Durga Puja: कोलकाता का सोनागाछी इलाका भारत का सबसे बड़ा रेडलाइट एरिया माना जाता है। सोनागाछी का अर्थ ‘सोने का पेड़’ है, लेकिन इस इलाके और यहां के लोगों को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता है। कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में लेडी डॉक्टर के साथ हुए कथित गैंगरेप और हत्या के मामले को लेकर पूरा पश्चिम बंगाल अभी भी गुस्से में है और यह गुस्सा सोनागाछी में भी दिख रहा है। दुर्गा पूजा के दौरान यहां इसको लेकर विरोध के लिए लोगों ने इलाके की मिट्टी का इस्तेमाल किया है।

सोनागाछी के इन लोगों ने अपने पड़ोस की मिट्टी का इस्तेमाल पिछले कुछ वर्षों में दुर्गा पूजा के दौरान विरोध जताने के लिए किया है। दरअसल इस मिट्टी का इस्तेमाल दुर्गा पूजा के लिए माता की मूर्तियों के निर्माण के लिए प्रयोग में आने वाली मिट्टी में किया जाता है। इसे ही अब सोनागाछी के लोगों ने आरजी कर मेडिकल कॉलेज कांड के विरोध को लेकर किया है।

सोनागाछी की मिट्टी को बनाया विरोध का जरिया

इस मामले को लेकर डीएमएससी सचिव बिशाखा लस्कर ने कहा कि कोलकाता कांड के आरोपियों को जब तक सज़ा नहीं मिल जाती और बलात्कार को सामान्य मानने वाली व्यवस्था को पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज करने से परे नहीं बदला जाता, तब तक मूर्ति निर्माताओं को मिट्टी नहीं दी जाएगी। उन्होंने इस मामले को लेकर कहा कि बहुत से लोग यह नहीं जानते कि हम पिछले सात सालों से इस मिट्टी की रस्म को अपने विरोध का टूल बना चुके हैं। इसकी वजह यह है कि यहां के लोगों और महिलाओं को समाज में हाशिए पर ले जाया गया है।

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उन्होंने कहा कि पूजा से पहले हमें सम्मान देने का कोई मतलब नहीं है, जब दो साल पहले सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया था कि सेक्स वर्क को किसी अन्य प्रोफेशन की तरह ही मान्यता दी जाएगी लेकिन फिर भी हमें बहिष्कृत किया गया। उन्होंने कहा कि हम सम्मान और संवैधानिक अधिकारों, श्रम कानूनों, स्वास्थ्य सेवा और लाभों के हकदार हैं। हम वर्क स्पेस पर महिलाओं की सुरक्षा के लिए संघर्ष कर रहे हैं, चाहे वह हमारी हो या पीड़ित की।

तिरस्कार के बाद खुद की दुर्गा पूजा की शुरुआत

लस्कर और अन्य सेक्स वर्कर्स ने बरसों के तिरस्कार के बाद खुद ही दुर्गा पूजा करने का फैसला किया। उन्होंने कहा कि वर्षों से हमारे पड़ोस के आसपास की सभी पूजा समितियां हमारे दान पर फल-फूल रही हैं। यहां तक ​​कि 2000 के दशक की शुरुआत में भी यहां की प्रत्येक महिला 500 रुपये से 1,000 रुपये से कम कुछ नहीं देती थी। फिर भी हमें पंडालों में प्रवेश करने या भोग लगाने की अनुमति नहीं थी। लोग हमें ऐसे घूरते थे जैसे हम एलियन हों।

उन्होंने कहा कि हमारे बच्चों को भी बिना उनकी कोई गलती के भगा दिया जाता था। इसीलिए 2013 में हमने निवासियों से दान के बिना अपनी पहली दुर्गा पूजा करने का फैसला किया। हमारा पंडाल रातों-रात उखाड़ दिया गया, हमारे बैनर फाड़ दिए गए, हमें लाउडस्पीकर लगाने की अनुमति नहीं दी गई। इसके बावजूद हम अब दुर्गा पूजा मनाते हैं। उन्होंने कहा कि अब उनके सांस्कृतिक प्रदर्शन का कई लोगों को बेसब्री से इंतजार रहता है क्योंकि वे हमेशा कोई न कोई संदेश लेकर आते हैं। इस साल, यह जलवायु परिवर्तन के बारे में है।

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कई शहरों के रेड लाइट एरिया में हो रही दुर्गा पूजा

लस्कर का कहना है कि उन्होंने इस दुर्गा पूजा को ज्यादा सहज बनाया है। उन्होंने कहा कि हम अपना भोग और खीर खुद बनाते हैं। कोई भी राहगीर भूखा नहीं रहता क्योंकि हम अपनी रसोई रात 10 बजे तक खुली रखते हैं और हम शहर के हर रेड-लाइट जिले में भोग भेजने के लिए डिलीवरी बॉय रखते हैं। अब बंगाल के अन्य शहरों दुर्गापुर, आसनसोल, बिष्णुपुर और सिलीगुड़ी में सेक्स वर्कर्स खुद दुर्गा पूजा का आयोजन करती हैं। इस साल, हम एक नर्सरी की मदद से पौधे वितरित करेंगे, जिससे लोग बालकनी में लगा सकें।

लस्कर ने बताया है कि जिन्होंने वंचितों और बुजुर्गों को राखी बांधने, होली मनाने और यहां तक ​​कि सिंदूर खेला को उत्साह के साथ मनाने जैसे कई अभियानों का नेतृत्व किया है, वह नारीत्व का है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे अविवाहित हैं, विवाहित हैं या विधवा वह पूछती हैं, लेकिन सवाल यह है कि हम इस शहर में कहां जाएंगे, इसलिए यहां ही दुर्गा पूजा का अयोजन होता है।

मूर्ति निर्माण में मिट्टी की भूमिका

संस्कृत विद्वान और पुजारी नंदिनी भौमिक ने परंपरा और व्याख्याओं के पितृसत्तात्मक नियंत्रण को चुनौती दी है। उनका कहना है कि प्रारंभिक वैदिक युग में, प्रकृति को मातृ देवी के रूप में पूजा जाता था। इसलिए अनुष्ठानिक प्रथाओं में भी मिट्टी एक पृथ्वी तत्व के रूप में महत्वपूर्ण मानी गई।

नंदिनी भौमिक ने कहा कि मिट्टी के भी विभिन्न प्रकार हैं, इनमें नदी के किनारों से, तटरेखा से, सड़क के किनारे की मिट्टी के अलावा दीमक के टीले से मिट्टी, जानवरों और कीड़ों द्वारा खोदी गई मिट्टी और बगीचों से खनिज युक्त मिट्टी भी महत्वपूर्ण मानी गई। भौमिक ने बताया है कि पूजा के लिए इसे अनुष्ठानिक बनाने से यह सुनिश्चित होता था कि लोग एक सरल स्वच्छता अनुष्ठान का पालन करें।