Maharashtra Politics: पिछले साल दिसंबर में महाराष्ट्र में महायुति सरकार बनी थी। इसके बाद से ही राज्य की सबसे प्रमुख मुख्यमंत्री माझी लड़की बहन योजना लगातार जांच के घेरे में रही है। इसकी वजह यह है कि राज्य बढ़ते कर्ज के बोझ का सामना कर रहा है और इसको लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। इसके चलते ही गठबंधन के सदस्यों यानी एनसीपी और शिवसेना के बीच टकराव की स्थिति हैं। यह टकराव बीजेपी और खासकर सीएम देवेंद्र फडणवीस के लिए चैलेंज बन गया है।
दरअसल, सामाजिक न्याय मंत्री और शिवसेना नेता संजय शिरसाट ने शनिवार को उपमुख्यमंत्री और एनसीपी नेता अजित पवार के तहत आने वाले वित्त विभाग पर नाराजगी जताई। उन्होंने एससी और एसटी के लिए लड़की बहिन योजना के लिए निर्धारित फंड के डायवर्जन को लेकर निशाना साधा। संजय शिरसाट ने कहा,”मुझे यह भी नहीं बताया गया कि सामाजिक न्याय विभाग से करीब 400 करोड़ रुपये डायवर्ट किए गए हैं। मुझे इसके बारे में मीडिया से पता चला। अगर सामाजिक न्याय विभाग की कोई जरूरत नहीं है, तो इसे बंद किया जाए।”
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मंत्री बोले- शिवसेना के साथ दूसरे दर्जे का व्यवहार
वहीं शिरसाट के बयान को लेकर शिवसेना के ही एक अन्य मंत्री ने नाम न बताने की शर्त पर इंडियन एक्सप्रेस से कहा , “2022-2024 में शिवसेना के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार किया गया। 2024 के विधानसभा चुनावों के बाद, महायुति के भीतर शिवसेना को दोयम दर्जे का व्यवहार मिल रहा है। BJP गठबंधन में बड़े भाई की भूमिका है। वह स्पष्ट रूप से शिवसेना और एनसीपी के बीच के मुद्दों को नजरअंदाज कर रही है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है।”
MVA गठबंधन में भी हुआ था टकराव
गौरतलब है कि यह पहली बार नहीं है कि जब शिवसेना नेताओं ने अजित पवार के वित्त विभाग चलाने के तरीकों पर सवाल उठाए हैं। जब वे सभी महा विकास अघाड़ी में थे, तब भी कई शिवसेना मंत्रियों और विधायकों ने कैबिनेट और पार्टी की बैठकों में पवार पर सवाल खड़े किए थे। उन पर आरोप लगाए गए थे कि वे अपनी पार्टी के विधायकों को अधिक धन आवंटित करते रहते हैं। अजित पवार ने इन आरोपों का कभी कोई खंडन तक नहीं किया।
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इतना ही नहीं, जब 2022 में शिवसेना अलग हो गई, तो बागी विधायकों ने अपने दलबदल को सही ठहराने के लिए जो मुख्य कारण बताए उनमें से एक पवार द्वारा वित्त विभाग को संभालने से असहजता भी थी, और एक बार फिर ये नेता अजित पवार के ही वित्त विभाग संभालने की समस्या का सामना कर रहे हैं।
NCP ने खारिज किए आरोप
एनसीपी नेताओं ने शिवसेना नेताओं के दावों को खारिज किया है। शिवसेना खेमे की तरफ से कहा गया कि अगर हम घटनाक्रम देखें तो एकनाथ शिंदे ने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत से ही नखरे दिखाए हैं। उन्होंने अपने और अपने मंत्रियों के लिए विभागों के लिए कड़ी सौदेबाजी करने के लिए आखिरी समय तक भाजपा को तनाव में रखा। उनके मंत्री भी अब उसी तरह का व्यवहार कर रहे हैं।
वित्त मंत्री को लेने पड़ते हैं कड़े फैसले – वित्त विभाग
रविवार को राज्य भाजपा अध्यक्ष और राजस्व मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले ने मतभेदों को कमतर आंकते हुए कहा था, “मैं संजय शिरसाट से बात करूंगा, अगर कोई समस्या है तो सीएम उसका समाधान करेंगे।” राज्य वित्त विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि पवार द्वारा फंड को दूसरी जगह लगाने का फैसला सोच-समझकर लिया गया था। उन्होंने कहा, “अजित पवार एक सक्षम प्रशासक हैं जो वित्त विभाग की बारीकियों को समझते हैं। अगर वे कोई फैसला लेते हैं तो वह अचानक नहीं होता। उन्हें राजनीति और लोगों के बीच संतुलन बनाना होता है। चाहे कोई भी सरकार हो, वित्त मंत्री को हमेशा मुश्किलों का सामना करना पड़ता है क्योंकि उन्हें कठोर फैसले लेने पड़ते हैं।”
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सरकार पर पड़ रहा है आर्थिक बोझ
हालांकि महायुति के पास राज्य के 288 विधायकों में से 237 विधायकों के साथ विधानसभा में एक प्रमुख स्थान है, लेकिन लड़की बहन योजना और किसानों के लिए मुफ्त बिजली जैसी लोकलुभावन कल्याणकारी योजनाओं के फंड की वजह से कर्ज का बोझ बढ़ गया है। अनुमान के मुताबिक राज्य का लोन स्टॉक किसी भी समय राज्य सरकार की कुल बकाया देनदारियां, 11 प्रतिशत अंक बढ़कर सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) का 18.87% या 9.32 लाख करोड़ रुपये हो गया है।
पिछले बजट को पेश करते हुए अजित पवार ने माना कि चुनाव से पहले गठबंधन द्वारा किए गए वादों को पूरा करने के साथ-साथ वित्तीय अनुशासन बनाए रखना एक “कठिन काम” होगा। उन्होंने कहा कि सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि ऋण-से-सकल राज्य आय (जीएसआई) अनुपात 25% की सीमा के भीतर रहे। अब तक, यह अनुपात 2025-26 तक बढ़कर 18.87% होने का अनुमान है, जो अभी भी सीमा के भीतर है।