श्रीराम जन्मभूमि विवाद में मध्यस्थों ने सुप्रीम कोर्ट में नया प्रस्ताव पेश किया है। इस प्रस्ताव में अयोध्या में सरकार को भूमि अधिग्रहण करने के साथ ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के सभी मस्जिदों में नमाज शुरू करने की बात कही गई है।

सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद में बुधवार को सुनवाई पूरी कर ली। संविधान पीठ ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। अदालत में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में नियुक्त किए गए मध्यस्थता दल ने  कुछ पक्षों की तरफ से सहमति से हुए ‘समझौता’ का विवरण दिया है।

इंडियन एक्सप्रेस को मिली जानकारी के अनुसार विश्व हिंदू परिषद् के नियंत्रण वाले रामजन्मभूमि न्यास, रामलला और छह अन्य मुस्लिम पक्षों ने जिन्होंने अपील दायर की थी, वह इस समझौते में शामिल नहीं हैं। इस समझौते में जो शामिल हैं उनमें हिंदू महासभा, अखिल भारतीय श्री राम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति और निर्मोही अनी अखाड़ा के श्रीमहंत राजेंद्रदास शामिल है। प्रस्तावित समझौते में एक मुस्लिम पक्ष लखनऊ स्थित यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड शामिल है।

सुन्नी वक्फ बोर्ड को बाबरी मस्जिद भूमि को सरकार की तरफ से अधिग्रहण किए जाने पर कोई आपत्ति नहीं है। इसकी एवज में सुन्नी वक्फ बोर्ड चेयरमैन ने एएसआई के मस्जिद को नमाज के लिए फिर से खोले जाने की मांग की है। इसमें केंद्र की तरफ से अयोध्या मस्जिद और सुन्नी वक्फ बोर्ड के वैकल्पिक मस्जिद की मरम्मत भी शामिल है। इंडियन एक्सप्रेस को मिली जानकारी के अनुसार इस प्रस्तावित समझौते पर पहुंचने में करीब एक महीने का समय लगा है।

संबंधित पक्षों ने इसके लिए दिल्ली और चेन्नई में दो या तीन बैठकें की। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ बृहस्पतिवार को चैंबर्स में मुलाकात करेगी। जानकारी के अनुसार अदालत में जमा कराए गए इस दस्तावेज पर चर्चा का प्रमुख मुद्दा होगा। इसमें यह निर्णय लिया जाएगा कि इस प्रस्तावित समझौते को सार्वजनिक किया जाए या नहीं।

हालांकि, सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकीलों का कहना है हमारी तरफ से कोई एनओसी दाखिल नहीं की गई है। ऐसा कोई भी संकेत, निर्देश, ई-मेल या किसी भी तरह की सूचना नहीं है। इससे पहले बुधवार को चर्चा थी कि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने जमीन पर दावा छोड़ने का प्रस्ताव दिया है।