बीएस येदियुरप्पा ने यतनाल को पार्टी से निष्कासित कराकर अपनी ताकत फिर साबित कर दी। उत्तर प्रदेश में जयंत चौधरी पुलिस के रवैये से नाराज हैं, तो बिहार में भाजपा समय से पहले चुनाव कराने की रणनीति बना रही है। संसद में ‘सेल्फी’ विवाद ने माननीयों को कटघरे में खड़ा किया, वहीं भाजपा की इफ्तार पार्टियों की वापसी ने नए सियासी संकेत दिए हैं। सत्ता संतुलन, हिंदुत्व और अल्पसंख्यक समीकरणों के इस खेल में भाजपा नए दांव आजमा रही है।
येदु युग का जलवा
बासनगोडा पाटिल यतनाल को पार्टी से निष्कासित कराने के बाद बीएस येदुरप्पा और उनके बेटे खुशी से फूले नहीं समा रहे होंगे। येदुरप्पा 82 वर्ष के हैं। नई भाजपा ने वसुंधरा राजे और रमण सिंह जैसे दूसरे छत्रपों को बेशक हाशिए पर पहुंचा दिया हो पर येदुरप्पा का कर्नाटक में पार्टी को अभी तक तो कोई विकल्प मिला नहीं। यतनाल पूर्व में केंद्र और राज्य की सरकार में मंत्री रह चुके हैं। कट्टर हिंदुवादी नेता की छवि होने के नाते भाजपा से उनके निष्कासन पर हर कोई हैरान है। हालांकि इससे पहले भी 2010 और 2015 में उन्हें पार्टी से निकाला गया था। अपने निष्कासन के बाद यतनाल ने कहा है कि उन्होंने वंशवादी राजनीति और भ्रष्टाचार का विरोध किया था। जिसकी सजा उन्हें पार्टी से छह साल के लिए बाहर का रास्ता दिखाकर दी गई है। पर वे झुकेंगे नहीं। लिंगायतों का सबसे बड़ा नेता होने के कारण येदुरप्पा सूबे में भाजपा की मजबूरी हैं। तभी तो उनके एक बेटे विजयेंद्र पार्टी के सूबेदार और दूसरे बेटे राघवेंद सांसद हैं। यतनाल येदुरप्पा परिवार के मुखर विरोधी माने जाते हैं। आलाकमान की चेतावनी के बाद भी उन्होंने येदुरप्पा पर हमले बंद नहीं किए थे। भाजपा ने यतनाल पर कार्रवाई कर पार्टी के दूसरे बागियों को भी परोक्ष चेतावनी दी है। यह बात अलग है कि रमेश जरकी होली जैसे नेता अभी भी आलाकमान से यतनाल की पार्टी में वापसी की गुहार लगाने की तैयारी में हैं।
नाखुश जयंत
उत्तर प्रदेश की पुलिस के मुसलमानों के प्रति आक्रामक रवैये से केंद्रीय मंत्री जयंत चौधरी नाराज दिख रहे हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर पुलिस पर तानाशाही का आरोप लगाया। मेरठ के एक पुलिस अधिकारी ने बयान दिया था कि जुमे के अवसर पर अगर किसी ने सड़क पर नमाज पढ़ी तो पुलिस उसकी पहचान कर पासपोर्ट और ड्राइविंग लाइसेंस निरस्त करा सकती है। जयंत को ऐसा भेदभावपूर्ण रवैया अखरा तो प्रतिक्रिया दे डाली। वैसे भी उत्तर प्रदेश में उनकी पार्टी रालोद के नौ विधायकों में दो मुसलमान हैं। रालोद का जनाधार अब पश्चिमी उत्तर प्रदेश तक ही सीमित है। किसानों की यह पार्टी मुसलमानों की अनदेखी नहीं कर सकती। जयंत की देखादेखी उनके उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री अनिल कुमार और बागपत के सांसद राजकुमार सांगवान ने भी पुलिस के पक्षपात पूर्ण रवैये की आलोचना करने में देर नहीं लगाई।
संसद में भी ‘सेल्फी’
