सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को रिपब्लिक टीवी के एडिटर-इन-चीफ अर्णब गोस्वामी के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की याचिका पर सुनवाई की। अर्णब पर आरोप है कि उन्होंने अपने टीवी शो पर पालघर मॉब लिंचिंग केस में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी पर कथित तौर पर छवि बिगाड़ने वाली टिप्पणी की। इसी को लेकर उनके खिलाफ पांच राज्यों में मामले दर्ज हो चुके हैं।

अर्णब ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी। इस पर जस्टिस डीवाई चंद्रचूड और एमआर शाह की बेंच ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनवाई की। अर्णब के बचाव में उतरे वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि कोर्ट को उनके खिलाफ बलपूर्वक उठाए कदमों से सुरक्षा मिलनी चाहिए।

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रोहतगी ने बेंच को बताया कि अर्णब ने अपने शो में पालघर लिंचिंग का मुद्दा उठाया था, वह सिर्फ इस मामले में पुलिस की भूमिका पर सवाल उठा रहे थे। उन्होंने कहा कि अर्णब के खिलाफ मामले सिर्फ कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने दर्ज कराए हैं और यह सिर्फ कांग्रेस प्रमुख की छवि खराब करने से जुड़े आरोप हैं।

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इस पर महाराष्ट्र सरकार की तरफ से पेश हुए वकील कपिल सिब्बल ने शो का जिक्र करते हुए पूछा कि क्या यही बोलने की आजादी है। सिब्बल ने कहा कि इस तरह के बयान देकर आप सांप्रदायिक हिंसा भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। अगर एफआईआर दर्ज हुई हैं, तो आप इसे रद्द क्यों करवाना चाहते हैं। जांच होने दीजिए। इसमें परेशानी क्या है ?

इस पर मुकुल रोहतगी ने कहा कि अर्णब गोस्वामी राजनीतिक व्यक्ति नहीं हैं, वे मीडिया से जुड़े हैं और उन्हें दर्ज हुई शिकायतों से सुरक्षा मिलनी चाहिए। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें तीन हफ्ते के लिए किसी भी तरह की कार्रवाई से अंतरिम राहत देने का ऐलान कर दिया। कोर्ट ने यह भी कहा कि अर्णब चाहें तो इन मामलों में अग्रिम जमानत याचिका दायर कर सकते हैं, लेकिन उन्हें जांच एजेंसियों के साथ सहयोग करना होगा। कोर्ट ने सभी एफआईआर पर स्टे लगाया। हालांकि, नागपुर में दर्ज एक एफआईआर को मुंबई ट्रांसफर करने का आदेश दिया। साथ ही मुंबई पुलिस कमिश्नर को अर्णब को सुरक्षा मुहैया कराने के निर्देश दिए।