अर्थव्यवस्था को रफ्तार देने वाली सड़कें देश के विकास में अहम भूमिका निभा रही हैं, लेकिन आए दिन होने वाले सड़क हादसे सवालिया निशान भी खड़े कर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की ओर से वैश्विक सड़क सुरक्षा सप्ताह के दौरान जारी एक रपट के अनुसार, वैश्विक स्तर पर सड़क दुर्घटनाओं में प्रतिवर्ष दस लाख पैंतीस हजार से अधिक मौतें होती हैं और पांच करोड़ से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल होते हैं। रपट के अनुसार, विश्व में सड़क दुर्घटनाओं के कारण होने वाली कुल मौत में से 11 फीसद भारत में होती हैं। भारत के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में वर्ष 2018 में आधिकारिक तौर पर करीब पांच लाख सड़क दुर्घटनाएं दर्ज की गईं। रपट कहती है कि विश्व भर में सड़क दुर्घटनाओं के कारण हर 23 सेकंड में एक व्यक्ति की मृत्यु होती है।

सड़क दुर्घटनाओं के कारण भारत को होने वाले नुकसान को लेकर विश्व बैंक के आकलन के अनुसार, 18-45 आयु वर्ग के लोगों की सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मृत्यु दर सर्वाधिक 69 फीसद है। इसके अलावा 54 फीसद मौत पैदल यात्रियों, साइकिल चालकों और दुपहिया सवारों की होती है। वर्ष 2017 में तमिलनाडु में सबसे अधिक सड़क दुर्घटनाएं दर्ज की गई थीं, पर दुर्घटनाओं मारे गए लोगों की संख्या उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक थी। विश्व सड़क सांख्यिकी के अनुसार, 2018 में सड़क दुर्घटना से होने वाली मौत की संख्या में भारत दुनिया में पहले स्थान पर था। इसके बाद चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका का नंबर आता है। वहीं वेनेजुएला में प्रति एक लाख जनसंख्या पर मरने वाले व्यक्तियों की संख्या डराने वाली है।

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केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, देश भर में होने वाली कुल सड़क दुर्घटनाओं में से 76 फीसद तय सीमा से अधिक रफ्तार और यातायात नियमों के उल्लंघन के कारण होती हैं। वहीं कुल सड़क हादसों में दुपहिया वाहनों और पैदल चलने वाले सबसे अधिक शिकार होते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इसके बावजूद सड़क यातायात में इंजीनियरिंग और नियोजन के दौरान इस विषय पर ध्यान नहीं दिया जाता। भारत में सड़क यातायात इंजीनियरिंग और नियोजन केवल सड़कों को विस्तृत करने तक सीमित है, जिसके कारण कई बार सड़कों और राजमार्गों पर ‘ब्लैक स्पाट’ बन जाते हैं। ये वह स्थान होते हैं, जहां सड़क दुर्घटना की संभावना सबसे अधिक रहती है। सड़क हादसों के कारण होने वाली 80 फीसद मौत के लिए वाहन चालक प्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार होते हैं। यह तथ्य देश में अच्छे ड्राइविंग स्कूलों की कमी की ओर भी इशारा करता है।

साल 2022 में देश में कुल 4,61,312 सड़क दुर्घटनाएं

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की रपट ‘भारत में सड़क दुर्घटनाएं’ में कहा गया है कि वर्ष 2022 में देश में कुल 4,61,312 सड़क दुर्घटनाएं हुईं, जिनमें 1,68,491 लोगों ने अपनी जान गंवाई। कुल 4,43,366 लोग घायल हो गए। रपट कहती है कि सड़क दुर्घटना में लगभग 68 फीसद मौतें ग्रामीण क्षेत्रों में हुईं, जबकि कुल मौतों में शहरी क्षेत्रों का हिस्सा 32 फीसद रहा। कुल दुर्घटनाओं में दुपहिया वाहनों की हिस्सेदारी सर्वाधिक रही। कार, जीप और टैक्सियों सहित हल्के वाहन दूसरे स्थान पर रहे। वहीं, कुल मृत्यु के मामलों में दुपहिया सवारों की संख्या सबसे अधिक (44.5 फीसद) थी। पैदल चलने दूसरे स्थान (19.5 फीसद) पर रहे। सबसे अधिक सड़क दुर्घटनाएं तमिलनाडु में 13.9 फीसद दर्ज की गईं। इसके बाद 11.8 फीसद के साथ मध्यप्रदेश का स्थान आता है। सड़क दुर्घटनाओं के कारण सबसे अधिक मौतें उत्तर प्रदेश में 13.4 फीसद हुईं। इसके बाद तमिलनाडु 10.6 फीसद के साथ दूसरे स्थान पर रहा। आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, नगालैंड और केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप में सड़क दुर्घटनाओं की संख्या पिछले साल दर्ज सड़क हादसों की संख्या की तुलना में कम थी।

