देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने को लेकर चर्चा तेज हो गई है। मुद्दा कई साल पुराना है, लेकिन राजनीतिक गलियारों में इसने जोर पकड़ना अब शुरू किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल भोपाल की एक रैली में एक देश एक कानून का जिक्र किया। उस एक जिक्र ने ही एक बार फिर यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर मंथन शुरू करवा दिया। यूसीसी, ये एक ऐसा प्रावधान है जो किसी के लिए रीफॉर्म की तरह है, किसी की विचारधारा से जुड़ा हुआ मुद्दा है तो कोई सिर्फ अपनी सियासत को चमकाने के लिए इसका इस्तेमाल करता रहता है।
अब यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर कई तर्क दिए जा सकते हैं, लेकिन इस सवाल से नहीं भागा जा सकता कि भारत विविधताओं वाला देश है, यहां जितने धर्म, जितनी मान्यताएं, उतने ही कानून भी हैं। ऐसे में भारत में यूसीसी कैसे लागू किया जा सकता है? जिस देश में धार्मिक आजादी की बात होती हो, वहां पर यूसीसी को लाना क्या कोई गलत संदेश देता है? देश का मुसलमान क्यों यूसीसी को लेकर इतना आशंकित है? मुस्लिम पक्ष क्यों बार-बार शरिया कानून का हवाला दे रहा है? क्या शरिया ही यूसीसी की राह का सबसे बड़ा रोड़ा है? इन्हीं सवालों के जवाब जानने के लिए और डर को डीकोड करने के लिए हमने पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता कासिम रसूल इलियास से खास बातचीत की। उस बातचीत का अंश पढ़ने से पहले यूसीसी और शरिया कानून की ABCD समझना जरूरी है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड होता क्या है?
यूनिफॉर्म सिविल कोड को हिंदी में समान नागरिक संहिता कानून कहते हैं। अपने नाम के मुताबिक अगर ये किसी भी देश में लागू हो जाए तो उस स्थिति में सभी के लिए समान कानून रहेंगे। अभी भारत में जितने धर्म, उनके उतने कानून रहते हैं। कई ऐसे कानून हैं जो सिर्फ मुस्लिम समुदाय पर लागू होते हैं, ऐसे ही हिंदुओं के भी कुछ कानून चलते हैं। लेकिन यूनिफॉर्म सिविल कोड के आने से ये सब खत्म हो जाता है, जाति-धर्म से ऊपर उठकर सभी के लिए समान कानून बन जाता है।
यूसीसी की परिभाषा मुस्लिमों की परेशानी?
अब यूनिफॉर्म सिविल कोड की परिभाषा ही मुस्लिम समाज के एक वर्ग को परेशान कर गई है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड हो या बात हो जमीयत उलमा-ए-हिंद की, दो टूक कहा गया है कि मुस्लिम कुछ भी बर्दाश्त कर सकता है, लेकिन शरीयत के साथ छेड़छाड़ नहीं। यहां तक कहा गया है कि कयामत तक, इसमें कोई बदलाव नहीं हो सकता। इस तल्खी वाले बयान में ‘शरीयत’ वो कीवर्ड है जिसे इस विवाद की जड़ माना जा सकता है। यानी कि अगर मुस्लिमों के एक वर्ग की इस आपत्ति को ठीक तरह से समझना है, तो शरिया कानून के इतिहास तक पहुंचना जरूरी है। इसकी अहमियत को जानना उससे भी ज्यादा जरूरी है।
शरिया कानून का पूरा इतिहास और इस्लाम से कनेक्शन
शरिया कानून को सबसे सरल भाषा में इस्लाम से प्रेरित कानूनी व्यवस्था कहा जा सकता है। कुरान हो, फतवें हों, इन सभी से मिलकर ही शरिया कानून को तैयार किया गया है। एक सच्चे मुसलमान को अपना जीवन कैसे जीना चाहिए, सही राह क्या रहती है, शरिया ये बताने का काम करता है। शरिया का एक ही उदेश्य है- अल्लाह की इच्छा के अनुसार कोई भी मुसलमान अपना जीवन व्यतीत करे। इतिहास बताता है कि इस्लाम के आने से पहले भी अरब में एक ऐसी जनजाति थी जो अपने नियमों के मुताबिक समाज को चलाती थी। समय के साथ वो नियम बदले और फिर सातवीं शताब्दी तक मदीना में मुस्लिम समाज सक्रिय हो गया, यानी कि इस्लाम का उदय।
इस्लाम आया तो कुरान आई, करान में बताई गई पैगंबर मोहम्मद की वाणी और वहीं वाणी लोगों के जीने के तौर-तरीकों को बदलने लगी। ये तौर-तरीके अरब और आस-पास के दूसरे इलाकों में तेजी से लोकप्रिय हुए और देखते ही देखते जनजाति के जो अपने नियम चलते थे, उसकी जगह इस्लाम के इन नियमों ने ले ली। इन्हीं नियमों को शरिया का नाम दिया गया जिसका शाब्दिक अर्थ होता है- सही रास्ता।
भारत में शरिया कानून कैसे आया?
