सियासी हलचलें तेज हो गई हैं। बिहार में नीतीश कुमार ने अपनी प्रगति यात्रा के जरिए विकास की नई दिशा तय करने का दावा किया है, जबकि हरियाणा में चौटाला परिवार के एकजुट होने की कवायद तेज है। दिल्ली में विधानसभा चुनाव के समीकरण बदल रहे हैं, जहां आम आदमी पार्टी, भाजपा और कांग्रेस के बीच त्रिकोणीय संघर्ष नजर आ रहा है। वहीं, आरएसएस के मुखिया और मुखपत्र के बीच मतभेद ने नई बहस छेड़ दी है। यह सियासी घटनाएं अगले चुनावी नतीजों पर बड़ा असर डाल सकती हैं।

सियासी यात्रा
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निधन के कारण नीतीश कुमार ने अपनी प्रगति यात्रा बीच में ही स्थगित कर दी। प्रगति यात्रा 23 दिसंबर को शुरू हुई थी। पहला चरण 28 दिसंबर को वैशाली जिले में पूरा होना था। 25 दिसंबर को क्रिसमस का अवकाश रखा था। पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, शिवहर व सीतामढ़ी तो निपट गए पर मुजफ्फरपुर और वैशाली रह गए। जो पांच और छह जनवरी को पूरे हो जाएंगे। यात्रा का मकसद नीतीश ने विकास कार्यों व जनता की समस्याओं को समझ कर नीतियों को बेहतर बनाना बताया है। यह बात अलग है कि उनकी हर यात्रा चुनाव से पहले होती रही है। लोकसभा चुनाव से पहले उन्होंने समाधान यात्रा निकाली थी। उससे चुनाव में फायदा भी मिला और जद (एकी) को 12 सीटों पर जीत मिली। बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं। इसीलिए नीतीश को नई यात्रा की जरूरत पड़ी। शुरू में उन्होंने इसका नाम महिला संवाद यात्रा रखा था। तब इसे 15 दिसंबर को शुरू करना था। लालू यादव ने जब महिला संवाद यात्रा के बारे में तंज कसा तो नीतीश कुमार ने तारीख भी बदल दी और नाम भी। प्रगति यात्रा से चुनाव में फायदा ही होगा, इसकी गारंटी कौन दे सकता है। आखिर 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले भी बतौर मुख्यमंत्री नीतीश ने संकल्प यात्रा निकाली थी। पर तब उनकी पार्टी को महज दो सीटों पर ही सफलता मिल पाई थी।

एक होने की सलाह
हरियाणा में जाट राजनीति फिर नई करवट ले सकती है। ओमप्रकाश चौटाला तो नहीं रहे पर अब उनके दोनों बेटों को एक साथ लाने की कोशिशें चल रही हैं। चौटाला परिवार के कुछ शुभचिंतक और इंडियन नेशनल लोकदल के पुराने नेता चौटाला परिवार को सलाह दे रहे हैं कि राजनीति में अपना वजूद बचाना है तो परिवार को एकजुट हो जाना चाहिए। 2019 के विधानसभा चुनाव में इनेलोद को बस एक सीट मिली जबकि जजपा दस सीटें पा गई और दुष्यंत चौटाला मनोहरलाल सरकार में उपमुख्यमंत्री बन गए। इस बार जजपा से बेहतर प्रदर्शन जरूर इनेलोद का रहा पर जाट राजनीति के सिरमौर भूपिंदर सिंह हुड्डा ही रहे। भाजपा की लगातार तीसरी बार सरकार बन जाने से माना जा रहा है कि चौटाला परिवार एकजुट हो जाए तो पिटे मोहरे बन चुके हुड्डा से छिटक कर जाट समुदाय इनेलोद की मुख्यधारा में वापसी करा सकता है।

