दार्जिलिंग लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाले कुर्सोंग विधानसभा क्षेत्र के भाजपा विधायक बीपी शर्मा की चेतावनी ने भाजपा नेतृत्व की नींद उड़ा दी है। शर्मा ने सार्वजनिक रूप से मांग की है कि दार्जिलिंग लोकसभा क्षेत्र से किसी स्थानीय नेता को उम्मीदवार बनाया जाए। ऐसा न किया गया तो वे खुद निर्दलीय की हैसियत से लोकसभा चुनाव लड़ेंगे।
दार्जिलिंग लोकसभा सीट में पिछले तीन चुनाव भाजपा ने और इससे पहले 2004 का लोकसभा चुनाव कांग्रेस ने जीता था। चारों ही सांसद दार्जिलिंग संसदीय क्षेत्र से बाहर के ठहरे। दार्जिलिंग और आसपास के पर्वतीय क्षेत्रों को अलग गोरखालैंड राज्य बनाने की मांग बहुत पुरानी है। अभी यह क्षेत्र पश्चिम बंगाल में है। भाजपा अलग गोरखालैंड की मांग का समर्थन करती रही है।
इसी नाते उसने 2009 में इस सीट से अपने कद्दावर नेता जसवंत सिंह और 2014 में एसएस अहलूवालिया को सांसद बनवा लिया था। पिछली दफा भी भाजपा के ही राजू बिस्ता इस सीट पर विजयी हुए थे। बिस्ता कहने को गोरखा तोे जरूर हैं पर वे रहने वाले मणिपुर के हैं। शर्मा की शिकायत ही यही है कि बाहरी सांसद अलग गोरखालैंड की मांग को धार नहीं दे पाते। भाजपा विधायक शंकर घोष ने शर्मा को नसीहत दी कि यह मांग उन्हें पार्टी मंच पर उठानी चाहिए थी। शर्मा ने जवाब दिया कि पार्टी का शिखर नेतृत्व खुद ही ‘वोकल फार लोकल’ की दुहाई देता है।
गरज सभी की
बसपा को इंडिया गठबंधन के साथ रखने में ही कांग्रेस फायदा देख रही है। त्रिकोणीय मुकाबला भाजपा की राह आसान कर देगी। विधानसभा चुनाव में 2022 में बसपा और कांगे्रस के अलग-अलग लड़ने से भी भाजपा विरोधी वोट बंटे। नतीजतन सबका बंटाधार हो गया। कांगे्रस को दो और बसपा को महज एक सीट मिली। हालांकि वोट उसके 13 फीसद के आसपास रहे। इस नाते सीट भले न मिली हो पर मायावती के पूरी तरह जनाधार विहीन होने की धारणा सही नहीं है।
मायावती पर दबाव उनके अपने सांसदों और नेताओं का भी है कि अकेले लड़ने से पार्टी का वजूद ही खतरे में पड़ जाएगा। अब मायावती को शामिल करने में अखिलेश यादव भी अपनी आपत्ति वापस ले चुके हैं। अखिलेश जानते हैं कि मायावती अकेले लड़ी तो बड़ी तादाद में मुसलमान उम्मीदवार खड़े कर सपा और कांगे्रस के वोट बैंक को विभाजित कर देंगी।
दल-दल के दर तक तंवर
अशोक तंवर जल्द ही भाजपा में शामिल हो सकते हैं। हरियाणा कांग्रेस के कभी कद्दावर दलित नेता कहलाते थे तंवर। राहुल गांधी से निकटता थी। तभी तो 2014 में उन्हें कांग्रेस का हरियाणा का सूबेदार बनाया था। भूपिंदर सिंह हुड्डा से नहीं पटी तो दलित नेता शैलजा को अध्यक्ष बना दिया। नाराज होकर तंवर ने पार्टी छोड़ दी व 2021 में तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए। हरियाणा में इस पार्टी का भला क्या था। अपै्रल 2022 में आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया। अरविंद केजरीवाल ने राज्यसभा में भेजने की उनकी हसरत पूरी नहीं की तो उनसे भी नमस्ते करने की सोच ली है। इसी हफ्ते दिल्ली में मनोेहर लाल खट्टर से मिले थे। देखते हैं कि भाजपा में कैसा रहेगा तंवर का भविष्य।
