रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे उर्जित पटेल ने एक बार फिर आर्थिक व्यवस्थाओं से जुड़े एक इकोनॉमिक थिंक टैंक में वापसी की है। पटेल 22 जून को देश के जाने-माने थिंक टैंक नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (NIPFP) से बतौर चेयरमैन जुड़ेंगे। उनका कार्यकाल चार साल का होगा। शुक्रवार को ही NIPFP ने इसका ऐलान किया।

उर्जित पटेल 4 सितंबर 2016 से लेकर 10 दिसंबर 2018 तक आरबीआई के गवर्नर रहे थे। हालांकि, अपना कार्यकाल पूरा कर पाने से पहले ही उन्होंने निजी कारणों का हवाला देते हुए यह पद छोड़ दिया था। अब करीब 18 महीने बाद वे अर्थशास्त्री के तौर पर एक्टिव ड्यूटी में लौटेंगे। बता दें कि NIPFP वित्त मंत्रालय और पूर्व में प्लानिंग कमीशन और राज्य सरकारों के सहयोग से बनाया गया स्वायत्त संस्थान है। यह सरकार से अलग अपने स्वतंत्रता के लिए जाना जाता है। NIPFP हर साल पब्लिक पॉलिसी पर रिसर्च के आधार पर ही केंद्र और राज्य सरकारों को सलाह देता है।

उर्जित पटेल के सरकार से जुड़े इस संस्थान में लौटने से संकेत मिलते हैं कि केंद्र सरकार उनके अनुभव के जरिए कोरोनावायरस से अर्थव्यवस्था को हुए नुकसान से पार पाना चाहता है और इसी सिलसिले में कोई लंबी अवधि की नीति पर योजना तैयार रखना चाहता है। गौरतलब है कि पटेल की नियुक्ति NIPFP की गवर्निंग काउंसिल की तरफ से हुई है। इसमें राजस्व सचिव, आर्थिक मामलों के सचिव और केंद्रीय वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार शामिल रहते हैं। इसके अलावा नीति आयोग, रिजर्व बैंक के अलावा राज्य सरकारें भी इसका हिस्सा हैं। इसी काउंसिल ने गुरुवार को बैठक के बाद उर्जित पटेल को संस्थान का चेयरमैन नियुक्त किया।

उर्जित पटेल इस पद पर काबिज ब्योरेक्रेट विजय केलकर की जगह लेंगे। केलकर ने करीब करीब 6 साल तक NIPFP में अध्यक्ष के तौर पर जिम्मेदारी संभाली। उर्जित पटेल की नियुक्ति से पहले ही NIPFP के निदेशक रथिन रॉय और उपाध्यक्ष सुमित बोस ने इस्तीफ दे दिया। बताया गया है कि गवर्निंग काउंसिल जल्द ही नए निदेशक की खोज भी शुरू कर सकती है। सुमित बोस के मुताबिक, उन्होंने यह पद इसलिए छोड़ा क्योंकि वे कोलकाता शिफ्ट हो गए हैं।