दुनिया के जिन बड़े शहरों की तस्वीरें दिखाकर आधुनिक विकास के दावों को सुनहरा बताने की कल तक होड़ थी, आज वे तमाम शहर अपनी आबोहवा में घुलते जहर के कारण लोगों को भविष्य के बड़े खतरे के प्रति आगाह कर रहे हैं। भारत की स्थिति इस लिहाज से ज्यादा खतरनाक है क्योंकि शहरीकरण का उत्तर सर्ग तो क्या पूर्व सर्ग ही यहां अभी अपने विस्तार को नापने और बढ़ाने में लगा है। ऐसे में शहरीकरण से जुड़े पर्यावरणीय खतरों को समझना यहां की सरकार और समाज दोनों के लिए आसान नहीं है। पर इस जड़ता से जागरूकता की तरफ तेजी से बढ़ना अब इसलिए भी जरूरी है क्योंकि दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में से 22 अकेले भारत में गिनाए जा रहे हैं। राजधानी दिल्ली तो खैर इस मामले में सिरमौर ही है कि दुनिया का कोई और राजधानी शहर उससे ऊपर नहीं है। प्रदूषण के इन खतरों के बारे में तफ्सील से बता रहे हैं प्रेम प्रकाश।


दिल्ली कहां गई तिरे कूचे की रौनकें
गलियों से सर झुका के गुजरने लगा हूं मैं

जांनिसार अख्तर दिल्ली के नहीं थे। पर दिल्ली के लिए कहा गया उनका यह शेर बहुत मकबूल है। अख्तर ने यह शेर शायद तब कहा होगा जब दिल्ली की बढ़ी आबादी के बीच यहां के रहन-सहन में तेजी से फर्क आने लगा, कूचों-बाजारों की रौनकें गुम होने लगीं। दिल्ली से जुड़ी किस्सागोई के लिए मशहूर आरवी स्मिथ बताते हैं कि दिल्ली आम शहरों की तरह नहीं थी पहले। खासतौर पर जिसे पुरानी दिल्ली कहते हैं, वहां की सामाजिकता और सांस्कृतिक बहुलता के बीच शहर की सुंदरता और संभाल की फिक्र को भी बराबर की अहमियत हासिल थी। ‘आज भी खरे हैं तालाब’ के यशस्वी लेखक अनुपम मिश्र तो दिल्ली के पुराने नक्शे को बिछाकर बताते थे कि यहां इतने तालाब थे कि लंबे समय तक इस शहर की बड़ी पहचान सुंदर तालाबों के कारण भी रही।

गंदगी और शर्मिंदगी

जाहिर है कि दिल्ली की तारीख वैसे शहरों से जुदा रही है जो प्रकृति के उजाड़ की कीमत पर रातोंरात बसाए गए हैं। पर आज यहां की हकीकत इस कदर बदरंग है कि इसे दुनिया के सबसे प्रदूषित महानगरों में शुमार किया जा रहा है। यह भी कि ऐसा किसी आपवादिक कारण या प्रयोजन से नहीं किया जा रहा बल्कि इस बाबत एक के बाद एक कई अध्ययन रिपोर्ट आई हैं। दिल्ली के दमघोंटू वातावरण पर सुप्रीम कोर्ट तक को यह टिप्पणी करनी पड़ी कि यह शहर ‘गैस चैंबर’ में तब्दील हो गया है। हाल-फिलहाल में विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट 2020 की खासी चर्चा है। स्विस संगठन ‘आइक्यू एअर’ की इस रिपोर्ट में दुनिया के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में से 22 अकेले भारत में हैं। इन 22 शहरों में दस शहर उत्तर प्रदेश से आते हैं। दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में दिल्ली से लगा गाजियाबाद शहर दूसरे स्थान पर है, वहीं दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानियों में अव्वल है। साफ है कि गंदगी और शर्मिंदगी दोनों ही लिहाज से भारत के लिए स्थिति बहुत बुरी है।

सुधार का कोरोनाकाल

गौरतलब है कि प्रदूषण के मामले में दिल्ली सहित देश के बाकी शहरों की ये हालत तब है जबकि स्वच्छता के लिए देशभर में सरकारी और सामाजिक स्तर पर न सिर्फ कई अभियान पहले से चल रहे हैं बल्कि उनकी सफलता के दावे भी किए जाते रहे हैं। बीते एक साल में कोरोना के कारण देशव्यापी पूर्णबंदी के कारण तो स्थिति में यहां तक सुधार देखा गया कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावेडकर ने सभी मुख्यमंत्रियों को एक चिट्ठी लिखी। इसमें मुख्यमंत्रियों से उन्होंने अनुरोध किया है कि पूर्णबंदी के कारण औद्योगिक गतिविधियों, यातायात आदि में कमी का प्रभाव प्रदूषण पर साफ दिख रहा है। अब हवा-पानी पहले से काफी साफ है और ध्वनि प्रदूषण भी कम हुआ है। लिहाजा ऐसे में इसे एक ‘बेंचमार्क’ मानते हुए आगे के प्रयासों को जारी रखना चाहिए।

