वाम मोर्चा अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है, वहीं यूपी उपचुनाव की तारीखें गंगा स्नान के चलते बदल गई हैं। दिल्ली में छठ पर्व के बहाने यमुना पर सियासत गरमाई हुई है, जबकि भाजपा में नए अध्यक्ष के चयन की चर्चाएं तेज हो रही हैं। इसी बीच, दिल्ली विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल के मुकाबले भाजपा के संभावित चेहरों की भी अटकलें जोर पकड़ रही हैं।

अस्तित्व का संकट

कभी देश के तीन राज्यों में सरकार रखने वाले वाम मोर्चा की हालत इन दिनों कुछ ज्यादा ही पतली नजर आ रही है। वाम मोर्चे में माकपा सबसे बड़ी पार्टी रही है। भाकपा, आरएसपी और फारवर्ड ब्लाक उसकी तुलना में हल्के वजूद वाले दल रहे हैं। पश्चिम बंगाल में तो वाम मोर्चे का 1977 से 2011 तक लगातार शासन रहा। आज हालत यह है कि इस सूबे में वाम मोर्चे का लोकसभा सदस्य तो दूर कोई विधानसभा सदस्य तक नहीं है। त्रिपुरा में भी वाम मोर्चा कभी सत्तारूढ़ था। अब अतीत का हिस्सा है। हां, इकलौते राज्य केरल में जरूर वाम मोर्चे की सरकार लगातार दूसरी बार है। हालांकि लोकसभा चुनाव में यहां भी मोर्चे को हार का मुंह देखना पड़ा। तमिलनाडु में जरूर द्रमुक की बदौलत माकपा और भाकपा दोनों के दो-दो लोकसभा सदस्य हैं। फारवर्ड ब्लाक का तो कोई नामलेवा भी नहीं। आरएसपी को केरल में एक सीट पर सफलता मिल गई थी। वाम मोर्चे में प्राण फूंकने का जिम्मा माकपा का ठहरा। माकपा महासचिव सीताराम येचुरी के निधन के बाद नए महासचिव की नियुक्ति होनी है। येचुरी के दौर में मोर्चे की हालत ज्यादा पतली हुई। फिलहाल पूर्व महासचिव प्रकाश करात कामकाज देख रहे हैं। येचुरी आंध्र के थे तो करात केरल के हैं। वाम मोर्चे से अलग वामपंथी विचारधारा की ही पार्टी भाकपा (माले) की स्थिति बिहार में फिर भी बेहतर है। उसके दो लोकसभा सदस्य और 14 विधानसभा सदस्य हैं।

आयोग का गंगा स्नान

चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश में विधानसभा की नौ सीटों के लिए हो रहे उपचुनाव की तारीख आखिर खिसका दी। भाजपा और उसके सहयोगी दल रालोद ने यह मांग पश्चिमी उत्तर प्रदेश की चार सीटों के मतदान पर कार्तिक पूर्णिमा के गंगा स्नान के कारण की थी। गंगा स्नान वैसे तो 15 नवंबर को है और मतदान की तारीख आयोग ने 13 नवंबर तय की थी। लेकिन गंगा स्नान इस क्षेत्र का ऐसा लोक उत्सव है जिसमें लाखों लोग कई दिन पहले गंगा तट पर पहुंच जाते हैं। मीरापुर सीट पर तो भाजपा को अपने मतदाताओं के 13 मई के मतदान से गैरहाजिर रहने का डर कुछ ज्यादा ही सता रहा था। चार सीटों के मतदान की तारीख खिसकाने पर चुनाव आयोग आरोपों के घेरे में आ जाता। सो आयोग ने सभी सीटों के उपचुनाव की तारीख अब 20 नवंबर कर दी है। तारीख बदलने से भाजपा खेमा तो काफी खुश है।

सियासी प्रदूषण और यमुना

दिल्ली में पूर्वांचल वोट बैंक पर सभी राजनीतिक दलों की नजरें रहती ही हैं। इसका असर हर बार छठ पर्व पर दिखता भी है। इस बार भी छठ की आस्था की आड़ में आम आदमी पार्टी और भाजपा यमुना पर आर-पार करते रहे। कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने वाले बड़े सियासी चेहरे भी भाजपा के मंच पर एक साथ नजर आए। इस उठापटक के बीच एक बार फिर यमुना नदी की सियासी सफाई करने की कोशिश की गई। राजनीतिक अवसरवादिता के रसायन ने यमुना के प्रदूषण को और भी बढ़ा डाला है। अभी जो नेता यमुना की सफाई के लिए झंठे उठा रहे थे उदयगामी सूर्य के अर्घ्य के साथ ही अपने सियासी बैरकों में लौट जाएंगे और व्रत की अगली तिथि तक यमुना भुला दी जाएगी।

