कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल गांधी की अगुआई में पार्टी सांसदों और नेताओं ने देश में बढ़ती असहनशीलता के खिलाफ राष्ट्रपति भवन तक मार्च निकाला। इसके साथ ही कांग्रेस ने मोदी सरकार पर सामाजिक और सांप्रदायिक तनाव पैदा करने के लिए विनाशकारी अभियान चलाने का आरोप लगाया। संसद से राष्ट्रपति भवन तक मार्च का नेतृत्व करने के बाद सोनिया ने राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को ज्ञापन सौंप कर सामाजिक विभाजन को बढ़ावा देने वाली घटनाओं को रोकने में उनके हस्तक्षेप की मांग की। इस मौके पर उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर चुप्पी साध कर नफरत फैलाने वाली घटनाओं को ‘समर्थन’ देने का आरोप लगाया।

संसद से रायसीना हिल तक एक किलोमीटर के मार्च में सौ से ज्यादा पार्टी नेताओं के प्रतिनिधिमंडल की अगुआई करने के बाद सोनिया गांधी ने राष्ट्रपति को एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें देश में ‘डर, असहिष्णुता और दबाव के माहौल’ पर चिंता जताई गई और इस माहौल के लिए सत्ता प्रतिष्ठान के कुछ वर्गों को जिम्मेदार ठहराया गया।

कांग्रेस अध्यक्ष ने राष्ट्रपति से मुलाकात के बाद कहा, ‘मोदीजी से जुड़े कुछ संगठन, कुछ लोग या सरकार में शामिल कुछ लोग भारत की समग्र संस्कृति और बुनियादी मूल्यों पर हमला कर रहे हैं। इससे असहनशीलता पैदा हो रही है।’ उन्होंने कहा कि देश में जो भी घटनाएं हो रहीं हैं, वह एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा हैं जो जानबूझ कर हमारे समाज को बांटने के लिए अपनाई जा रही है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस अपनी पूरी शक्ति के साथ इन ताकतों से लड़ेगी।

सोनिया के साथ इस दौरान पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, संसद में पार्टी के नेता मल्लिकार्जुन खरगे और गुलाम नबी आजाद के साथ ही राहुल गांधी और एके एंटनी भी थे। कांग्रेस ने दादरी कांड, गोमांस विवाद और ऐसी अन्य घटनाओं से देश में बन रहे असहिष्णुता के माहौल पर लेखकों, कलाकारों और वैज्ञानिकों के विरोध प्रदर्शन के बीच यह मार्च निकाला।

राहुल गांधी ने भी प्रधानमंत्री पर चुप्पी साधने का आरोप लगाते हुए कहा कि उन्हें इन घटनाओं पर बोलना जरूरी नहीं लगता जबकि राष्ट्रपति और आरबीआइ के गवर्नर अपनी चिंता जाहिर कर चुके हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री का मानना है कि देश में कुछ नहीं हो रहा और उन्हें लगता है कि सब कुछ ठीक है। यह समस्या की जड़ है। ये लोग असहनशीलता में भरोसा रखते हैं। वैचारिक रूप से वे सहनशील नहीं हैं।’ उन्होंने कहा, ‘यह केवल कांगे्रस पार्टी का मामला नहीं है। यह प्रत्येक भारतीय की समस्या है और प्रधानमंत्री इसमें भरोसा नहीं रखते।’

असनशीलता के माहौल के खिलाफ प्रदर्शन को बनावटी विरोध बताए जाने के वित्त मंत्री अरुण जेटली के बयानों के बारे में पूछे जाने पर कांग्रेस उपाध्यक्ष ने कहा, ‘हां, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के लोग इन घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। वित्त मंत्री को लगता है कि कुछ नहीं हो रहा। उन्हें गांवों में जाकर देखना चाहिए कि क्या हो रहा है।’

राहुल ने केंद्रीय मंत्री वीके सिंह पर भी हमला करते हुए कहा कि जब दो दलित बच्चों की जलने से मौत हो गई, तो उन्होंने कुत्तों से तुलना की। उन्हें कैबिनेट में नहीं होना चाहिए। कांग्रेस उपाध्यक्ष ने कहा, ‘बड़ी संख्या में लोगों ने साफ कर दिया है कि वे इस देश को देखने के इस सरकार के नजरिये से नाखुश हैं।’ हालांकि राहुल पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में भड़के सिख विरोधी दंगों पर सवाल को टाल गए।

