दूरदर्शन के चर्चित धारावाहिक रामायण में राम का अभिनय करने वाले अरुण गोविल को भाजपा ने मेरठ लोकसभा सीट से उम्मीदवार यह सोचकर बनाया था कि राम मंदिर के माहौल में लोग उन पर मतों की बारिश कर देंगे। वे जिधर से भी निकलेंगे, लोग उनका स्वागत-सत्कार राम समझ कर करेंगे। ऐसा होता दिखा नहीं। एक तो गोविल की उम्र अब 72 की हो चुकी है।

ऊपर से उन्हें सियासत का कोई अनुभव नहीं। उनके पिता मेरठ में नगर पालिका के जलकल इंजीनियर थे, तभी 1952 में गोविल का मेरठ में जन्म हुआ था। उनकी शुरुआती पढ़ाई यहीं हुई थी। लेकिन, 1966 में पिता के तबादले के साथ ही उनका परिवार भी यहां से चला गया था। फिर गोविल मुंबई की फिल्मी दुनिया में व्यस्त हो गए। अब भाजपा ने उम्मीदवार बना दिया तो मतदाताओं के इस सवाल से जूझना पड़ा कि जीत भी गए तो मेरठ में तो रहेंगे नहीं। बेचारे गोविल क्या जवाब देते।

पूरे चुनाव प्रचार के दौरान कहा कि भाजपा जात-पात में भरोसा नहीं करती। लेकिन राजपूत समाज की उनके संसदीय क्षेत्र और आसपास हुई पंचायतों में भाजपा को हराने का संकल्प लिया गया तो गोविल घबरा गए। राजपूत बहुल गांव सिसौली में मुख्यमंत्री योगी उनका प्रचार करने आए तो गोविल बोले-मेरी पत्नी श्रीलेखा भी राजपूत है। वह अलीगढ़ जिले की चौहान है। देखते हैं इससे राजपूतों की नाराजगी दूर हो पाएगी या नहीं?

अमेठी का राज

कांग्रेस ने अमेठी और रायबरेली की सीटों के उम्मीदवारों की अभी तक घोषणा नहीं की है। पिछली बार अमेठी के साथ-साथ राहुल गांधी ने केरल की वायनाड सीट से भी चुनाव लड़ा था। अमेठी में स्मृति ईरानी ने उन्हें हरा दिया था। जबकि वायनाड में वे जीत गए थे। वायनाड से राहुल गांधी इस बार भी उम्मीदवार हैं। रायबरेली से पिछली बार सोनिया गांधी जीती थीं।

इस बार उन्होंने खराब सेहत के कारण लोकसभा चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है। वे राजस्थान से राज्यसभा की सदस्य चुनी जा चुकी हैं। ऐसे में रायबरेली को लेकर तस्वीर साफ नहीं है कि कौन लड़ेगा। हालांकि प्रियंका गांधी के नाम की चर्चा भी खूब है। रही अमेठी की बात तो सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी अमेठी से भी लड़ेंगे। पर, इसकी घोषणा कांगे्रस 26 अपै्रल के बाद करेगी। वायनाड में 26 अपै्रल को मतदान के बाद ही अमेठी का फैसला होगा।

‘इंडिया’ की केरल कथा

यह तो तय था कि लोकसभा और विधानसभा स्तर पर इंडिया गठबंधन के दलों के हित विरोधाभासी होंगे। लेकिन, मतदान के समय स्थिति हास्यास्पद भी हो रही है। एक तरफ तो ‘इंडिया’ गठबंधन एक सुर में हेमंत सोरेन और अरविंद केजरीवाल को जेल भेजने को सरकारी एजंसियों का अत्याचार बता रहा है तो दूसरी तरफ केरल में राहुल गांधी केंद्र की भाजपा सरकार पर सवाल उठा रहे हैं कि केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन जेल में क्यों नहीं हैं? कन्नूर की रैली में राहुल गांधी ने भाजपा-माकपा की ‘गिरोहबंदी’ पर सवाल उठाया लेकिन अपने अति गुस्से में उस गुस्से को जाया कर दिया जो वो विपक्ष के नेताओं को जेल भेजने के लिए केंद्र सरकार पर उतार चुके हैं।

