नई दिल्ली। लोकसभा चुनावों के बाद भाजपा और उसके सबसे पुराने सहयोगी शिव सेना ने भले ही एक-दूसरे से किनारा कर लिया हो लेकिन राजग के प्रमुख घटक दल लोक जनशक्ति पार्टी को नहीं लगता कि इस भगवा गठबंधन का क्षरण शुरू हो गया है।

लोजपा प्रमुख और केंद्रीय खाद्य मंत्र्री रामविलास पासवान उन खबरों से भी सहमत नहीं हैं जिनमें दावा किया जा रहा है कि कैबिनेट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ही दबदबा है और उसमें किसी मंत्री को काम करने की आजादी नहीं है।

पासवान ने कहा कि लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव एक दूसरे से भिन्न होते हैं और दोनों के मुद्दे भी अलग होते हैं।

उन्होंने प्रेट्र से कहा, ‘‘मोदी कहते हैं कि वह बाल ठाकरे को निशाना नहीं बनाएंगे। शिव सेना कहती है कि वह केंद्र में भाजपा पर प्रहार नहीं करेगी और राजग गठबंधन का हिस्सा रहेगी। यह केंद्र में सहयोगी दलों के रिश्तों को परिभाषित करता है।’’

लोकसभा चुनाव में भारी कामयाबी के बाद बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड में हाल में हुए विधानसभा की कुछ सीटों के उप-चुनावों में भाजपा के खराब प्रदर्शन और महाराष्ट्र में शिव सेना से गठबंधन टूटने के घटनाक्रम को उन्होंने खास महत्व नहीं देते हुए दावा किया कि सत्तारूढ़ गठबंधन एकजुट है और सहयोगी दलों के बीच कोई कलह नहीं है।

पासवान ने भरोसा जताया कि गन्ने की कीमत के संबंध में उत्तरप्रदेश सरकार और मिल मालिकों के बीच गतिरोध समाप्त हो जाएगा लेकिन उन्होंने इस बात की आलोचना की कि चीनी मिलें पहले तो राज्य द्वारा तय गन्ने की उच्च्ंची कीमत का भुगताान करने पर सहमत हो गईं लेकिन बाद में उन्होंने किसानों को भुगतान करने में असमर्थता जताई।

पासवान ने कहा ‘‘उत्तप्रदेश के मिल मालिक परिचालन बंद करने की धमकी दे रहे हैं। वे किसे धमकी दे रहे हैं? क्या किसानों को धमकी दे रहे हैं? किसानों के पास कई विकल्प हैं। मिलों के पास क्या विकल्प हैं? किसान गेहूं जैसी फसलें उगा सकते हैं। लेकिन करोड़ों रच्च्पए के निवेश से स्थापित चीनी मिलों को दुग्ध इकाई में परिवर्तित नहीं किया जा सकता है।’’

मंत्री ने कहा कि उतार-चढ़ाव किसी भी कारोबार में होता हैं लेकिन यदि उन्हें नुकसान हो रहा है तो मिलों द्वारा पेराई बंद करने का आह्वान सही रवैया नहीं है। जब उन्हें फायदा होता है तो क्या वे मुनाफा किसानों के साथ साझा करते हैं?

मंत्री का यह भी मानना है कि मिलों को 2013-14 के लिए राज्य द्वारा तय 280 रुपए प्रति क्ंिवटल गन्ने की कीमत का भुगतान करने पर सहमति नहीं जतानी चाहिए थी जबकि केंद्र ने 210 रुपए प्रति क्विंटल की कीमत तय की थी।

उन्होंने कहा ‘‘जब केंद्र गन्ने की कीमत 210 रुपए प्रति क्विंटल तय करता है तो मिल मालिक राज्य सरकार द्वारा तय 280 रुपए प्रति क्विंटल कीमत का भुगतान करने के लिए क्यों तैयार होते हैं। मिल मालिक पहले राज्य द्वारा तय कीमत का भुगतान करने के लिए तैयार हो जाते हैं और फिर कहते हैं कि इतनी कीमत नहीं अदा की जा सकती है।’’