मायावती ने आकाश आनंद को फिर पार्टी में ऊंचा स्थान देकर परिवारवाद पर बहस छेड़ दी है। कांग्रेस और आप छात्र राजनीति में नई उम्मीद तलाश रहे हैं। उधर चिराग पासवान का ‘हनुमान’ से नीतीश भक्त बनना सियासी उलटफेर का संकेत है। अपना दल में भी मतभेद खुलकर सामने आ रहे हैं।
परिवार की माया
बहिनजी अपने भतीजे आकाश आनंद पर फिर मेहरबान हो गईं। आकाश आनंद इसी मंगलवार को बसपा के मुख्य राष्ट्रीय समन्वयक बनाए गए हैं। पार्टी के भीतर ही नहीं बाहर भी हर किसी को जिज्ञासा होगी कि मायावती का हृदय परिवर्तन कैसे हुआ। दिल्ली में बसपा के राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक में खुद मायावती ने आकाश की पार्टी में दूसरे नंबर की हैसियत का एलान किया। यह बताना भी नहीं भूलीं कि आकाश ने अपनी गलती मान ली है। उसकी पत्नी डाक्टर प्रज्ञा भी बहुत अच्छी हैं। मेरी रजामंदी के बिना कुछ नहीं करती। दरअसल सारा विवाद था ही अहम के टकराव का।
पहल खुद प्रज्ञा ने की। बहिनजी सारे विवाद और मनमुटाव का दोषी प्रज्ञा और उसके पिता अशोक सिद्धार्थ को मान रही थीं। प्रज्ञा ने उनसे अपने मायके जाने की इजाजत मांगी तो मायावती ने खुशी-खुशी दे दी। अहम जो तुष्ट हो गया। आखिर प्रज्ञा से आकाश का रिश्ता मायावती ने ही तो किया था। वह परिवार खुद मायावती की पसंद का था। जबकि आकाश के भाई ईशान ने पिछले महीने अपनी पसंद की लड़की से ब्याह कर लिया। गैर जाटव बहू लाने में बहिनजी को हिचक तो जरूर हुई पर मियां-बीवी राजी तो क्या करेगा काजी? बेमन ही सही सहमति देनी पड़ी। शायद इसलिए भी आकाश की ससुराल को लेकर नरम पड़ीं। वैसे, मायावती के घर की ‘माया’ को उनके अलावा कोई नहीं समझ सकता।
अकेली पड़ी कांग्रेस
केंद्र सरकार से लड़ाई में कांग्रेस फिलहाल अलग-थलग पड़ गई है। माकपा, तृणमूल के अलावा विपक्ष की और किसी पार्टी ने पहलगाम के मुद्दे पर संसद का विशेष सत्र बुलाने पर जोर नहीं दिया है। शरद पवार तो एक तरह से खुलकर सरकार के समर्थन में आ गए और विशेष सत्र के विचार को खारिज कर दिया। दूसरी तरफ एमके स्टालिन हों या तेजस्वी हों या अखिलेश यादव, सभी मौन साध गए। विदेश में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजने के सरकार के फैसले पर भी किसी ने नुक्ताचीनी नहीं की। ममता बनर्जी की आपत्ति के बाद उनकी बात मान ली गई लेकिन कांग्रेस पर तवज्जो नहीं दी गई। कांग्रेस ने तो विदेश मंत्री एस जयशंकर को पाकिस्तान का मुखबिर और जयचंद तक बता डाला। एक तरह से कांग्रेस भाजपा के बिछाए जाल में फंस गई। शशि थरूर को लेकर भी सरकार ने कांग्रेस के अंतर्विरोध को हवा दी।
अब विद्यार्थियों से उम्मीद
कभी पंद्रह साल तक दिल्ली की सत्ता पर काबिज रहने वाली कांग्रेस के पास आज के समय में राष्ट्रीय राजधानी में एक भी विधायक नहीं है। यह चिंता कांग्रेस को बुरी तरह सता रही है। इसी का असर है कि कांग्रेस जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं और युवाओं को जोड़ने में लगी है। युवाओं को पार्टी की विचारधारा से जोड़ने के लिए पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी खुद ही कालेजों तक पहुंच रहे हैं। ऐसा ही दिल्ली में सत्ता से अभी-अभी दूर हुई आम आदमी पार्टी के साथ भी है। यह पार्टी भी छात्र संगठन चुनाव से खुद को जोड़कर आगे के सियासी समीकरण तैयार करने में लगी है। दोनों ही दलों की निगाहें युवाओं पर हैं। पार्टियां साफ कह रही हैं कि युवा ही उनके बंद तालों की चाभी बन सकते हैं।