कोरोनाकाल में आबोहवा में सुधार का आलम यह रहा कि उत्तराखंड के कई इलाकों में गंगा का पानी पीने लायक हो गया तो पंजाब और उत्तर प्रदेश के कई इलाकों से हिमालय तक साफ दिखने की बात लोग सोशल मीडिया पर तस्वीरों के जरिए करने लगे। इस दौरान गंगा और यमुना नदियों में डॉल्फिन फिर से देखे जाने की खबरें भी आर्इं। सुबह टहलने निकलने के आदी लोगों की नींद फोन कॉल या अलार्म बजने से नहीं बल्कि उन चिड़ियों की चहचहाहट से खुलने लगी, जिनकी आवाज तक वे भूल चुके थे।
इस बीच, वायुमंडल में घटे प्रदूषण के कारण भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में भरोसे और उम्मीद का माहौल बना। प्रसिद्ध ‘नेचर’ पत्रिका ने कुछ वैज्ञानिकों के हवाले से यह आकलन तक प्रकाशित किया कि ओजोन परत की स्थिति काफी बेहतर हो रही है और सब कुछ अगर इसी तरह जारी रहा तो ओजोन को लेकर एक बड़ी चिंता के बोझ से दुनिया मुक्तहो सकती है।

ढाक के तीन पात

पर देखते-देखते इन सारी उम्मीदों पर पानी फिरने लगा। ज्यों-ज्यों हालात सामान्य होते गए एक तरफ तो हवा में कार्बन का जहर पहले की तरह घुलना शुरू हो गया, वहीं दूसरी तरफ नदी-नालों का प्रदूषण अपने पहले के स्तर पर आ गया। आइक्यू एअर 2020 रिपोर्ट का ही हवाला लें तो यह दिखाता है कि शहरों में प्रदूषण की स्थिति अब भी चिंताजनक है और इस बारे में सुधार के बड़े कदम यदि समय रहते नहीं उठाए गए तो फिर आगे हालात की संभाल मुश्किल होगी। मसलन, दिल्ली में पिछले कुछ महीनों से प्रदूषण के स्तर में थोड़ी-बहुत सुधार देखने को जरूर मिली है, लेकिन यह नाकाफी है। दिल्ली की वायु गुणवत्ता 2019 से 2020 की तुलना में 15 फीसद बेहतर हुई है। इसी तरह आइक्यू एअर रिपोर्ट 2019 के मुकाबले 2020 की रिपोर्ट में भारतीय शहर 63 फीसद पहले से बेहतर जरूर हुए हैं, पर ये सुधार इतने संतोषजनक नहीं कि इन्हें लेकर हम किसी तरह का इत्मिनान महसूस करें।

आइक्यू एअर 2020 रिपोर्ट पिछले साल कोविड-19 के दौरान पूर्णबंदी जैसी स्थिति से वायु गुणवत्ता पर पड़ने वाले प्रभावों को भी दर्ज करती है। लिहाजा स्विस संगठन के इस रिपोर्ट में अगर दिल्ली को दुनिया की सबसे अधिक प्रदूषित राजधानी बताया गया है तो यह इस बात को रेखांकित करने के लिए पर्याप्त है कि स्थिति में सुधार की किसी बड़ी कवायद से तौबा भारी पड़ रही है।

प्रदूषण और पड़ोस

यह रिपोर्ट भारत सहित पूरे दक्षिण एशिया के लिए भी खतरे की घंटी है क्योंकि इसमेंं बताया गया है कि दुनिया के 50 सबसे प्रदूषित शहरों में बांग्लादेश, चीन, भारत और पाकिस्तान से 49 शहर आते हैं। इसमें वायु प्रदूषण के लिहाज से देशों की जो रैंकिंग की गई है उसमें बांग्लादेश सबसे ऊपर है। इसके बाद पाकिस्तान और भारत का नंबर आता है। भारत के लिए यह स्थिति इसलिए भी शर्मनाक है क्योंकि दुनिया के सबसे प्रदूषित 30 शहरों में से 22 अकेले भारत में हैं। दिल्ली के अलावा 21 अन्य शहर हैं- उत्तर प्रदेश में गाजियाबाद, बुलंदशहर, बिसरख जलालपुर, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, कानपुर, लखनऊ, मेरठ, आगरा और मुजफ्फरनगर, राजस्थान में भिवाड़ी, हरियाणा में फरीदाबाद, जींद, हिसार, फतेहाबाद, बंधवाड़ी, गुड़गांव, यमुनानगर, रोहतक और धारुहेड़ा और बिहार में मुजफ्फरपुर।

बीस से पहले उन्नीस

आइक्यू एअर 2020 रिपोर्ट दुनिया के 106 देशों के पीएम 2.5 डेटा पर आधारित है, जिसे जमीनी तौर पर निगरानी स्टेशनों द्वारा मापा जाता है, जिनमें से अधिकांश सरकारी एजंसियों द्वारा संचालित हैं। गौरतलब है कि पिछले साल पर्यावरण को लेकर काम करने वाली संस्था ग्रीनपीस इंडिया की रिपोर्ट में झारखंड के झरिया को देश का सबसे प्रदूषित शहर बताया गया था। दिल्ली प्रदूषण के मामले में देश में दसवें नंबर पर था, जबकि शीर्ष-10 प्रदूषित शहरों में उत्तर प्रदेश के छह शहर थे।