अब भारत में शरिया की शुरुआत आधिकारिक तौर पर 1937 में हुई, यानी कि आजादी से 10 साल पहले। एक कानून था जिसका नाम ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ एपलिकेशन एक्ट’ रखा गया। इसे आप शरीयत एक्ट 1937 भी कह सकते हैं। भारत के सभी मुसलमानों के लिए इस्लामिक कानून लागू हो, उसी उदेश्य के साथ ये लाया गया था। आज भी मुस्लिमों में शादी, तलाक, पारिवारिक मसलों पर ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ एपलिकेशन एक्ट’ के तहत फैसले लिए जाते हैं। यानी कि इस एक शरिया कानून का इस्लाम पर गहरा प्रभाव है। सभी मुसलमान पूरी शिद्दत के साथ इसका पालन करना चाहते हैं। वहीं क्योंकि एक देश एक कानून वाला कॉन्सेप्ट उनके इन्हीं कई नियमों में बदलाव ला सकता है, ऐसे में विवाद खड़ा हो रहा है। इसी विवाद और यूसीसी के तमाम पहलुओं को समझने के लिए हमने देश के पूर्व विदेश मंत्री, सीनियर एडवोकेट और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद से खास बातचीत की है। इसके साथ ही ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की आपत्तियों को समझने के लिए उनके आधिकारिक प्रवक्ता कासिम रसूल इलियास से सवाल-जवाब किए।
देश में यूनिफॉर्मिटी आ जाएगी, ये बेकार बात: कासिम रसूल इलियास
सबसे जरूरी सवाल यहीं रहा कि आखिर यूसीसी को लेकर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इतना आशंकित क्यों है? आखिर क्यों सभी मुसलमानों की तरफ से बोर्ड कह रहा है कि शरिया कानून में बदलाव को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इसी सवाल पर जनसत्ता से बात करते हुए AIMPLB के प्रवक्ता कासिम रसूल इलियास कहते हैं
यूसीसी के सपोर्ट में तर्क दिया जा रहा है कि एक देश में एक कानून होना चाहिए। लेकिन जिस कॉन्सेप्ट की बात की जा रही है, वो तो हमारे यहां CRPC और IPC में भी देखने को नहीं मिलता है। CRPC-IPC भी राज्य दर राज्य बदलता रहता है। इसी तरह देश में आरक्षण चलता है, लेकिन पूरे देश में ये एक समान नहीं है। जो पर्सनल लॉ होते हैं, फिर चाहे हिंदू कोड बिल क्यों ना हो, वहां भी आपको समानता देखने को नहीं मिलेगी। उसमें भी कई तरह की छूट (Exemption) चल रही है। ऐसे में ये कहना कि देश में यूनिफॉर्मिटी आ जाएगी, ये बेकार बात है।
कासिम रसूल इलियास, प्रवक्ता, AIMPLB
बिना जानकारी शरिया पर बयानबाजी गलत: सलमान खुर्शीद
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की इसी आपत्ति पर जब हमने कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद से बात की तो उन्होंने काफी सधा हुआ जवाब दिया। सलमान खुर्शीद ने कहा कि शरिया कानून को हमे 4 मसलक के रूप में देखना चाहिए। ये चार मसलक- हनफ़ी, मालिकी, शाफ़ई और हंबली है। अब अगर कोई ये कहता है कि यूसीसी शरिया कानून को प्रभावित करता है, ये बताना जरूरी हो जाता है कि कौन से मसलक पर ये असर डालने वाला है। मैं ये ठीक नहीं मानता हूं कि कोई भी शरिया को लेकर इस तरह से बयानबाजी करे और समानता को लेकर बयान जारी करे। जब तक आपको सारी जानकारी नहीं मिल जाती, ऐसे बोलना उचित नहीं है।
मुस्लिमों को यूसीसी से डर? सलमान खुर्शीद ने दिया जवाब
