कैप्टन सौरभ कालिया उन भारतीय सैनिकों में से एक थे जिन्होंने पाकिस्तान के हाथों पकड़े जाने के बाद भयंकर यातनाएं सहीं। उन्होंने ही सबसे पहले इस खबर की पुष्टि की थी कि पाकिस्तानी सेना और उसके घुसपैठिए भारतीय पहाड़ों की चोटी पर चढ़ आए हैं। 15 मई, 1999 को घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए कैप्टन सौरभ कालिया अपने साथियों अर्जुन राम, भंवर लाल बघेरिया, बीकाराम, मूलाराम और नरेश सिंह के साथ नियंत्रण रेखा पर काफी आगे चले गए और वहां जब पूरे दिन की गश्त के बाद रात को हमला करने की योजना बना कर ये आराम कर रहे थे तो जाट रेजीमेंट के इन सभी अफसरों का पाकिस्तानी सैनिकों ने अपहरण कर लिया।
सौरभ कालिया और उसके साथियों की लाशें 9 जून 1999 को भारत को सौंपी गई। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के में उनके साथ बर्बरतापूर्ण व्यवहार की बात सामने आई। सैनिकों को सिगरेट्स से जलाया गया, उनके कानों में गर्म सलाखें डाली गईं, आखें निकालने से पहले उनमें छेद किए गए, उनकी खोपड़ी में फ्रैक्चर पाया गया और उनके अंग व प्राइवेट पार्ट गोली मारने से पहले काट दिए गए थे।
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भारत ने जेनेवा संधि के तहत युद्ध के बंदियों के साथ व्यवहार के अंर्तराष्ट्रीय नियमों के उल्लंघन पर पाकिस्तान के सामने यह मामला उठाया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। पिछली जुलाई में, विदेश राज्यमंत्री वीके सिंह ने संसद में एक प्रश्न के जवाब में कहा था, “अंर्तराष्ट्रीय अदालतों के जरिए कानूनी सहायता पाने की तमाम संभावनाओं की तलाश की गई लेकिन ऐसा करना संभव नहीं पाया गया।”
कालिया के पिता ने पिछले साल सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दाखिल की थी, जिसमें उन्होंने भारत सरकार से मामले को अंर्तराष्ट्रीय न्यायालय में ले जाने को कहा था। सरकार ने दिसंबर में एक एफिडेविट फाइल किया जिसमें कहा गया कि भारत और पाकिस्तान के बीच विवाद अंर्तराष्ट्रीय न्यायालय की परिधि से बाहर हैं। एक पीआईल के आधार पर किसी देश पर कार्रवाई नहीं की जा सकती क्योंकि विदेश नीति सरकार के जिम्मे है।