अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के 22 जनवरी को एक साल पूरे हो रहे हैं। इससे पहले इस साल की शुरुआत में ही आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और पीएम मोदी ने अपने भाषणों में राम मंदिर का जिक्र किया था। दोनों ने ही इसे भारत की आजादी से जोड़ा। प्रधानमंत्री द्वारा अयोध्या मंदिर के अभिषेक का नेतृत्व करने के एक साल बाद इस पर फिर से चर्चा शुरू करने का प्रयास किया जा रहा है।

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने एक हफ्ते पहले कहा था, “15 अगस्त 1947 को भारत को अंग्रेजों से राजनीतिक आजादी मिलने के बाद एक लिखित संविधान का ड्राफ्ट तैयार किया गया था लेकिन उस समय की भावना के अनुसार दस्तावेज का पालन नहीं किया गया। भारत जिसने कई शताब्दियों तक उत्पीड़न का सामना किया था, उसे सच्ची आजादी, उस दिन (अयोध्या में राम मंदिर के अभिषेक के दिन) हासिल हुई थी।”

कुछ दिनों बाद साल2025 के अपने पहले मन की बात संबोधन में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “प्राण प्रतिष्ठा की यह द्वादशी (चंद्र कैलेंडर में एक शुभ दिन) भारत की सांस्कृतिक चेतना की पुनर्स्थापना की द्वादशी है।”

राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के बाद हुए लोकसभा चुनावों में बीजेपी को कोई राजनीतिक लाभ नहीं मिला

भाजपा की उम्मीदों के विपरीत अभिषेक के बाद हुए लोकसभा चुनावों में पार्टी को कोई राजनीतिक लाभ नहीं मिला। वास्तव में, भाजपा ने उत्तर प्रदेश में कई सीटें गंवाई, यहां तक कि फैजाबाद लोकसभा सीट भी खो दी जिसके अंतर्गत अयोध्या आता है। पूरे देश में भी बीजेपी की सीटों में गिरावट देखी गयी।

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आरएसएस प्रमुख का बयान संविधान के इर्द-गिर्द केंद्रित विपक्ष के अभियान पर प्रहार

मोहन भागवत और नरेंद्र मोदी की टिप्पणियां उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार द्वारा हिंदुत्व के बढ़ते मुद्दे के बीच आई हैं। यह 2027 के विधानसभा चुनावों के ठीक पहले पार्टी के अभियान को धार देने की कोशिश है। सूत्रों ने बताया कि आरएसएस प्रमुख का बयान संविधान के इर्द-गिर्द केंद्रित विपक्ष के अभियान पर भी प्रहार करता है, जिसमें कांग्रेस खुद को संविधान के प्रावधानों के सच्चे संरक्षक के रूप में पेश कर रही है। यह कांग्रेस के उस हमले का भी जवाब है जिसमें कांग्रेस ने कहा था कि आरएसएस की स्वतंत्रता संग्राम में कोई भूमिका नहीं थी, जबकि उसका अपना इतिहास रहा है।

भाजपा नेताओं के अनुसार, राजनीतिक स्वतंत्रता के समान ही सांस्कृतिक संप्रभुता को महत्व देकर भागवत ने धर्म के मामले में कांग्रेस के कमजोर पक्ष पर प्रहार किया है। आरएसएस के एक नेता ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत के दौरान कहा, “कांग्रेस सरकार (जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली) ने गुजरात में सोमनाथ मंदिर के पुनर्निर्माण की पहल क्यों की और महात्मा गांधी ने इसका समर्थन क्यों किया? अगर राजनीतिक स्वतंत्रता ही सबकुछ होती तो वे नेता ऐसा नहीं करते।”

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भागवत ने की थी ‘मस्जिदों के नीचे मंदिर’ खोजने की निंदा

भाजपा में कुछ लोग भागवत के बयान को ‘मस्जिदों के नीचे मंदिर’ होने के नए दावों की निंदा के रूप में भी देखते हैं। जून 2022 में, वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर नए सिरे से तनाव के बीच, आरएसएस प्रमुख ने ‘हर मस्जिद में शिवलिंग की तलाश करने वालों’ से सवाल किया था और कहा था कि संघ इस मुद्दे पर किसी और आंदोलन के पक्ष में नहीं है।

BJP-RSS के बीच दरार भरने की कोशिश

भागवत के भाषण में एक और संदेश देखा जा रहा है, वह है संघ परिवार के अयोध्या राम मंदिर के लंबे समय से पोषित सपने को पूरा करने में मोदी और उनकी सरकार की भूमिका का समर्थन। लोकसभा चुनावों के बाद से जब संघ और भाजपा के बीच दरार को पार्टी की सीट संख्या में गिरावट का प्रत्यक्ष कारण माना गया, तब से दोनों ने दरारों को भरने की कोशिश की है। जिसके चलते अपने संगठनात्मक पुनर्गठन में, भाजपा ने राज्य प्रमुखों के रूप में आरएसएस की सिफारिशों को समायोजित करने में सावधानी बरती है जैसा कि हाल ही में असम और गोवा में देखने को मिला।

नए बीजेपी अध्यक्ष का आरएसएस से कनेक्शन

भाजपा के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि संगठनात्मक प्रक्रिया के अंत में चुने जाने वाले पार्टी अध्यक्ष समेत नई टीम पर आरएसएस की मुहर होगी। हालांकि अभी भी इस बात पर कोई स्पष्टता नहीं है कि जेपी नड्डा की जगह नया भाजपा अध्यक्ष कौन होगा लेकिन जो नाम चर्चा में हैं, उन सभी की पृष्ठभूमि आरएसएस से जुड़ी है चाहे वह शिवराज सिंह चौहान हों या मनोहर लाल खट्टर , दोनों ही पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान कैबिनेट मंत्री हैं। पढ़ें- देशभर की तमाम बड़ी खबरों के लेटेस्ट अपडेट्स