बगावत के बीज

भाजपा अनुशासित पार्टी होने का दावा तो जरूर करती है पर उम्मीदवारों के चयन से इस पार्टी का असंतोष भी जगह-जगह खुलकर सामने आया है। अनेक नेताओं ने पार्टी छोड़ी है तो अनेक नाराज होकर अपने घर बैठ गए हैं। लेकिन बागियों की भी कमी नहीं है। उत्तर प्रदेश की फतेहपुर सीकरी सीट पर 2019 में भाजपा के राजकुमार चाहर जीते थे। यह सीट जाट बहुल है।

भाजपा ने 2014 में बाबूलाल चौधरी को यहां उम्मीदवार बनाया था। जो जीते भी थे। लेकिन 2019 में दबंग बाबूलाल का टिकट काट दिया। तब उन्हें भरोसा दिया गया था कि विधानसभा में मौका देंगे। विधानसभा में 2022 में बाबूलाल चौधरी को टिकट मिल भी गया और वे जीत भी गए। लेकिन, इस बार फतेहपुर सीकरी से अपने बेटे रामेश्वर चौधरी के लिए टिकट मांग रहे थे। पार्टी ने परिवारवाद की दुहाई दे उनकी मांग ठुकरा दी तो उनके बेटे ने निर्दलीय ही नामांकन कर दिया। बाबूलाल चौधरी रालोद छोड़कर भाजपा में आए थे।

सांसद राजकुमार चाहर ने पार्टी आलाकमान से शिकायत की है कि बाबूलाल और उनके पुत्र भितरघात कर रहे हैं। पर बाबूलाल टस से मस होने को तैयार नहीं। इसी तरह हिमाचल प्रदेश में भाजपा ने कांगे्रस के सदस्यता गंवा चुके छह विधायकों को उपचुनाव में उम्मीदवार बना दिया तो पार्टी के नेता राकेश कालिया, रामलाल मरकंडा और कैप्टन रंजीत सिंह ने एलान कर दिया है कि वे भाजपा के अधिकृत उम्मीदवारों के खिलाफ चुनाव लड़ेंगे।

बारामती में ‘शरद पवार’

राजनीति के असली हथकंडे तो चुनाव में दिखाई देते हैं। अपने विरोधी उम्मीदवार के समर्थक मतदाताओं को भ्रमित करने के लिए उसी के नाम वाले निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में उतारने का हथकंडा काफी पुराना है। पर महाराष्टÑ की बारामती लोकसभा सीट पर इस बार चुनाव में अलग ही नजारा है। राकांपा के नेता शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले बारामती से सांसद हैं।

सियासत ने परिवार को तो तोड़ा ही, ननद और भाभी को भी आमने-सामने ला दिया है। शरद पवार की पार्टी से उनकी बिटिया सुप्रिया सुले के मुकाबले सत्तारूढ़ गठबंधन ने अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार को मैदान में उतारा है। ननद-भाभी के मुकाबले के अलावा बारामती शरद पवार के मैदान में उतरने से चर्चा का विषय बन गया है।

यह शरद पवार सुप्रिया सुले के पिता नहीं बल्कि 36 वर्षीय आटो रिक्शा चालक हैं, जो निर्दलीय हैसियत से मैदान में उतरे हैं। मकसद हालांकि सुप्रिया के समर्थकों को भ्रमित करने का हो सकता है पर शरद पवार ने कहा है कि उनका नाम उनके दादा ने शरद पवार की योग्यता और लोकप्रियता से प्रभावित होकर रखा था। बारामती की सीट इस बार रोचक तो बन ही गई थी, अब ‘शरद पवार’ ने और रंग जमा दिया है।

संकलन : मृणाल वल्लरी