दो दिन पहले मंगलवार को उच्चतम न्यायालय ने तीन नये कृषि कानूनों को लेकर केन्द्र सरकार और दिल्ली की सीमाओं पर धरना दे रहे किसानों के संगठनों के बीच व्याप्त गतिरोध खत्म करने के इरादे से इन कानूनों के अमल पर अगले आदेश तक रोक लगा दी थी, साथ ही किसानों की समस्याओं पर विचार के लिए चार सदस्यीय समिति गठित की थी। इसको लेकर वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष के ट्वीट को कई लोगों ने ट्रोल करना शुरू कर दिया था। उनकी टिप्पणी पर सबसे रोचक ट्रोल न्यूज चैनल आज तक के एंकर रोहित सरदाना ने किया।
रोहित सरदाना ने आशुतोष के ट्वीट को ऑड डे और ईवन डे के रूप में बताकर ट्रोल किया। उनके मुताबिक एक तरफ आशुतोष अपने ट्वीट में लिख रहे हैं, “किसान आंदोलन: सुप्रीम कोर्ट की केंद्र को फटकार, कहा- हम निराश हैं। किसान कानून को सरकार सस्पेंड क्यों नहीं करती?” तो दूसरे ट्वीट में उसी सुप्रीम कोर्ट पर आशुतोष यह कहकर टिप्पणी कर रहे, “अदालत ने अपना रुतबा गंवा दिया है?”
रोहित सरदाना ने पहले ट्वीट को ऑड डे और दूसरे ट्वीट को ईवन डे बताया। यानी पहले ट्वीट में आशुतोष ने सुप्रीम कोर्ट के शब्दों को सरकार के विरुद्ध बताया और दूसरे ट्वीट में सुप्री्म कोर्ट पर ही रुतबा गंवाने जैसे आक्षेप लगा दिया।
हालांकि उच्चतम न्ययाालय ने कानूनों के अमल पर अगले आदेश तक रोक लगाने के फैसले को “असाधारण” करार दिया, लेकिन नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसान संगठनों ने कहा कि वे उच्चतम न्यायालय की तरफ से गठित समिति के समक्ष पेश नहीं होंगे और आरोप लगाया कि यह “सरकार समर्थक” समिति है। किसान संगठनों ने कहा कि उन्हें तीनों कृषि कानूनों को वापस लिए जाने से कम कुछ भी मंजूर नहीं है।
ऑड डे ईवन डे pic.twitter.com/WJTQiAKSD8
— रोहित सरदाना (@sardanarohit) January 13, 2021
केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी ने पीटीआई-भाषा को दिए एक साक्षात्कार में उच्चतम न्यायालय द्वारा गतिरोध समाप्त करने के लिए गठित समिति को “निष्पक्ष” बताया और कहा कि सरकार वार्ता के लिए हमेशा तैयार रही है लेकिन यह किसान संगठनों पर निर्भर है कि 15 जनवरी को निर्धारित नौवें दौर की वार्ता में वे आगे बढ़ना चाहते है या नहीं। उन्होंने कहा कि किसान संगठनों के नेता और राकांपा सुप्रीमो शरद पवार समेत कई अन्य विपक्षी नेताओं ने भी उच्चतम न्यायालय के फैसले का स्वागत किया है।
प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने सभी पक्षों को सुनने के बाद इस मामले में अंतरिम आदेश पारित किया था।