‘सम्मान’ पर सबकी नजर
आम आदमी पार्टी विधानसभा चुनाव से पहले ‘महिला सम्मान योजना’ ले आई है। इस योजना की घोषणा आम आदमी पार्टी के नेताओं ने की। योजना सामने आने के बाद आम आदमी पार्टी की सरकार के विभागों ने ही इस पर सवाल उठा दिए। सरकार की घोषणा के बाद खुद सरकारी विभागों ने अपने खर्चे पर इन घोषणाओं को खारिज किया। इसके बाद भी योजनाओं को लेकर महिलाओं के बीच उत्साह दिख रहा। झुग्गी बस्तियों में महिलाएं देर रात तक कतार में खड़ी होकर योजना के लिए पंजीकरण करा रही हैं। इन योजनाओं को लेकर भाजपा ने मोर्चा खोल दिया है। भाजपा सरकार की हकीकत सामने लाने की कवायद में जुटी है ताकि इसका लाभ पार्टी को आगामी विधानसभा चुनाव में मिल सके।

नाम की खोज
लोकसभा चुनाव से पहले तो उम्मीदवारों की घोषणा में भाजपा ने दूसरे दलों को पछाड़ दिया था। पर दिल्ली विधानसभा चुनाव में पार्टी की वैसी तैयारी नहीं दिख रही। जबकि अरविंद केजरीवाल लगातार जनता से संवाद कर रहे हैं। चुनावी वादे करने से भी नहीं चूक रहे। कांग्रेस ने अपनी तैयारी में पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के पुत्र पूर्व सांसद संदीप दीक्षित को नई दिल्ली सीट से केजरीवाल के मुकाबले उम्मीदवार घोषित कर दिया है। अजय माकन भाजपा से ज्यादा हमला आम आदमी पार्टी पर बोल रहे हैं। अब तो उन्होंने यहां तक कह दिया कि 2013 में केजरीवाल की सरकार को समर्थन देना और 2024 के लोकसभा चुनाव में दिल्ली में गठबंधन करना पार्टी की भूल थी।

साफ है कि इस बार कांग्रेस लड़ाई को त्रिकोणीय बनाना चाहती है। भाजपाई इसी से खुश हैं कि कांग्रेस के उभार का मतलब आम आदमी पार्टी का पराभव होगा और भाजपा जीत जाएगी। आम आदमी पार्टी ने जहां सभी सीटों पर उम्मीदवारों का एलान कर दिया है वहीं कांगे्रस ने भी अब तक 47 उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं। भाजपा तय नहीं कर पा रही कि केजरीवाल के मुकाबले किसे उतारेगी। कभी स्मृति ईरानी का नाम उछलता है तो कभी बांसुरी स्वराज का। कभी प्रवेश वर्मा का नाम उछलता है तो कभी हर्षवर्धन का। विवादित विवादों के कारण हाशिए पर चल रहीं नुपुर शर्मा को फिर केजरीवाल के मुकाबले उतारने की हिमायत करने वालों की भी पार्टी में कमी नहीं।

मुखिया से अलग मुखपत्र
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का हालिया बयान पक्ष और विपक्ष दोनों खेमों में घूम रहा है। संघ से लेकर भाजपा में उनके बयान का बहुत समर्थन नहीं किया गया। जाहिर सी बात है तब विपक्ष को सामने आना था। विपक्ष ने भागवत की बात का समर्थन करते हुए उस पर अमल कराने की नसीहत दे डाली। हैरत हर किसी को संघ के ही मुखपत्र आर्गनाइजर के संपादकीय को देखकर हुई है। मोहन भागवत ने मंदिर और मस्जिद विवाद पर कुछ समय पहले बयान दिया था कि हर मस्जिद में शिवलिंग ढूंढने की जरूरत नहीं। इसके बाद उन्होंने पुणे के एक कार्यक्रम में बोला कि मंदिर मस्जिद का विवाद उठाकर कुछ लोग समझते हैं कि वे हिंदुओं के नेता बन जाएंगे। इस बयान के उलट मुखपत्र का कहना है कि विवादित धार्मिक जगहों की असली पहचान जाहिर होनी चाहिए क्योंकि यह सभ्यतागत न्याय के लिए जरूरी है। संघ के मुखिया और उसके मुखपत्र के विरोधाभास की चर्चा अब चहुंओर है। भागवत कह रहे हैं कि हर मस्जिद में शिवलिंग न खोजें और उन्हीं के संगठन का अखबार दलील दे रहा है कि खोजना जरूरी है।