उत्तराखंड में मंत्री की जुबान फिसली तो कुर्सी गई, तेलंगाना में मुख्यमंत्री के बयान से कांग्रेस परेशान है। बिहार में कांग्रेस ने नया अध्यक्ष लाकर सियासी पत्ते फेंटे हैं, तो महाराष्ट्र में दिशा सालियान केस ने ठाकरे परिवार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। शशि थरूर कांग्रेस में उपेक्षा झेल रहे हैं और दोराहे पर खड़े हैं। सियासी हलचल तेज है, कहीं इस्तीफे हो रहे हैं तो कहीं नए समीकरण बन रहे हैं। राजनीति के इन ताजे मोड़ों पर सबकी नजरें टिकी हैं।
आपदा में अवसर
जुबान फिसलना प्रेमचंद अग्रवाल को महंगा पड़ गया। उत्तराखंड सरकार में वित्त और आवास मंत्री थे अग्रवाल। विधानसभा में बजट सत्र के दौरान बयान दे दिया कि उत्तराखंड सिर्फ पहाड़ियों का नहीं है। वे कहना चाहते होंगे कि कुमाऊं और गढ़वाल के मैदानी इलाकों के साथ-साथ हरिद्वार का पूरा जिला तो मैदानी ठहरा। विधानसभा की सबसे ज्यादा 11 सीटें इसी जिले में हैं। पर उत्तराखंड तो उत्तरप्रदेश से अलग हुआ ही पर्वतीय राज्य की अवधारणा के कारण। अग्रवाल लगातार चार बार ऋषिकेश सीट से भाजपा के विधायक हैं। पहाड़ी बनाम मैदानी का विवाद उभरा तो अग्रवाल का विरोध शुरू हो गया। भाजपा आलाकमान को लगा कि सियासी नुकसान होगा तो अग्रवाल से इस्तीफा मांग लिया। अग्रवाल पार्टी के सूबेदार महेंद्र भट्ट के करीबी माने जाते हैं। उन्होंने याद दिलाया कि उत्तराखंड के संघर्ष में उनका भी योगदान रहा। डोईवाला में उनके इस्तीफे से नाराज लोगों ने बाजार बंद रखा। पत्रकारों से बातचीत में भावुक अग्रवाल रोए भी। चर्चा है कि भट्ट नहीं चाहते थे कि अग्रवाल का इस्तीफा लिया जाए। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी नहीं माने। उत्तराखंड में मुख्यमंत्री सहित अभी कुल छह मंत्री हैं। पांच पद खाली हैं। दावेदार दिल्ली में डेरा डाले हैं। आलाकमान की हरी झंडी मिलते ही विस्तार करेंगे धामी। जो दावेदार हैं उनके लिए तो अग्रवाल का इस्तीफा आपदा में अवसर के समान हो गया है।
बेलगाम जुबान
तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी के विवादास्पद बयानों से कांग्रेस आलाकमान नाराज और परेशान हैं। रेड्डी ने सोशल मीडिया पर पत्रकारिता करने वाली दो महिलाओं को गिरफ्तार करा दिया। इन महिलाओं ने रेवंत रेड्डी के खिलाफ वीडियो पोस्ट कर दी थी। साथ ही रेवंत रेड्डी ने बयान दे दिया कि उनके या उनके परिवार के खिलाफ सोशल मीडिया में बयान पोस्ट करने वालों को वे नंगा करके परेड कराएंगे और पिटवाएंगे भी। इससे न केवल उनकी अपनी छवि खराब हुई है बल्कि पार्टी को भी असहज होना पड़ा है। इसके बावजूद रेड्डी को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। चंद्रशेखर राव को उनके बेटे केटीआर ने फादर आफ तेलंगाना कहा तो रेवंत को सहन नहीं हुआ। कह दिया कि कोई शराबी फादर आफ तेलंगाना कैसे हो सकता है। जाहिर है कि उनके इस बयान से तो राव की पार्टी बीआरएस को ही फायदा होगा।
बिहार में कांग्रेस का बदलाव
विधानसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर बिहार में कांग्रेस ने अपना प्रदेश अध्यक्ष बदल दिया है। अखिलेश सिंह के बदले राजेश कुमार राम के रूप में दलित चेहरे ने कमान संभाली है। अध्यक्ष बदले जाने की यह सुगबुगाहट मार्च के शुरू से ही महसूस की जा रही थी। राहुल गांधी ने अपने पिछले बिहार दौरों के दौरान अखिलेश सिंह को तवज्जो नहीं दी थी। बिहार में कांग्रेस की मौजूदा राजनीतिक छवि राजद की पिछलग्गू के रूप में हो गई है। अखिलेश सिंह को लालू यादव का करीबी भी माना जाता रहा है। राजद पर निर्भरता के कारण कांग्रेस वहां काफी राजनीतिक नुकसान झेल चुकी है। प्रदेश अध्यक्ष बदला जाना इस बात का इशारा है कि कांग्रेस सूबे में अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती है।
संकट में ठाकरे
दिशा सालियान की मौत का मामला पांच साल बाद फिर सुर्खियों में आ गया है। फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मैनेजर रह चुकी थी दिशा। आठ जून 2020 को मुंबई के मलाड इलाके की एक बहुमंजिली इमारत की 14वीं मंजिल से गिरने से उनकी मौत हो गई थी। तब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री थे और उनके बेटे आदित्य ठाकरे पर उंगलियां उठी थी। आदित्य खुद भी पिता की सरकार में मंत्री थे। इस घटना के छह दिन बाद सुशांत सिंह राजपूत ने आत्महत्या कर ली थी। जिसमें उनकी मित्र अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती को गिरफ्तार किया गया था। सालियान का मामला उस समय दब गया था। परिवार वालों ने भी तब कोई कार्रवाई नहीं की थी। उधर राजपूत के मामले में भी सीबीआइ, ईडी और आयकर जैसी एजंसियां रिया चक्रवर्ती के खिलाफ कोई आरोप नहीं लगा पाई। बहरहाल अब दिशा सालियान के पिता सतीश सालियान ने बंबई हाई कोर्ट में याचिका दायर कर अपनी बेटी की मौत की जांच सीबीआइ से कराने की मांग कर डाली है। उन्होंने आरोप लगाया है कि उनकी बेटी के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ था और छत से फेंक कर हत्या की गई थी। सतीश सालियान ने आदित्य ठाकरे, सूरज पंचोली और डिनो मोरिया पर गंभीर आरोप लगा दिए हैं। विधानसभा में मामला उठने के बाद आदित्य ठाकरे सफाई देते नजर आए कि उनके खिलाफ साजिश की जा रही है। बेटे पर आरोप लगा तो पिता उद्धव की भी नींद उड़ गई है।
दोराहे पर थरूर
कांग्रेस ने केरल के अपने चार बार के लोकसभा सदस्य शशि थरूर को हाशिए पर धकेल दिया है। राजनीति में आने से पहले थरूर संयुक्त राष्ट्र में काम कर रहे थे। उनके अंतरराष्ट्रीय संपर्कों से सोनिया गांधी बेहद प्रभावित रही हैं। लेकिन जब से उन्होंने खड़गे के खिलाफ पार्टी अध्यक्ष का चुनाव लड़ा, तभी से वे आलाकमान की आंखों में किरकिरी बन चुके हैं। उनकी पहचान एक अच्छे वक्ता की रही है। केंद्र में मंत्री भी रह चुके हैं। पार्टी पिछले दो साल से उन्हें लोकसभा में बोलने का अवसर नहीं दे रही। पहले राहुल गांधी केरल की वायनाड सीट से सांसद थे। अब प्रियंका गांधी हैं। गांधी परिवार के लिए केरल अहम है। राज्य के संगठन संबंधी कार्यकलापों में भी थरूर को कोई भाव नहीं दे रहा।
दरअसल अतीत के अपने कुछ बयानों से थरूर ने खुद भी अपनी उपेक्षा को प्रशस्त किया है। पहले उन्होंने लेख लिखकर राज्य की वाम मोर्चा सरकार की तारीफ की थी तो अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रूस-यूक्रेन पर तटस्थता की कूटनीति की सराहना कर अपने पार्टी नेतृत्व को चिढ़ाने का काम किया है। भाजपा उन पर डोरे तो डाल रही है पर थरूर खुद तय नहीं कर पा रहे कि कांग्रेस में रहें या न रहें।