एनआरसी और संशोधित नागरिकता कानून को लेकर देश भर में विरोध प्रदर्शन जारी है। शुक्रवार को इसके कानून के विरोध में देश के कई हिस्सों में मार्च निकाला गया था। इस मार्च के खिलाफ पुलिस ने कार्यवाही करते हुए प्रदर्शन कर रहे दर्जनों लोगों को पुलिस ने हिरासत में लिया। इनमें से एक नाम मशहूर इतिहासकर व लेखक रामचंद्र गुहा का भी था। गुहा को बेंगलुरु के टाउन हॉल से बृहस्पतिवार को हिरासत में लिया गया था। विरोध प्रदर्शन और बहस के बीच गुहा ने कहा कि असली टुकड़े -टुकड़े गिरोह दिल्ली में बैठे भारत के शासक हैं। इंडिया टुडे टीवी से बात करते हुए, रामचंद्र गुहा ने कहा कि दिल्ली में बैठे लोग “असली बटवारा” लोग हैं।
रामचंद्र गुहा ने कहा, “असली टुकड़े -टुकड़े गिरोह दिल्ली में बैठे भारत के शासक हैं। वे बटवारा करने वाले असली लोग हैं। वे देश को सिर्फ धर्म पर नहीं, बल्कि भाषा पर भी विभाजित कर रहे हैं और हम उनका अहिंसात्मक ढंग से विरोध करेंगे।” उनकी हिरासत के बारे में पूछे जाने पर, रामचंद्र गुहा ने कहा कि वह बेंगलुरु में लागू धारा 144 का उल्लंघन नहीं कर रहे थे। उन्होंने आगे कहा कि धारा 144 औपनिवेशिक युग का कानून था और इसका इस्तेमाल हमारे स्वतंत्रता आंदोलन के अहिंसक संघर्ष को दबाने के लिए किया गया था। रामचंद्र गुहा ने कहा “नागरिकता संशोधन अधिनियम एक ध्रुवीकरण कानून है। मुजह हिरासत में अवैध तरीके से लिया गया था। हम किस तरह का लोकतंत्र बन रहे हैं? मैंने आज पुलिसकर्मियों के लिए सहानुभूति महसूस की क्योंकि वे शर्मिंदा थे और वे ऊपर से आए आदेशों पर काम कर रहे थे। उन्हें पता था कि धारा 144 लगाने का कोई कारण नहीं था, इसे लागू करने की कोई जरूरत नहीं थी।”
जब उनसे पूछा गया कि वह पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से कैसे जवाब की उम्मीद करते हैं, तो रामचंद्र गुहा ने कहा, “गांधी का जन्म गुजरात में हुआ था, लेकिन वह गुजरात के प्रति जुनूनी नहीं थे। वह हिंदू पैदा हुए थे, लेकिन वे हिंदू धर्म के लिए कट्टर नहीं थे। गांधी एक भारतीय थे लेकिन वह दुनिया से सीखने को तैयार थे। शाह-मोदी जो ध्रुवीकरण की राजनीति कर रहे है वह हमें अपने संस्थापकों की नजरों में ही नहीं बल्कि दुनिया के सामने शर्मसार कर रहा है। मोदी-शाह जो इस वक्त कर रहे हैं, उससे गांधी और अंबेडकर (अगर होते) को भी शर्म आ जाती।”
महात्मा गांधी की बॉयोग्राफी के लिए जाने-जाने वाले रामचंद्र गुहा ने कहा कि हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्रवाद का आइडिया 18वीं-19वीं शताब्दी के यूरोपीय राष्ट्रों से लिया गया है। इन राष्ट्रों में उस समय एक तपके को निशान बनाकर, एक भाषा, एक संस्कृति और एक नेता के विचार को बढ़ावा देकर राष्ट्रीय शक्ति बनाने का चलन था।