सुप्रीम कोर्ट का कोलेजियम केंद्र सरकार से नाखुश बताया जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक, केंद्र सरकार कथित तौर पर न्यायपालिका की नियुक्तियों से जुड़ी ड्राफ्ट मेमोरेंडम ऑफ प्रोसिजर (MoP) की कुछ धाराओं का इस्तेमाल करके हायर जुडिशरी में नियुक्तियों को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा है। सूत्रों ने बताया कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया टीएस ठाकुर सरकार को इस बारे में चिट्ठी लिखकर ड्राफ्ट एमओपी के खिलाफ कोलेजियम की एकराय जाहिर कर सकते हैं।
पता चला है कि कोलेयिजम ने इस मुद्दे पर हाल ही में बैठक की। उसका मानना है कि केंद्र की ओर से तय किए गए MoP एनडीए सरकार की न्यायिक घोषणाओं और हायर जुडिशरी में अप्वाइंटमेंट्स से जुड़े पहले से तय कानूनों को प्रभावित करने की कोशिश है। बीते साल संसद की ओर से पास नेशनल जुडिशल अप्वाइंटमेंट कमिशन (NJAC) को अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट ने गैर संवैधानिक बताते हुए खारिज कर दिया था। जस्टिस जगदीश सिंह खेहर की अगुआई वाली कोर्ट की बेंच ने केंद्र सरकार को यह भी निर्देश दिए थे कि वह चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया से राय करके मेमोरेंडम ऑफ प्रोसिजर (MoP) तय करे।
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जानकारों का मानना है कि मेमोरेंडम ऑफ प्रोसिजर (MoP) के ड्राफ्ट में अप्वाइंटमेंट सिस्टम को और ज्यादा ट्रांसपेरेंट बनाने की कोई कोशिश नहीं की गई है। कुछ ऐसी ही शिकायत NJAC एक्ट पर संसद में बहस के दौरान कोलेजियम सिस्टम को लेकर भी की गई थी। यह ड्राफ्ट केंद्र सरकार को इस बात की इजाजत देता है कि वो राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर कोलेजियम के सुझाए किसी भी नाम को खारिज कर सकती है। यह ड्राफ्ट केंद्र सरकार ने 22 मार्च को भेजा है। इसमें यह भी लिखा है कि अगर सरकार सिफारिश रद्द कर देती है तो कोलेजियम उसे दोबारा नहीं भेजेगी। सूत्रों ने कहा कि इस धारा की रूपरेखा बहुत विस्तृत है और सरकार को किसी भी ऐसे नाम पर बिना किसी कारण वीटो लगाने की सहूलियत देगा, जिसे वो पसंद नहीं करती। कोलेजियम को यह भी लगता है कि इससे सरकार के पास ऐसे अधिकार व शक्ति रहेंगे जिससे जुडिशरी की स्वतंत्रता कमजोर होगी। हालांकि, सरकार और कोलेजियम दोनों इस विषय में एकराय हैं कि इन नियुक्तियों को राइट टू इन्फॉर्मेशन एक्ट के दायरे से बाहर रखा जाए।
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सूत्रों ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि सीजेआई ठाकुर और चार अन्य वरिष्ठतम जजों ने मेमोरेंडम ऑफ प्रोसिजर (MoP) पर हाल ही में सघन राय मशविरा किया। जजों में एकराय बनी कि यह ड्राफ्ट अपने वर्तमान स्वरूप में ‘स्वीकार्य’ नहीं है और इसमें कई बदलावों की जरूरत है।
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