अपने हुए बेगाने
अपना दल (एस) उत्तर प्रदेश की क्षेत्रीय पार्टी है। गठबंधन की सरकार में इसने अपनी अहमियत बना कर रखी थी। इन दिनों इस पार्टी के नेता पार्टी छोड़ रहे हैं। केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल हैं इस पार्टी की सुप्रीमो। उनके पति और उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री आशीष पटेल पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष हैं। कहने को ये पिछड़ों की पार्टी है। यह बात अलग है कि पार्टी का असली जनाधार कुर्मियों में ही माना जाता है। भाजपा की सहयोगी है यह पार्टी। बसपा से अलग होने के बाद सोने लाल पटेल ने बनाई थी यह पार्टी। उनके निधन के बाद पार्टी दो फाड़ हो गई। सोने लाल की बेटी अनुप्रिया की अपनी मां से नहीं पटी। एक अनुप्रिया और उनके पति की है और दूसरी मां और छोटी बहन पल्लवी की।
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अनुप्रिया पटेल के अपना दल की ताकत ज्यादा है। कुछ दिन पहले ही पार्टी के उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष राजकुमार पाल ने त्यागपत्र दे दिया। अनुप्रिया और उनके पति पर तमाम आरोप लगाए। परोक्ष रूप से चुनाव में टिकट बेचने का भी। पिछड़ों के हितों की उपेक्षा का भी आरोप लगाया। यह कहने से भी नहीं चूके कि पिछडों की पार्टी नहीं असल में तो यह मियां-बीवी की प्राइवेट लिमिटेड कंपनी ठहरी। एक और नया खुलासा भी किया कि कार्यकर्ताओं के फोन आने पर आशीष पटेल झल्ला जाते हैं और कहते हैं कि उनके मोबाइल को पीसीओ समझ रखा है। रही राजकुमार पाल की बात, उनके समाजवादी पार्टी में जाने की अटकलें लग रही हैं।
‘हनुमान’ के भगवान!
आजकल सियासी रिश्तों का कोई मुकम्मल मिजाज नहीं। कोई आज इसका दुश्मन तो कल उसी का दोस्त बन जाता दिखता है। चिराग पासवान की मिसाल एकदम ताजा है। लोजपा (रामविलास) नेता और केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान पिछले सोमवार को पटना में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिले। उन्होंने बयान दिया कि विधानसभा चुनाव के बाद सूबे के अगले मुख्यमंत्री नीतीश ही होंगे। लगे हाथ अपनी पार्टी की तरफ से नीतीश को एक मांग पत्र भी थमा दिया। एक मांग यह थी कि पटना में रामविलास पासवान की आदमकद प्रतिमा लगाई जाए।
इस मांग पर नीतीश कुमार ने तुरंत हां कर दी। याद कीजिए कि चिराग ने ही 2020 के चुनाव में खुद को मोदी का हनुमान बता नीतीश के उम्मीदवारों को हरवाने और जनता दल (एकी) को तीसरे नंबर पर पहुंचाने का काम किया था। वे अक्सर प्रधानमंत्री को लेकर भावुक बयान दिया करते थे। सच यह भी है कि चिराग के मन में भाजपा को लेकर भी कसक होगी कि उसकी वजह से लोजपा टूटी थी और भाजपा ने उनके चाचा को केंद्र में मंत्री बना दिया था।