रूस की बमबारी और हमलों से जूझते संकटग्रस्त यूक्रेन से भले ही कई भारतीय छात्र वतन वापस आ गए हों, मगर अभी भी काफी स्टूडेंट्स वहां के विभिन्न हिस्सों में फंसे हैं। ऐसे ही छात्र-छात्राओं में बिहार के ईस्ट चंपारण में छौड़ादानो गांव की रहने वाली वैष्णवी सिंह भी हैं। 23 साल की छात्रा वहां के बोगोमोलेट्स (Bogomolets) विवि से मेडिकल की पढ़ाई (एमबीबीएस फोर्थ ईयर) कर रही हैं।
जनसत्ता डॉट कॉम ने उनसे बात कर वहां के हालात जानने की कोशिश की, पर किन्हीं कारणों से संपर्क न हो सका। हालांकि, उनकी बहन उन्नति सिंह से जरूर बात हुई, जिन्होंने बताया कि बहन अभी भी वहीं है। बकौल उन्नति, “उन लोगों को कॉलेज से अटैक के बारे में जानकारी दी गई थी। पर शैक्षणिक संस्थान की ओर से कह दिया गया था कि वे लोग अपने जोखिम पर भारत जाएं। इस दौरान संस्थान छात्रों से ऐप्लीकेशन लिखा रहा था कि वे लोग या तो अपने रिस्क पर जाएं या फिर कोरोना का हवाला देकर निकलें।”
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उन्नति के मुताबिक, बहन के विवि की ओर से तब यह भी कहा गया था कि उनके देश में कोई संकट नहीं है। हालांकि, इस आरोप पर शैक्षणिक संस्थान की टिप्पणी नहीं मिल पाई। वैसे, कुछ बच्चे तो इसी साल फरवरी में यूक्रेन पढ़ाई के लिए पहुंचे थे, पर इस स्थिति में वे अब वापस लौटने की राह देख रहे हैं।
बमबारी, धमाकों और बंकर से जुड़े अपने बहन के अनुभव के बारे में पूछे जाने पर उन्नति बोलीं- मेरी बहन राजधानी कीव में है। वह आठ बच्चों के उस ग्रुप में शामिल है, जो तनावपूर्ण माहौल में फिलहाल बंकर में दिन-रात गुजारने को मजबूर हैं। वे लोग दिन में खाने-पीने के बाद सिर्फ एक बार जरूरी होने पर बाहर निकल पाते हैं। बंकर में वॉट्सऐप पर मैसेज के जरिए बात हो पाती है, जबकि बाहर आने पर वह वीडियो कॉल करती है। बंकर में रहने के दौरान वैष्णवी को बम धमाकों की आवाजें भी सुनाई दीं।
फंसने पर डरे के साए में आए कई स्टूडेंट्सः इस बीच, Bukovinian State Medical University में फर्स्ट ईयर की स्टूडेंट रितुजा (19) रविवार तड़के भारत लौटीं। सही-सलामत महाराष्ट्र स्थित अपने घर पहुंचने पर उन्होंने हमें बताया- मुझे तो घर वालों से कॉल आने के बाद पता लगा था कि यूक्रेन में रूस का हमला हुआ है। उस वक्त बहुत डर लग रहा था। हालांकि, इस दौरान यह भी आश्वासन दिया जा रहा था कि इंडियन एंबैसी हमें बचाकर भारत ले जाएगी। हम (तीन बसों में 70 स्टूडेंट्स) परसों बस से रोमानिया बॉर्डर होते हुए वहां के एयरपोर्ट ले जाए गए, जबकि फिर बॉम्बे आए। भारतीय दूतावास ने रोमानिया बॉर्डर से भारत आने तक उन सब लोगों का खर्च उठाया है।
चूंकि, रितुजा यूक्रेन के पश्चिमी हिस्से में थीं, इस लिहाज से उन्हें किसी तनावपूर्ण स्थिति का सामना नहीं करना पड़ा। उनसे जब पूछा गया कि क्या उनके संस्थान ने भी भारत वापसी पर किसी प्रकार की ऐप्लिकेशन मांगी है, तब उन्होंने और उनकी एक सहेली ने बताया- नहीं। हमारी कंस्लटेंसी फर्म (एमडी हाउस) और भारतीय दूतावास ने हमें वापस लाने के लिए हर संभव मदद की। कॉलेज के डीन आदि बॉर्डर तक छोड़ने आए थे। हालांकि, संस्थान की ओर से इतना जरूर कहा गया कि जब क्लासेज़ ऑफलाइन होंगी, तब उन लोगों को वापस वहां आना होगा।
उधर, पीएम नरेंद्र मोदी ने अपने रेडियो कार्यक्रम “मन की बात” कार्यक्रम में 27 फरवरी को बताया कि अब तक यूक्रेन से 700 छात्र भारत लौट चुके हैं। बता दें कि युद्धग्रस्त यूक्रेन में फंसे हुए हिंदुस्तानी स्टूडेंट्स की कुल संख्या 20 हजार के आसपास बताई गई थी।