Maharashtra Language Row: महाराष्ट्र में भाषा को लेकर चल रहे विवाद के बीच पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के बेटे और विधायक आदित्य ठाकरे ने बड़ा बयान दिया है। आदित्य ठाकरे ने रविवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि महाराष्ट्र में मराठी और अंग्रेजी को ही प्रमुखता दी जानी चाहिए, इसके अलावा हिंदी हो, फ्रेंच हो, स्पेनिश हो या कोई और अन्य भाषा…इन सब विषयों को पांचवी कक्षा के बाद लिया जा सकता है।
बताना होगा कि महाराष्ट्र में कई राजनीतिक दलों ने आरोप लगाया है कि देवेंद्र फडणवीस की अगुवाई वाली महायुति सरकार हिंदी को राज्य पर थोप रही है। इस मामले में उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के प्रमुख राज ठाकरे एक मंच पर आने वाले हैं और
5 जुलाई को बड़ी रैली रखी गई है।
एक सवाल के जवाब में आदित्य ठाकरे ने कहा, ‘मुख्यमंत्री महोदय कौन सी नींद में हैं, मुझे नहीं पता लेकिन वह आंखें खोलें और देखें कि सरकारी आदेश किसने जारी किया है, तब कौन मुख्यमंत्री था?’
इससे पहले आदित्य ठाकरे ने X पर कहा था, ‘किसी भी भाषा का विरोध नहीं है बल्कि उस भाषा को थोपने का विरोध है! जबकि इसके खिलाफ आंदोलन चल रहा है और मराठी लोग भड़के हुए हैं, क्या हमें इस बात का अहसास है कि मराठी-द्वेषी भाजपा पिछले दरवाजे से क्या कर रही है?’
इससे पहले एनसीपी (शरद पवार) के सुप्रीमो शरद पवार ने कहा था कि हालांकि हिंदी बड़े पैमाने पर बोली जाती है लेकिन इसे थोपा नहीं जाना जाना चाहिए। शिवसेना उद्धव गुट के सांसद संजय राउत ने आरोप लगाया कि यह फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के द्वारा लाई गई नई एजुकेशन पॉलिसी का हिस्सा है और यह महाराष्ट्र सरकार का फैसला नहीं था बल्कि इसे केंद्र सरकार ने थोपा है। उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने कहा कि हिंदी को कक्षा 5 से पढ़ाया जाना चाहिए उससे पहले नहीं।
‘मराठी अस्मिता’ पर दो दशक बाद ठाकरे बंधु एकजुट, BJP के हिंदी थोपने के खिलाफ साझा मोर्चा
कब शुरू हुआ विवाद?
यह पूरा विवाद 16 अप्रैल को उस वक्त शुरू हुआ जब महाराष्ट्र सरकार ने मराठी और अंग्रेजी मीडियम के स्कूलों में तीसरी भाषा के रूप में हिंदी को अनिवार्य कर दिया था। जब सरकार के इस फैसले का विरोध हुआ तो इसमें संशोधन किया गया और कहा गया कि हिंदी ‘सामान्य रूप से’ एक तीसरी भाषा होगी लेकिन अगर कम से कम 20 छात्र किसी अन्य भाषा का विकल्प चुनते हैं, तो वे वह भाषा पढ़ सकते हैं।
फडणवीस ने किया फैसले का बचाव
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी सरकार के फैसले का बचाव करते हुए कहा कि मराठी भाषा अनिवार्य है जबकि हिंदी और अंग्रेजी का चयन माशेलकर समिति की सिफारिश के आधार पर किया गया है और इसे पिछली उद्धव ठाकरे सरकार ने स्वीकार किया था। उन्होंने कहा था, ‘मराठी अनिवार्य है, हिंदी वैकल्पिक है और छात्र कोई भी भारतीय भाषा चुन सकते हैं।’
यह माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में महाराष्ट्र में भाषा के मुद्दे पर बड़ा आंदोलन खड़ा हो सकता है। महाराष्ट्र विधानसभा के आगामी मानसून सत्र के दौरान भी इस पर चर्चा हो सकती है और इसके अलावा बीएमसी और स्थानीय निकाय के चुनाव में भी हिंदी के थोपे जाने का आरोप लगाकर विपक्षी राजनीतिक दल बीजेपी की अगुवाई वाली राज्य सरकार को घेर सकते हैं।
यह भी पढ़ें- अमित शाह बोले- हिंदी किसी भाषा की दुश्मन नहीं हो सकती