रामविलास पासवान की पहली बरसी में केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस और उनके भतीजे चिराग पासवान एक साथ नजर आए। रविवार को पशुपति पारस अपने भतीजे चिराग पासवान के घर पर पहुंचे और प्रार्थना में भाग लिया। पारस पहुंचे जरूर लेकिन उनके और चिराग के बीच यहां भी दूरियां देखने को मिलीं।

रामविलास पासवान की मृत्यु के बाद पशुपति पारस और चिराग पासवान के बीच दूरियां बढ़ गई थीं। चाचा पारस ने चिराग पासवान को छोड़ पार्टी के अन्य सांसदों को अपने खेमे में मिलाकर खुद को लोक जनशक्ति पार्टी का अध्यक्ष घोषित कर दिया था। वह मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री भी बन गए। पारस का मानना है कि चिराग ने बिहार का विधानसभा चुनाव एनडीए से अलग होकर लड़कर एक बड़ी गलती की थी।

हालांकि, राजनीतिक गलियारों में रामविलास की पहली बरसी को लेकर सरगर्मी थी। चिराग ने जिस तरह से पीएम मोदी, सोनिया गांधी समेत बिहार के सारे दिग्गजों को आमंत्रित किया था, उससे माना जा रहा था कि वह शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं। बरसी कार्यक्रम के लिए छपवाए गए कार्ड पर चाचा पारस और चचेरे भाई प्रिंस राज का भी नाम अंकित करवाया गया।

इसके जरिए चिराग ने संकेत दिए हैं कि वह परिवार में अब सुलह करना चाहते हैं। वह खुद चाचा पारस को निमंत्रण देने गए थे। उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों चाचा पशुपति पारस की बगावत के बाद लोजपा दो गुटों में बंट गई है। एक गुट का नेतृत्व जहां पारस कर रहे हैं वहीं एक गुट चिराग पासवान के नेतृत्व में चल रहा है। दोनों गुट लोजपा पर दावा कर रहे है।

उधर, पीएम मोदी ने राम विलास पासवान की बरसी पर उनको याद किया। चिराग ने पीएम मोदी के पत्र को ट्वीट कर उनका आभार प्रकट किया। चिराग पासवान ने कहा कि पिता जी के बरसी के दिन पीएम मोदी का संदेश प्राप्त हुआ है। सर आपने पिता जी के पूरे जीवन के सारांश को अपने शब्दों में पिरो कर उनके द्वारा समाज के लिए किए गए कार्यों का सम्मान किया है। उनके प्रति अपने स्नेह को प्रदर्शित किया है।

पीएम मोदी ने पत्र में लिखा कि देश के महान सपूत बिहार के गौरव और सामाजिक न्याय की बुलंद आवाज रहे स्वर्गीय श्री रामविलास पासवान जी को मैं अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं। यह मेरे लिए बहुत भावुक दिन हैं। मैं आज उन्हें ना केवल अपने मित्र के रूप में याद करता हूं बल्कि भारतीय राजनीति में उनके जाने से जो शून्य उत्पन्न हुआ है उसका भी अनुभव कर रहा हूं।

पीएम ने कहा कि साठ के दशक में पासवान जी ने जब चुनावी राजनीति में कदम रखा उस समय देश का परिदृश्य बिल्कुल अलग था। तब देश की राजनीति मुख्य रूप से केवल एक राजनीतिक विचारधारा के अधीन थी, लेकिन पासवान जी ने अपने लिए एक और कठिन रास्ता चुना।