कमजोर कांग्रेस
उद्धव गुट ने विधानसभा अध्यक्ष से एकनाथ शिंदे सहित शिवसेना छोड़कर पहले चरण में अलग होने वाले 16 विधायकों को अयोग्य घोषित करने की मांग की थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के हिसाब से तो ये विधायक अयोग्य माने ही जा रहे थे पर सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया कि अयोग्यता पर फैसले का अधिकार विधानसभा अध्यक्ष का है। अदालत तो अध्यक्ष के फैसले की समीक्षा कर सकती है। नार्वेकर ने ठाकरे गुट की नींद उड़ा दी है।
इस गुट के भीतर भी मतभेद की खबर है। चर्चा है कि कुछ नेताओं ने नाम लिए बिना सुभाष देसाई और अनिल देसाई को इस बात के लिए दोष दिया कि उन्होंने शिवसेना के 2018 में संशोधित हुए संविधान की समय पर न तो चुनाव आयोग को जानकारी दी और न विधानसभा अध्यक्ष को। अध्यक्ष ने पार्टी के 1999 के संविधान को ही आधार बना लिया। असली खतरा तो अब शुरू होगा।
एक तरफ उद्धव गुट अध्यक्ष के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगा तो दूसरी तरफ अध्यक्ष ने एलान कर दिया है कि उद्धव गुट के 16 विधायकों को अब सदन के भीतर शिंदे गुट के मुख्य सचेतक भरत गोगावाले के निर्देश का पालन करना होगा। अन्यथा उनकी सदस्यता जाएगी क्योंकि अध्यक्ष ने शिंदे की शिवसेना को असली शिवसेना माना है। उद्धव गुट के विधायकों को सदन में भी शिंदे गुट के विधायकों के साथ ही बैठना होगा। सुप्रीम कोर्ट से कोई राहत मिलेगी या नहीं और अगर मिलेगी भी तो कब, कहना मुश्किल है।
55 फीसद छूट का गणित
कोरोना के पहले वरिष्ठ नागरिकों और मान्यता प्राप्त पत्रकारों को रेलवे के टिकट पर 50 फीसद मिलने वाली रियायत की बहाली की उम्मीदों पर रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव के गणित ने पानी फेर दिया। लाकडाउन के दौरान रेलवे परिचालन पूरी तरह बंद कर दिया गया था, लेकिन जून 2022 में जब सेवा बहाल हुई, तो रेल मंत्रालय ने इन रियायतों को बहाल नहीं किया और तब से यह मुद्दा संसद के दोनों सदनों सहित विभिन्न मंचों पर उठाया गया है।
बुलेट ट्रेन परियोजना की प्रगति की समीक्षा करने पहुंचे रेल मंत्री अनिल वैष्णव से पत्रकारों ने कोरोना के पहले की रियायत पर सवाल उठाया तो उन्होंने कहा कि हर रेलयात्री को किराये में पहले ही 55 फीसद की छूट मिलती है। वैष्णव ने पत्रकारों को छूट का गणित समझाते हुए कहा, ‘यदि किसी गंतव्य के लिए टिकट की कीमत 100 रुपए है, तो रेलवे केवल 45 रुपए वसूल रहा है। यह 55 रुपए की रियायत दे रहा है। ’ इससे पहले, मध्य प्रदेश स्थित चंद्रशेखर गौड़ के एक आरटीआइ आवेदन का जवाब देते हुए भारतीय रेलवे ने कहा था कि उसने वित्तीय वर्ष 2022-23 में लगभग 15 करोड़ वरिष्ठ नागरिकों से लगभग 2,242 करोड़ रुपए कमाए। ।
संकलन : मृणाल वल्लरी