इसी कड़ी में हमने सलमान खुर्शीद से सीधे-सीधे पूछा कि क्या देश का मुसलमान यूसीसी के आने से डर रहा है या क्या उसके मन में कोई डर चल रहा है? कांग्रेस नेता ने इस पर दो टूक बोला
डर का क्या है, कोई भी व्यक्ति किसी भी बात से डर सकता है, उसके मन में डर बैठ सकता है। मैं बोल सकता हूं कि मुझे चीनी लोगों के भारत आने से डर लगता है। लेकिन क्या ये मेरा डर किसी तथ्य पर आधारित है, क्या ये वास्तविकता है। इसलिए मैं मानता हूं कि अभी जब तक यूसीसी को लेकर स्पष्टता नहीं आ जाती, ये सब सोचना ही काल्पनिक लगता है। अगर किसी को लग भी रहा है कि उनके धर्म को चुनौती दी जा रही है, तो सबसे पहले अपने धर्म को ठीक तरह से समझें, उसके क्या पहलू हैं, उस बारे में पढ़ें। तब जाकर ही आप बेहतर तरीके से अपनी बात रख पाएंगे।
सलमान खुर्शीद, पूर्व विदेश मंत्री
कुरान से प्रेरित पर्सनल लॉ, किसी आदमी का कानून नहीं: कासिम रसूल इलियास
अब सलमान खुर्शीद जरूर सलाह दे रहे हैं कि पहले इस्लाम और शरिया कानून को ठीक तरह से समझने की जरूरत है, लेकिन AIMPLB के प्रवक्ता कासिम रसूल इलियास अपनी आपत्तियों पर एकदम अडिग हैं। वे अपने बयानों में संविधान का जिक्र कर रहे हैं, पुराने मामलों का हवाला दे रहे हैं और इसके ऊपर इस्लाम में क्या बताया गया है, उस पर भी रोशनी डाल रहे हैं। वे मानते हैं कि यूसीसी के सामने उनके तर्क ज्यादा भारी पड़ते हैं। उनका कहना है कि मुसलमानों का जो पर्सनल लॉ है, वो किसी आदमी का बनाया हुआ कानून नहीं है। बल्कि ये कुरान से लिया गया है। दूसरे धर्मों के साथ ऐसा नहीं है। हिंदू-सिख या दूसरे धर्मों का जो कानून है वो धार्मिक ग्रंथों से नहीं निकला है। लेकिन हमारी कुरान में तो प्रॉपर्टी, तलाक से लेकर कई मसलों पर साफ-साफ लिखा गया है। ऐसे में हम ऐसे किसी भी संशोधन को समानता के नाम पर स्वीकार नहीं कर सकते।
मुस्लिम महिला को प्रॉपर्टी में समान अधिकार क्यों नहीं?
ये बयान बताने के लिए काफी है कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के लिए धर्म सबसे ऊपर है। वैसे जब इसी धर्म के साथ हमने महिला अधिकारों का जिक्र किया, उनके लिए समानता की बात की, इस पर इलयास ने कई उदाहरण देने शुरू कर दिए। उन्होंने बताया-
हर बार प्रॉपर्टी में महिला को आधा हिस्सा मिले, ये ठीक नहीं है। स्थिति पर डिपेंड करता है सबकुछ। अगर एक बाप की प्रॉपर्टी है, तो बेटे को पूरा हिस्सा मिलेगा और बेटी को आधा। इसके पीछे लॉजिक ये है कि घर चलाने की जिम्मेदारी मर्द को दी गई है। औरत पर ये जिम्मेदारी नहीं है। महिला अगर बिजनेस भी करती है, कोई प्रॉपर्टी भी है, फिर भी उस पर ये जिम्मेदारी नहीं है कि वो अपने घर के लिए कोई पैसा निवेश करेगी। इस्लाम ने घर चलाने से औरत को पूरी तरह आजाद रखा है। इसी वजह से प्रॉपर्टी में भी उसका हिस्सा हाफ है।
कासिम रसूल इलियास, प्रवक्ता, AIMPLB
कासिम रसूल इस बात पर भी जोर देते हैं कि इस्लाम का जो कानून है वो इंसान के नेचर पर आधारित है। इंसान के नेचर को हम और आप डिसाइड नहीं कर सकते हैं। इसलिए यूनिफॉर्म सिविल कोड के नाम पर कोई भी दूसरा कानून मुस्लिमों पर लागू नहीं होना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने यूसीसी की बात कही है: सलमान खुर्शीद
