को लेकर उसके शेयरों के हस्तांतरण के बारे में भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी की ओर से दायर एक निजी आपराधिक मामला का सामना कर रहे हैं। आरोपी 2010 में बनाई गई कंपनी यंग इंडिया लि के निदेशक हैं और इसने ही नेशनल हेराल्ड के प्रकाशक एसोसिएटेड जर्नल्स लि के ‘कर्ज’ ले लिए थे।
चुंकि सोनिया व राहुल गांधी दोनों विशेष सुरक्षा ग्रूप (एसपीजी) सुरक्षा प्राप्त नेता हैं, इसलिए इनकी पेशी होने से पहले सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे। पटियाला हाउस कोर्ट के बाहर 700 से ज्यादा सुरक्षाकर्मी तैनात थे। सुरक्षाकमिर्यों में बीएसएफ, आरएएफ, डीपी, आईबी और एसपीजी के जवान शामिल थे। कोर्ट के अंदर महज 25 लोगों को जाने की इजाजत मिली थी। इनमें सात आरोपी, तीन एसपीजी जवान, सुब्रमण्यम स्वामी के साथ नौ लोग और अन्य वकील शामिल थे। अदालत में सबसे पहले अहमद पटेल आए। फिर वकीलों की फौज और तब सोनिया व राहुल की एंट्री हुई। इसके बाद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अदालत परिसर पहुंचे।
बता दें कि अदालत परिसर को एक बजे के बाद सील कर दिया गया। मीडिया को एक तय क्षेत्र में रहने के निर्देश थे। पुख्ता चाक चौबंदी की कड़ी में पाटियाला हाउस ईलाके में करीब दो दर्जन अतिरिक्त सीसीटीवी कैमरे लगाए गए गए थे। शुक्रवार तड़के ही एसपीजी, दिल्ली पुलिस और खुफिया ब्यूरो (आईबी) के वरिष्ठ अधिकारियों ने डेरा डाल दिया था और अदालत परिसर की सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा की। सुरक्षाकर्मियों से इंतजाम के बारे में विस्तार से चर्चा की। इसके अलावा सुरक्षा अधिकारियों ने पटियाला हाउस अदालत के जिला जज के साथ भी बैठक कर रोजाना आने वाले वकील व वादी की जानकारी ली। अदालत परिसर के अंदर दुकानें बंद कर दी गईं थी। अदालत के गेट नंबर दो और चार के समीप के इलाके को घेरे में ले लिया गया और वहां बहुस्तरीय सुरक्षा व्यवस्था की गई थी। मजबूत सुरक्षा बंदिशों के कारण यहां वाहनों की रफ्तार धीमी रही। अदालत के सामने के घटनाक्रम को देखने के लिए सड़क पर वाहन रोकने वालों को संभालने में भी पुलिस को मशक्कत करनी पड़ी।
भारी सख्या में कांग्रेसी कार्यकर्ता यहां सबेरे से ही मौजूद थे। कार्यकर्ताओं ने अपने शीर्ष नेतृत्व के प्रति अपना प्यार और समर्थन जताया। देश के दूसरे हिस्सों में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी के पक्ष में प्रदर्शन किया। साथ ही मोदी सरकार के प्रति गुस्सा और नफरत का इजहार किया। भीड़ यू ही नहीं जुटी थी। इस मामले में सोनिया गांधी और राहुल गांधी दो दिन पहले यही संकेत दे रहे थे कि वो जमानत नहीं लेंगे बल्कि जेल जाने को तैयार हैं। उनके सिपहसलाकार शायद इस लड़ाई को राजनीतिक लड़ाई में बदलकर मोदी सरकार को कटघरे में लाना चाह रहे थे। लेकिन आखिरी वक्त में पार्टी के खेवनहारों ने फैसला बदला। उनको जेल जाने से तकदीर न खुलती नजर आई। मामले में यू टर्न लेकर जमानत मांग ली गई। उन्हें लगा कि यह समय इंदिरा गांधी वाला नहीं है। सनद रहे कि 1977 जनता पार्टी की सरकार आने के बाद इंदिरा गांधी को गिरफ्तार किया गया था तो 1980 में जनता पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया था। यहां फर्क था कि मामला धन के गबन के निजी आरोप से जुड़ा है न कि जनहित के मुद्दे से। सोनिया-राहुल ने तिहाड़ जेल की जगह 10-जनपथ लैटना ही मुनासिब समझा।