दक्षिण दिल्ली में धार्मिक समूह की संपत्ति पर नया विवाद छिड़ गया है। सवाल यह है कि क्या दक्षिण दिल्ली के भट्टी इलाके में राधा स्वामी सत्संग ब्यास (RSSB) के पास मौजूद ज़मीन के टुकड़ों को वन भूमि माना जाता है? दिल्ली का राजस्व विभाग कहता है कि नहीं जबकि वन विभाग ज़ोर देकर कहता है कि ऐसा ही है जिससे उस ज़मीन को लेकर एक नया विवाद शुरू हो गया है। भट्टी इलाके में इस धार्मिक संगठन का केंद्र स्थित है।

इस बीच, RSSB का कहना है कि यह ज़मीन उन्हें 1988 और 1989 में लीज़ डीड के ज़रिए गांव सभा द्वारा वृक्षारोपण के उद्देश्य से पट्टे पर दी गई थी। 2023 में, वन बंदोबस्त अधिकारी (FSO) के समक्ष एक आवेदन में, RSSB ने अनुरोध किया कि भट्टी में लगभग 140 बीघा ज़मीन को वन भूमि के रूप में चिह्नित करने से बाहर रखा जाए। अतिरिक्त ज़िला मजिस्ट्रेट (ADM) ही FSO होते हैं और वे उस ज़मीन पर दावों की जांच और निर्णय कर सकते हैं जिसे वन भूमि के रूप में अधिसूचित करने का प्रस्ताव है।

सरकार वन विभाग के अधीन भूमि को ‘आरक्षित वन’ के रूप में चिह्नित नहीं कर सकती

इस मामले की सुनवाई पिछले साल हुई थी। अक्टूबर 2024 में जारी एक आदेश में, एफएसओ ने आरएसएसबी की याचिका स्वीकार कर ली। एफएसओ का तर्क था कि जब तक वन विभाग द्वारा पट्टे के दस्तावेजों को चुनौती नहीं दी जाती या सक्षम प्राधिकारी द्वारा रद्द नहीं कर दिया जाता, तब तक सरकार वन विभाग के अधीन भूमि को ‘आरक्षित वन’ के रूप में चिह्नित नहीं कर सकती।

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एफएसओ के समक्ष अपनी दलीलों में, आरएसएसबी ने कहा कि 1988 में यह जमीन दिल्ली भूमि सुधार (डीएलआर) अधिनियम, 1954 की एक धारा के अंतर्गत आती थी। यह धारा कृषि, बागवानी, मत्स्य पालन, पशुपालन और मुर्गी पालन से संबंधित उद्देश्यों के लिए रखी गयी भूमि को संदर्भित करती है। हालांकि, 1996 में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश में निर्देश दिया गया था कि रिज क्षेत्र में आने वाली अनावश्यक गांव सभा की ज़मीन को वन विभाग के अधीन आरक्षित वन का हिस्सा बनाया जा सकता है। राजस्व विभाग ने उसी वर्ष एक अधिसूचना जारी की थी।

आरएसएसबी का तर्क- उसकी ज़मीन को अनावश्यक या गांव सभा की अतिरिक्त ज़मीन नहीं माना जा सकता

आरएसएसबी ने तर्क दिया कि उसकी ज़मीन को अनावश्यक या गांव सभा की अतिरिक्त ज़मीन नहीं माना जा सकता क्योंकि यह गांव सभा द्वारा पट्टे पर दी गई है और कृषि योग्य जमीन है। हालाँकि 1994 में ‘आरक्षित वन’ की रूपरेखा निर्धारित करते हुए एक प्रारंभिक अधिसूचना जारी की गई थी लेकिन जमीन की सुरक्षा के लिए अंतिम अधिसूचना दावों के निपटारे और अतिक्रमणों के हटने के बाद ही जारी की जा सकती है। वन विभाग ने अपनी दलीलों में कहा कि अंतिम अधिसूचना जारी नहीं की जा सकती क्योंकि याचिकाकर्ता ने संबंधित जमीन पर अतिक्रमण कर लिया है।

वन विभाग ने दायर की अपील

वन विभाग ने इस साल की शुरुआत में डिविशनल कमिश्नर (एफएसओ द्वारा तय किए गए मामलों के लिए अपीलीय प्राधिकारी) के समक्ष इस मामले में अपील दायर की थी। यह कहते हुए कि यह आदेश गलत मिसाल कायम करेगा, वन विभाग ने एफएसओ के आदेश को रद्द करने की माँग की। मामला फिलहाल पेंडिंग है। 2020 और 2021 में, आरएसएसबी ने असोला और भट्टी में अपनी ज़मीन को वन भूमि के बदले में देने के लिए एफएसओ के समक्ष चार आवेदन दायर किए। फिर उसने 2023 में इन्हें वापस ले लिया और एफएसओ के समक्ष तीन और आवेदन दायर करके इन ज़मीनों को वन भूमि से बाहर करने की मांग की।

2019 में, राजस्व और वन विभागों द्वारा संयुक्त सर्वेक्षण के बाद, रिज पर अतिक्रमणों को चिह्नित करने वाला एक दस्तावेज़, तत्कालीन संभागीय आयुक्त द्वारा राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) को रिज के संरक्षण की मांग वाले एक मामले में प्रस्तुत किया गया था। 2021 में इस मामले में एक आदेश में, एनजीटी ने दिल्ली सरकार से अतिक्रमण हटाने के लिए एक कार्य योजना तैयार करने को कहा था।

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