विवादों में फंसी फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ की स्क्रीनिंग मंगलवार को दिल्ली के प्रतिष्ठित जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (JNU) में की गई। इसको लेकर वहां हंगामा शुरू हो गया। स्क्रीनिंग का स्टूडेंट्स फेडरेशन आफ इंडिया (SFI) के पदाधिकारियों ने विरोध किया और आरएसएस का पुतला फूंका। उन्होंने कहा कि एसएफआइ इस फिल्म की स्क्रीनिंग की निंदा और विरोध करता है। निर्माता विपुल शाह और डायरेक्टर सुदीप्तो सेन की इस फिल्म में कथित तौर पर केरल से 32000 महिलाओं के लापता होने और उनके इस्लामिक स्टेट से जुड़ने की बात बताई गई है। यही बात विवाद की जड़ बन गई है। केरल सरकार का कहना है कि इस फिल्म से राज्य को बदनाम किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि फिल्म में दिखाई गई बातें किसी भी लिहाज से सही नहीं है। यह भाजपा और आरएसएस का प्रोपेगेंडा है। फिल्म के निर्देशक सुदीप्तो सेन का कहना है, “…लोगों को इसे देखना चाहिए। अगर आप इसे पसंद करते हैं, तो यह मेरे लिए सबसे बड़ा पुरस्कार होगा। हमें अदालत पर 100% भरोसा है…इसलिए, हमें लगता है कि हमें न्याय मिलेगा। अंत में सच्चाई की जीत होती है।”

कनवेंशन सेंटर में विवेकानंद विचार मंच ने छात्रों के लिए कराई स्क्रीनिंग

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) कैंपस स्थित कनवेंशन सेंटर में मंगलवार को विवेकानंद विचार मंच ने ‘द केरला स्टोरी’ फिल्म की स्क्रीनिंग की। इसको देखने के लिए हजारों की संख्या में छात्र वहां पहुंचे। यह फिल्म पांच मई को सिनेमाघरों में रिलीज की जाएगी। फिल्म में लव जिहाद और धर्म परिवर्तन को मुख्य मुद्दा बनाया गया है।

एक मुस्लिम संस्था ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट का रुख कर केंद्र और सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) को सिनेमाघरों और ओटीटी प्लेटफॉर्म पर फिल्म “द केरल स्टोरी” की स्क्रीनिंग और रिलीज की अनुमति नहीं देने का निर्देश देने की मांग की। जमीयत उलमा-ए-हिंद ने कहा कि 5 मई को रिलीज होने वाली इस फिल्म से देश में ‘नफरत’ और ‘समाज के विभिन्न वर्गों के बीच दुश्मनी’ पैदा होने की आशंका है।

इससे पहले दिन में जस्टिस केएम जोसेफ और बीवी नागरत्ना की पीठ ने नफरत फैलाने वाले भाषणों के मामले में दायर एक याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें फिल्म की रिलीज पर रोक लगाने की मांग की गई थी। जमीयत ने अधिवक्ता एजाज मकबूल के माध्यम से दायर अपनी रिट याचिका में कहा, “फिल्म पूरे मुस्लिम समुदाय को नीचा दिखाती है और इससे हमारे देश में याचिकाकर्ताओं और पूरे मुस्लिम समुदाय के जीवन और आजीविका को खतरा होगा और यह भारत के संविधान के अनुच्छेदों 14 और 21 के तहत सीधा उल्लंघन है।”

याचिका में दावा किया गया है कि 2009 में केरल पुलिस की एक जांच से पता चला है कि राज्य में लव जिहाद का कोई सबूत नहीं था, और पुलिस का लगातार यह विचार रहा है कि गैर-मुस्लिमों को धर्मांतरित करने के लिए ऐसी कोई साजिश मौजूद नहीं है।

कहा, “2018 में राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने निष्कर्ष निकाला कि इस बात का कोई सबूत नहीं था कि केरल में महिलाओं को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया जा रहा था। एनआईए ने 89 मामलों में से 11 की जांच की जो कानून प्रवर्तन अधिकारियों के डेटाबेस में थे। यह पाया गया। कि लव जिहाद का कोई सबूत मौजूद नहीं है।”