Justice Yashwant Varma: जस्टिस यशवंत वर्मा के आवास पर नकदी मिलने के आरोपों की जांच के लिए गठित आंतरिक समिति ने सीजेआई संजीव खन्ना को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। जिसमें जस्टिस वर्मा को दोषी ठहराया गया है।

बार एंड बेंच ने उच्च पदस्थ सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बताया कि उन्हें इस्तीफा देना ही होगा और यदि वह ऐसा नहीं करते हैं तो उनके खिलाफ महाभियोग चलाने की सिफारिश करते हुए रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेजी जाएगी।

सूत्र ने बार एंड बेंच को बताया कि रिपोर्ट में उन पर आरोप लगाया गया है। प्रक्रिया के अनुसार, सीजेआई ने उनसे पूछताछ की है। उन्हें दिया गया पहला विकल्प इस्तीफा देना है। अगर वह इस्तीफा देते हैं, तो यह अच्छा है। अगर वह ऐसा नहीं करते हैं, तो महाभियोग की सिफारिश करते हुए रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेजी जाएगी।

यह भी समझा जाता है कि जस्टिस वर्मा को सीजेआई को जवाब देने के लिए शुक्रवार, 9 मई तक का समय दिया गया है।

सीजेआई संजीव खन्ना द्वारा गठित समिति में पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस शील नागू , हिमाचल हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस जीएस संधावालिया और कर्नाटक हाई कोर्ट के जस्टिस अनु शिवरामन शामिल थे। पैनल ने 25 मार्च को जांच शुरू की थी और 4 मई को अपनी रिपोर्ट ,सीजेआई खन्ना को सौंप दी थी ।

बता दें, 14 मार्च की शाम को जस्टिस वर्मा के घर में आग लगने के बाद कथित तौर पर अग्निशमन कर्मियों ने बेहिसाब नकदी बरामद की थी।

जस्टिस वर्मा और उनकी पत्नी उस समय दिल्ली में नहीं थे और मध्य प्रदेश में यात्रा कर रहे थे। आग लगने के समय घर पर केवल उनकी बेटी और वृद्ध मां ही थीं। बाद में एक वीडियो सामने आया जिसमें आग में नकदी के बंडल जलते हुए दिखाई दे रहे थे।

इस घटना के बाद जस्टिस वर्मा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे। हालांकि, उन्होंने आरोपों से इनकार किया और कहा कि यह उन्हें फंसाने की साजिश रची गई है। इसके बाद सीजेआई ने आरोपों की आंतरिक जांच शुरू की और जांच के लिए 22 मार्च को तीन सदस्यीय समिति गठित की थी।

जली हुई नकदी का वीडियो दिल्ली पुलिस कमिश्नर ने हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के साथ शेयर किया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इसे सार्वजनिक किया और एक अभूतपूर्व घटनाक्रम में जस्टिस वर्मा के जवाब के साथ घटना पर दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस की प्रारंभिक रिपोर्ट भी प्रकाशित की।

आरोपों के बाद जस्टिस वर्मा को उनके मूल हाई कोर्ट , इलाहाबाद हाई कोर्ट में वापस भेज दिया गया , जहां हाल ही में उन्हें पद की शपथ दिलाई गई थी।

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हालांकि, सीजेआई के निर्देश पर जस्टिस से न्यायिक कार्य अस्थायी रूप से छीन लिया गया है। इससे पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट बार एसोसिएशन ने जस्टिस वर्मा की वापसी के विरोध में हड़ताल की थी।

आंतरिक जांच के लंबित रहने को देखते हुए, न्यायिक पक्ष से सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) दर्ज करने की मांग वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।

आंतरिक जांच शुरू होने के तुरंत बाद जस्टिस वर्मा ने कथित तौर पर वरिष्ठ वकीलों की एक टीम से कानूनी सलाह मांगी। वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ अग्रवाल और अरुंधति काटजू और अधिवक्ता तारा नरूला, स्तुति गुजराल और एक अन्य वकील उनके आवास पर आए थे।

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