दूर की कौड़ी

नए भाजपा अध्यक्ष के नाम को लेकर रहस्य अभी बना हुआ है। लिहाजा मीडिया और सियासी गलियारों में नित नए नामों की चर्चा गरम हो रही है। कुछ नामों के बाद फिर दूसरे नाम सामने आ जाते हैं। जेपी नड्डा का कार्यकाल वैसे तो पिछले साल ही खत्म हो गया था। पर वे किस्मत के धनी ठहरे। तीन साल की जगह तकरीबन पांच साल से पद पर बने हैं। मई से तो जिम्मेदारी दोहरी है। पार्टी के अध्यक्ष भी हैं और केंद्र में स्वास्थ्य मंत्री भी। भाजपा ने संगठन चुनाव के लिए के लक्ष्मण को अपना चुनाव अधिकारी नियुक्त कर दिया है।

आज की ताजी खबरें और अहम जानकारियां यहां पढ़ें…

नए अध्यक्ष का फैसला पहले हरियाणा व कश्मीर चुनाव के बाद होने की संभावना जताई जा रही थी। फिर महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव तक फैसला टल गया। दोनों राज्यों के चुनाव नतीजे 23 नवंबर को आ जाएंगे। यानी पार्टी अध्यक्ष का फैसला इसी साल हो जाएगा। पहले देवेंद्र फडणवीस और शिवराज चौहान के नाम उछले थे। जो अब ठंडे बस्ते में गए लग रहे हैं। नए नामों में धर्मेंद्र प्रधान और भूपेंद्र यादव के नाम भी चल रहे हैं। चर्चा में विनोद तावड़े और सुनील बंसल के नाम भी रहे। अब नया नाम पार्टी के महासचिव (संगठन) बीएल संतोष का सामने आया है। जो संघ से भाजपा में आए हैं। उनके नाम पर संघ भी सहमत हो जाएगा। बीएल संतोष के बारे में दावा किया जाता रहा है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी से भी उनका तालमेल बेहतर है।

केजरीवाल के सामने कौन?

दिल्ली में भी अगले साल फरवरी में विधानसभा चुनाव होने हैं। अरविंद केजरीवाल की पार्टी पिछले तीन चुनावों से लगातार सत्ता में बनी रहकर हैट्रिक तो पहले ही लगा चुकी है। मुख्यमंत्री अभी भले आतिशी हों पर आम आदमी पार्टी चुनाव तो अरविंद केजरीवाल के चेहरे पर ही लड़ेगी। केजरीवाल कह भी चुके हैं कि अगले चुनाव में उन्हें जिताकर जनता बेकसूर होने का प्रमाण देगी तभी वे मुख्यमंत्री पद संभालेंगे। प्रदेश के बाकी दोनों दल अभी तक मुख्यमंत्री के अपने चेहरे तय नहीं कर पाए हैं। कांग्रेस का खाता खुलना ही उपलब्धि होगी। भाजपा मान रही है कि इस बार केजरीवाल की लोकप्रियता का जादू उतर जाएगा। इसलिए इस पार्टी में दावेदार ज्यादा हैं।

मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा की बढ़ी सक्रियता को उनकी इसी महत्त्वाकांक्षा से जोड़कर देखा जा रहा है। दावेदार विधायक दल के नेता बिजेंद्र गुप्ता भी हैं। प्रवेश वर्मा, रमेश विधूड़ी और मनोज तिवारी भी इच्छुक बताए जा रहे हैं। महिला चेहरा उतारना पड़ा तो बांसुरी स्वराज, स्मृति ईरानी और स्वाति मालीवाल भी सामने आ सकती हैं। हालांकि ज्यादा संभावना यही मानी जा रही है कि आखिर में भाजपा नरेंद्र मोदी के नाम पर ही उतरेगी चुनाव मैदान में।