इन दिनों हर कोई सेल्फी के शौक में जब्त है। जो जहां है उसका मन वहीं पर सेल्फी लेने के लिए मचल उठता है। शिक्षा परिसर से लेकर कार्यस्थल तक लोगों के इस शौक से परेशान हैं। सेल्फी के शौक में संसद के माननीय भी पीछे नहीं रहे। संसद की कार्यवाही के दौरान सेल्फी लेने के चक्कर में कई माननीय फंस गए। ये माननीय बिहार की राजनीति से जुड़े हैं और सभी सांसद सदन की कार्यवाही के दौरान एक साथ होकर फोटो खींच रहे थे। बीच सदन में चल रही इस गतिविधि को हर कोई देख रहा था। इन सांसदों की गतिविधियों को देख कर विपक्ष के सांसदों ने सवाल उठा दिया। इसके साथ ही लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने भाजपा के सांसदों को सदन में फोटो नहीं खींचने की हिदायत दे डाली।
दावत-ए-इफ्तार
केंद्र में जब से भाजपा की सरकार आई, इफ्तार की दावतों का चलन काफी कम हो गया था। किसी भाजपा सरकार की तरफ से इफ्तार का आयोजन तो दूर पार्टी की तरफ से भी ऐसा आयोजन नहीं दिखा था। सत्ता समर्थक मंच इफ्तार की दावतों को तुष्टीकरण का तरीका कहता हुआ नहीं थकता था। हालांकि जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे तो वे और उनके मंत्री इफ्तार की दावतों में लगातार शरीक होते थे। खुलकर जालीदार टोपी लगाते थे। पिछले चुनाव में भाजपा की सीटें घटी तो इफ्तार की दावतों की वापसी नजर आने लगी है। कांगे्रस और दूसरी गैर भाजपा पार्टियां तो इफ्तार की दावत देती ही थीं, हैरत तो यह है कि इस बार भाजपा ने भी इफ्तार की दावत दी है।
पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चे की इफ्तार में दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता और केंद्रीय मंत्री किरेन रिजीजू भी शामिल हुए। रेखा गुप्ता ने तो यहां तक कहा कि रमजान में राम और दिवाली में अली आता है। महाराष्टÑ में अजित पवार ने न केवल इफ्तार का आयोजन किया बल्कि बयान भी दिया कि मुसलिम भाइयों को आंख दिखाने वालों को छोड़ेंगे नहीं। नीतीश ने इफ्तार पार्टी की तो उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी सहित कई भाजपा नेता उसमें नजर आए। हालांकि भाजपा की कुछ नीतियों से नाराज अल्पसंख्यक तबका आज की तारीख में इसे तुष्टीकरण का हिस्सा मान रहा है। खास कर वक्फ बोर्ड से जुड़े विधेयक को लेकर नाराजगी दिखाई जा रही है।
भारी पड़ रहा इंतजार
बिहार के सियासी गलियारों में चर्चा है कि भाजपा विधानसभा चुनाव समय से पहले करा सकती है। तय अवधि के तहत तो चुनाव नवंबर में होंगे। भाजपा को डर सता रहा है कि नीतीश कुमार के स्वास्थ्य की स्थिति को देखते हुए तय वक्त पर चुनाव कराने से राजग की जीत में संशय हो सकता है। भाजपा अपने ‘पिछड़े’ चेहरे सम्राट चौधरी को मुख्यमंत्री बनाने को आतुर है। नीतीश की पार्टी की ताकत लगातार घटी है। कभी विधानसभा में जद (एकी) सबसे बड़ी पार्टी थी। फिर वह भाजपा से नीचे आ गई। पिछले विधानसभा चुनाव में तो जद (एकी) तीसरे नंबर की पार्टी बनकर रह गई। महज 43 विधायकों के बल पर नीतीश मुख्यमंत्री हैं। भाजपा को भरोसा था कि नीतीश चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद छोड़ देंगे पर वे इस मूड में नहीं हैं। अब तो उनके बेटे निशांत का चेहरा भी सामने है। नीतीश की हरकतें अब बिहार में मजाक बन रही हैं। भाजपा ने अपनी सोची समझी रणनीति के तहत ही आरिफ मोहम्मद खान को बिहार का राज्यपाल बनाया है। राष्टÑपति शासन की नौबत आई तो राज्यपाल के जरिए अपना एजंडा आगे बढ़ा सकेगी चुनाव से पहले पार्टी।