अब AIMPLB जरूर मुस्लिमों पर कोई दूसरा कानून नहीं चाहता है, लेकिन सलमान खुर्शीद अभी कोई भी धारणा बनाने से बच रहे हैं। वे बीजेपी को भी एक बार ड्रॉफ्ट सामने रखने का मौका देना चाहते हैं। उनका कहना है कि हमे नहीं पता कि बीजेपी का यूसीसी है क्या। इसलिए अभी यूसीसी को सही या गलत बताना बहुत मुश्किल है। हमे ये नहीं भूलना चाहिए कि संविधान ने भी यूसीसी को रिकमेंड किया है, सुप्रीम कोर्ट ने भी कई मौकों पर कहा है कि हम यूसीसी लेकर क्यों नहीं आते हैं। कोर्ट की धारणा ये चल रही है कि इससे देश की कई समस्याओं का समाधान हो सकता है। लेकिन ये भी सच है कि सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक एक बार भी इस मुद्दे पर अलग से सुनवाई नहीं की है।
यूसीसी से महिलाओं को समान हक? खुर्शीद का जवाब
वैसे यूसीसी को लेकर मुस्लिम महिलाओं को मिलने वाली समानता की जो दलील दी जा रही है, उससे पूरी तरह सलमान खुर्शीद सहमत नहीं है। उनकी नजर में समानता एक ऐसा शब्द है जो अपने आप में काफी जटिल है और इसके अलग-अलग मायने निकाले जाते हैं। इस बारे में वे बताते हैं-
समानता को लेकर एक साल में 100 से ज्यादा मामले आ जाते हैं। ऐसे में समानता किसे माना जाए, ये किसी भी केस के मेरिट पर डिपेंड करता है। आंखें बंद कर बस कह देना कि यूसीसी समानता को प्रमोट करेगा, ये ठीक नहीं। अलग-अलग तरह की समानता हो सकती है। उदाहरण के लिए देश में आरक्षण हैं, संविधान तर्क देता है कि ये समानता को बढ़ावा देने वाला है। लेकिन ये सिर्फ कुछ कैटेगरी तक सीमित है। ऐसे में यूसीसी किस तरह से समानता को देखता है, ये समझना जरूरी रहेगा।
सलमान खुर्शीद, पूर्व विदेश मंत्री
एक से ज्यादा पत्नी, क्या बंद होगा ये ट्रेंड?
अब जब यूनिफॉर्म सिविल कोड का जिक्र किया जा रहा है, उसमें ये भी कहा जा रहा है कि शादी के बाद सिर्फ एक पत्नी रहेगी। ज्यादा शादियां करने पर रोक लग सकती है। टीवी चैनलों पर कुछ मुस्लिम महिलाओं ने भी इसका स्वागत किया था। लेकिन जब यहीं सवाल कासिम रसूल इलयास से पूछा गया तो उन्होंने साफ कहा कि ये सब प्रोपेगेंडा है। हिंदुओं में ये चलन ज्यादा चलता है। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि कुछ खास स्थितियों में ही ज्यादा शादियां की जाती हैं। लेकिन क्योंकि कुरान में इसका जिक्र किया गया है, ऐसे में वे इसे बंद होने नहीं दे सकते। शरिया में किसी भी तरह का बदलाव उन्हें स्वीकार नहीं है।
आसान नहीं यूसीसी की राह, धर्म ही सबसे बड़ा रोड़ा
यानी कि यूनिफॉर्म सिविल कोड की राह इतनी आसान नहीं रहने वाली है। सिर्फ राज्यसभा में ‘जुगाड़ू पॉलिटिक्स’ कर नंबर नहीं जुटाने हैं, देश को साथ लाने की बात है जिसमें तमाम धर्म, तमाम जातियां शामिल हैं। वैसे भी जिस देश में धर्म ही राजनीति बन जाती है, वहां पर जब कोई कानून किसी भी तरह से उस पर असर डालेगा, तो विरोध की आवाज तो उठेंगी, चुनौती ये है कि कैसे उसे शांत किया जाए, किस तरह से रीफॉर्म की अहमियत को समाज के हर कोने तक पहुंचाया जाए।