2030 तक 50 फीसदी कम करने का लक्ष्य

वैश्विक स्तर पर सड़क सुरक्षा से संबंधित पहल के तहत साल 2015 में ब्रासीलिया घोषणा पत्र लागू किया गया था। इस घोषणा पर ब्राजील में आयोजित सड़क सुरक्षा पर दूसरे वैश्विक उच्च-स्तरीय सम्मेलन के दौरान हस्ताक्षर किए गए। हस्ताक्षर करने वाले सभी देशों ने परिवहन के अधिक स्थायी साधनों जैसे पैदल चलना, साइकिल चलाना और सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने के लिए परिवहन नीतियों के निर्माण पर जोर दिया। भारत भी इस घोषणापत्र का एक हस्ताक्षरकर्ता देश है। इसके तहत सभी देशों की योजना सतत विकास लक्ष्य 3.6 यानी वर्ष 2030 तक सड़क यातायात दुर्घटनाओं से होने वाली वैश्विक मौत की संख्या को आधा करने की है। वहीं संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2030 तक कम से कम 50 फीसद सड़क यातायात दुर्घटनाओं से होने वाली मौत को रोकने के लक्ष्य के साथ वैश्विक सड़क सुरक्षा में सुधार संकल्प को अपनाया है। वैश्विक योजना सड़क सुरक्षा के लिए समग्र दृष्टिकोण के महत्त्व पर बल देते हुए भारत का नजरिया स्टाकहोम घोषणा के अनुरूप है।

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वैसे तो सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाने के लिए केंद्र सरकार अपने स्तर पर काफी प्रयास कर रही है, लेकिन अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पा रहे हैं। सड़क सुरक्षा के बारे में प्रभावी जन जागरूकता बढ़ाने के लिए सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की ओर से मीडिया के सभी माध्यमों द्वारा प्रचार और जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं। इसके अलावा मंत्रालय सड़क सुरक्षा समर्थन के संचालन के लिए विभिन्न एजंसियों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए भी योजना का संचालन कर रहा है। इंजीनियरिंग योजना स्तर पर सड़क सुरक्षा को सड़क डिजाइन का एक अभिन्न अंग बनाया गया है। सभी राजमार्ग परियोजनाओं का सभी चरणों में सड़क सुरक्षा आडिट अनिवार्य किया गया है। इसके साथ ही मंत्रालय ने वाहन की अगली सीट पर ड्राइवर की बगल में बैठे यात्री के लिए एयरबैग के अनिवार्य प्रावधान को लागू किया है। इसके साथ ही कानूनों और प्रवर्तन में सुधार, ढांचागत परिवर्तनों के माध्यम से सड़कों को सुरक्षित बनाना और सभी वाहनों में जीवनरक्षक तकनीक अनिवार्य करने पर जोर है।

हेलमेट और सीट बेल्ट के प्रयोग को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता

असल में सड़क हादसों में कमी लाने के लिए जरूरी है कि लोगों के व्यवहार में परिवर्तन लाने का प्रयास किया जाए। हेलमेट और सीट बेल्ट के प्रयोग को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है, क्योंकि अधिकांश सड़क दुर्घटनाएं इनका प्रयोग न करने से होती हैं। लोगों को शराब पीकर गाड़ी न चलाने के प्रति जागरूक करने की जरूरत है। वहीं दुर्घटना के बाद तत्काल प्राथमिक चिकित्सा उपलब्ध कराना और पीड़ित को जल्द अस्पताल पहुंचाने की व्यवस्था करने से कई लोगों की जान बचाई जा सकती है। दुर्घटना के बाद आसपास खड़े लोग घायल की जान बचाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। सड़कों की योजना, डिजाइन और संचालन के दौरान सुरक्षा पर ध्यान सड़क दुर्घटनाओं में मौत को कम करने में प्रभावी योगदान दे सकता है। जब तक इन सुझावों पर ध्यान नहीं दिया जाएगा, तब तक सड़क दुर्घटनाओं को कम करना संभव नहीं होगा। जरूरी है कि सड़क सुरक्षा से संबंधित सभी पहलुओं पर विचार करते हुए आवश्यक उपायों की खोज की जाए।

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केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, देश भर में होने वाली कुल सड़क दुर्घटनाओं में से 76 फीसद तय सीमा से अधिक रफ्तार और यातायात नियमों के उल्लंघन के कारण होती हैं। वहीं कुल सड़क हादसों में दुपहिया वाहनों और पैदल चलने वाले सबसे अधिक शिकार होते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इसके बावजूद सड़क यातायात में इंजीनियरिंग और नियोजन के दौरान इस विषय पर ध्यान नहीं दिया जाता। भारत में सड़क यातायात इंजीनियरिंग और नियोजन केवल सड़कों को विस्तृत करने तक सीमित है, जिसके कारण कई बार सड़कों और राजमार्गों पर ‘ब्लैक स्पाट’ बन जाते हैं।