नागपुर में आठ दिसंबर से शुरू होने वाले महाराष्ट्र विधानसभा के शीतकालीन सत्र में देवेंद्र फडनवीस सरकार को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। इसे देखते हुए राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) राज्य सरकार को मुश्किलों से उबारने के लिए सक्रिय हो चुका है। संघ प्रमुख मोहन भागवत और शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की फोन पर हुई बातचीत के बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि अगले सप्ताह होने वाले मंत्रिमंडल विस्तार में शिवसेना सरकार में शामिल हो सकती है।
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने भी रविवार को नागपुर में पत्रकारों से बातचीत में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और शिवसेना के बीच दूरी कम होने के संकेत दिए। उन्होंने कहा कि 25 नवंबर से 1 दिसंबर के बीच कभी भी मंत्रिमंडल का विस्तार हो सकता है। शिव सेना के सरकार में शामिल होने के सवाल पर फडणवीस ने कहा कि राजनीति में बातचीत के दरवाजे कभी बंद नहीं होते हैं। वहीं भाजपा नेता विनोद तावडे ने स्पष्ट किया कि उन्हें उद्धव ठाकरे और संघ प्रमुख के बीच हुई बातचीत की जानकारी नहीं है। लेकिन सूत्र बताते हैं कि अमित शाह ने शिवसेना से फिर बातचीत को हरी झंडी दे दी है।
वहीं दूसरी ओर शिवसेना के वरिष्ठ नेता मनोहर जोशी ने कहा कि शिवसेना और भाजपा के बीच की दूरी अस्थायी है। भविष्य में दोनों दल साथ हो सकते हैं। जोशी का मानना है कि हिंदुत्व के मुद्दे पर भाजपा और शिवसेना साथ-साथ हो सकते हैं मगर अंतिम फैसला उद्धव ठाकरे ही करेंगे।
नागपुर में होने वाले विधानसभा के शीतकालीन सत्र में फडनवीस सरकार के खिलाफ विपक्ष सख्त तेवर अपनाएगा, क्योंकि सरकार ने भले ही ध्वनिमत से सदन में बहुमत साबित कर दिया हो, मगर विरोधी दल उसे अभी भी अल्पमत की सरकार मानते हैं। हालांकि सरकार को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) का बाहर से बिना शर्त समर्थन हासिल है। लेकिन भाजपा नेताओं को लगता है कि राकांपा कभी भी समर्थन वापस लेकर सरकार की मुश्किलें बढ़ा सकती है। शीतकालीन सत्र में सरकार घिर जाए, उससे पहले संघ के साथ ही भाजपा के नेता चाहते हैं कि शिवसेना को सरकार में शामिल कर लिया जाना चाहिए।
दरअसल शरद पवार और अजीत पवार के बयानों ने भाजपा की नींद उड़ा दी है। शरद पवार ने पुणे में कहा कि सरकार को कितने विधायकों का समर्थन है यह बताना भाजपा की जिम्मेदारी थी। दूसरी ओर अजीत पवार भी यह कह चुके हैं कि सरकार के हर फैसले का राकांपा समर्थन नहीं कर सकती। इसके बाद भाजपा नेताओं ने शिव सेना को सरकार में शामिल करने पर गंभीरता से सोचना शुरू किया है। जहां एक ओर भाजपा और शिव सेना में फिर से मेल-मिलाप के संकेत मिल रहे हैं, वहीं दूसरी ओर शिव सेना के मुखपत्र सामना में भाजपा पर कड़ी टिप्पणी की गई है। सोमवार को अखबार ने लिखा कि विधानसभा चुनाव और उसके बाद जो कुछ हुआ उस पर चिंतन और मंथन की हमें जरूरत नहीं है। जिन लोगों ने महाराष्ट्र को आत्मक्लेश के मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है, उन्हें अब शिव सेना की ओर आशा भरी नजरों से नहीं देखना चाहिए।