भारत में हो रही सम्प्रदायिक हिंसा को लेकर रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने चिंता जाहिर की है। गुरुवार को उन्होंने कहा कि देश की ‘अल्पसंख्यक विरोधी’ छवि से भारतीय उत्पादों की विदेशी बाजारों में मांग कम हो सकती है और दूसरे देश भारत को एक अविश्वसनीय साझेदार के रूप में मान सकते हैं। इसके साथ उन्होंने कहा कि भारत एक धारणा की लड़ाई में प्रवेश कर चुका है, जिसमें हम सबका नुकसान है।

टाइम्स नेटवर्क इंडिया इकोनॉमिक कॉन्क्लेव में रघुराम राजन ने कहा कि “लोकतंत्र में देश के हर नागरिक के साथ समान व्यवहार किया जाता है। आप जानते हैं जब विदेशों में किसी देश का बना उत्पाद बिकता है तो ग्राहक कहते हैं कि मैं इस देश से कोई चीज खरीद रहा हूं क्योकि यह देश कोई अच्छा काम कर रहा है और जिसके बाद हमारा बाजार अधिक तेजी के साथ बढ़ता है।”

राजन ने आगे कहा कि “यह केवल उपभोक्ता तय नहीं करता है कि किस देश को संरक्षण देना है या नहीं। दो सरकार के बीच रिश्ते भी इसको तय करते हैं। किसी भी देश की सरकार किसी अन्य देश को तभी एक भरोसेमंद साझेदार मानती है कि वह अपने देश में अल्पसंख्यक समुदाय के साथ कैसा व्यवहार करता है।”

राजन ने रूस और चीन का उदाहरण देते हुए कहा कि “लोकतंत्र कभी भी आसान नहीं होता है। इसमें सभी पक्षों के साथ लगातार बातचीत करते रहना जरुरी है। ऐसा कर आप एक बड़ी आबादी पर असर डाल सकते हैं। आप रूस और चीन का ही उदाहरण देख लीजिये, जहां बैलेंस न होने के कारण कितना नुकसान उठाना पड़ रहा है। रूस और चीन काफी पीछे चले गए हैं।”

इसके साथ ही राजन ने कहा कि भारतीय प्रशासन को तीन कृषि कानूनों के खिलाफ हुए जैसे आंदोलनों से बचने के लिए किसी भी बदलाव को लागू करने से पहले प्रमुख हितधारकों से बातचीत करनी चाहिए। कृषि कानूनों को पिछले साल किसानों के विरोध के बाद सरकार ने वापस ले लिया था।

रघुराम राजन सितंबर 2013 से सितंबर 2016 के बीच भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर थे। मौजूदा समय में वह अमेरिका की शिकागो यूनिवर्सिटी में फाइनेंस के प्रोफेसर है।