कांग्रेस ने ज्ञापन में राष्ट्रपति से कहा है- ‘भड़काऊ बयानों और गतिविधियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। विभिन्न वर्गों के प्रतिष्ठित पुरुषों और महिलाओं ने बढ़ती असहिष्णुता के खिलाफ अपनी आवाज उठाई लेकिन वरिष्ठ मंत्रियों ने असंयमित तरीके से इन गतिविधियों को छोटा करके दिखाया।’ पार्टी ने मोदी पर निशाना साधते हुए कहा, ‘प्रधानमंत्री की चुप्पी और निष्क्रियता से केवल यह धारणा बनी है कि जो कुछ हो रहा है, वह उसे ऐसे ही चलने दे रहे हैं।’

कांग्रेस प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति से कहा कि देश में सामाजिक और सांप्रदायिक तनाव पैदा करने के लिए विनाशकारी अभियान चलाया जा रहा है। समाज का ध्रुवीकरण करने और सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ने के उद्देश्य से ऐसा किया जा रहा है।

ज्ञापन के अनुसार, ‘हम राष्ट्रपति से विनम्रतापूर्वक अनुरोध करना चाहेंगे कि वे अपने पद के राजनीतिक और न्यायसंगत अधिकारों का प्रयोग कर प्रधानमंत्री को समझाएं कि यह अस्वीकार्य है।’ पार्टी ने कहा, ‘भारत को अनुदार लोकतंत्र के रास्ते पर बढ़ाया जा रहा है। यह प्रत्येक नागरिक और सभी भारतीयों के लिए गहरी चिंता की बात है।’

विपक्षी दल ने असहनशीलता, कट्टरता और पूर्वाग्रह वाली ताकतों के खिलाफ कड़ाई से और स्पष्ट तरीके से बात रखने के लिए राष्ट्रपति का शुक्रिया अदा किया, वहीं पार्टी के ज्ञापन में इस बात पर खेद प्रकट किया गया कि प्रधानमंत्री ने ऐसा करना उचित नहीं समझा। ज्ञापन के मुताबिक, ‘बुरी स्थिति है कि उनका मंत्रिपरिषद लगातार ऐसे लोगों को आश्रय दे रहा है जो नफरत और विभाजन फैलाने में जमकर योगदान दे रहे हैं।’

ज्ञापन में कहा गया, ‘कांग्रेस सत्ता में बैठे लोगों के कुछ वर्गों द्वारा जानबूझ कर बनाए जा रहे डर, असहनशीलता और डराने-धमकाने के माहौल पर गहरी चिंता प्रकट करती है।’

प्रतिनिधिमंडल में कैप्टन अमरिंदर सिंह, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार, हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह, अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री नबाम तुकी, पूर्व मुख्यमंत्रियों में अशोक गहलोत, भूपेंद्र सिंह हुड्डा और पृथ्वीराज चव्हाण, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्षों में अशोक तंवर, अशोक चव्हाण, ईवीकेएस इलनगोवन, प्रताप सिंह बाजवा और सचिन पायलट आदि शामिल थे।

दूसरी ओर, अमरिंदर सिंह लंबे समय बाद पार्टी के किसी कार्यक्रम में शामिल हुए। इस तरह से उन्होंने कुछ दिनों तक नाराजगी के बाद पार्टी आलाकमान के साथ अपने संबंधों में फिर से गरमाहट आने का संकेत दिया। पुलिस ने मार्च के मार्ग में बैरिकेड लगाए थे और बड़ी संख्या में पुलिसकर्मियों को तैनात किया था। कई कांग्रेस नेता राष्ट्रपति भवन तक मार्च में शामिल नहीं हो सके, क्योंकि पुलिस ने केवल छोटे प्रतिनिधिमंडल को जाने कस्र अनुमति दी थी।

कार्रवाई न होने पर सवाल
कांग्रेस ने अपने ज्ञापन में राष्ट्रपति से कहा है- ‘भड़काऊ बयानों और गतिविधियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। विभिन्न वर्गों के प्रतिष्ठित पुरुषों और महिलाओं ने बढ़ती असहिष्णुता के खिलाफ अपनी आवाज उठाई लेकिन मंत्रियों ने असंयमित तरीके से इन गतिविधियों को छोटा करके दिखाया।

मगर प्रधानमंत्री चुप हैं:
देश में जो कुछ हो रहा है, वह हर नागरिक के लिए गहरी चिंता का विषय है और राष्ट्रपति ने इस पर अपने विचार साफ कर दिए हैं। सोनिया ने कहा, ‘लेकिन प्रधानमंत्री चुप हैं जिससे साफ है कि वे इन सभी घटनाओं का समर्थन करते हैं। (सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष)

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के लोग इन घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं। वित्त मंत्री को लगता है कि कुछ नहीं हो रहा। उन्हें गांवों में जाकर देखना चाहिए कि क्या हो रहा है।’  (राहुल गांधी, कांग्रेस उपाध्यक्ष)

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