देश की सियासी और सामाजिक तस्वीर लगातार बदल रही है। भाजपा अपनी नेतृत्व चुनने में देरी और झारखंड व कर्नाटक जैसे राज्यों में विधायक दल के नेता चयन में अड़चनों का सामना कर रही है। दूसरी ओर, नवीन पटनायक चुनावी हार के बाद भी सक्रियता दिखाते हुए जनहित के मुद्दों पर मुखर हैं। पंजाब की राजनीति में निर्दलीय सांसदों और नई पार्टियों के गठन ने नया मोड़ ला दिया है। मिल्कीपुर विधानसभा उपचुनाव में भाजपा और सपा के बीच कांटे की टक्कर देखी जा रही है। वहीं, चंडीगढ़ जैसे शहर अपनी महंगी गाड़ियों और वीआईपी नंबरों के शौक से अलग ही कहानी बयां कर रहे हैं।
नए अध्यक्ष के चुनाव में भाजपा की देरी
दावा किया जा रहा है कि जेपी नड्डा चाहते हैं कि बीस जनवरी से पहले भाजपा को नया अध्यक्ष मिल जाए। उन्होंने 20 जनवरी 2020 को पद संभाला था। भाजपा में सिर्फ अध्यक्ष की खोज ही मुश्किल काम नहीं है। पार्टी अन्य मोर्चों पर भी अनिर्णय की स्थिति में है। मुख्यमंत्री तक चुनने में पार्टी को कई राज्यों में समय लगा, यह तो एकबारगी समझ आ सकती है पर प्रतिपक्ष में रहते हुए भी अपने विधायक दल के नेता का चयन पार्टी महीनों न कर पाए तो नुक्ताचीनी होगी ही। झारखंड में तो भाजपा को विधायक दल का नेता चुनने के लिए सुप्रीम कोर्ट को निर्देश देना पड़ा है। इस सूबे में विधानसभा चुनाव के नतीजे पिछले साल 23 नवंबर को आए थे। डेढ़ महीना बीत चुका है पर भाजपा अपने विधायक दल का नेता नहीं चुन पाई। झारखंड में 25 विधायकों के साथ भाजपा प्रमुख विपक्षी दल है। सुप्रीम कोर्ट किसी पार्टी के अंदरूनी मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता। मजबूरी थी तो उसे कहना पड़ा कि पार्टी दो हफ्ते के भीतर अपने विधायक दल का नेता तय करे। राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को जानकारी दी थी कि सूचना आयुक्तों की नियुक्ति में देरी की वजह नियुक्ति की सिफारिश करने वाली चयन समिति की बैठक न हो पाना है। जब तक नेता प्रतिपक्ष न हो, समिति की बैठक नहीं हो सकती। इससे पहले कर्नाटक में भी अपने विधायक दल का नेता चुनने में भाजपा ने कई महीने खपा दिए थे।
नवीन पटनायक की सक्रियता
नवीन पटनायक इस साल लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनाव में झटका खा गए थे। सवा चैबीस साल तक लगातार ओडिशा के मुख्यमंत्री रहे। उनसे ज्यादा दिन मुख्यमंत्री रहने का रिकार्ड देश में बस सिक्किम के मुख्यमंत्री पवन चामलिंग का है। चुनाव प्रचार के दौरान नवीन पटनायक के स्वास्थ्य को लेकर भाजपा ने काफी टीका टिप्पणी की थी। सूबे में पहली बार भाजपा सत्ता में आई तो हवा बनाने की कोशिश हुई कि बढ़ती उम्र और खराब सेहत की वजह से नवीन बाबू अब सियासत से संन्यास लेंगे। लेकिन चुनाव हारने के बाद से वे सक्रिय हैं। नवीन पटनायक ने जनहित के सवालों पर मुखर रुख अपनाया है। सत्ता गंवा कर निष्क्रिय रहे उद्धव ठाकरे, जगनमोहन रेड्डी, भूपिंदर हुड्डा, अशोक गहलोत, भूपेश बघेल, के चंद्रशेखर राव और बसवराज बोम्मई के उलट नवीन पटनायक ने महंगाई और दूसरे मुद्दों पर बड़ी रैली की।
पंजाब में बदल रहे हालात
पंजाब की सियासत में बदलाव का पहला संकेत तो मुख्यमंत्री बनने के बाद भगवंत मान के इस्तीफे से खाली हुई संगरूर लोकसभा सीट पर सिमरनजीत सिंह मान की जीत से ही मिल गया था। अब खडूर साहिब के निर्दलीय सांसद अमृतपाल और फरीदकोट के निर्दलीय सांसद सरबजीत सिंह ने हाथ मिला लिया है। शिरोमणि अकाली दल आनंदपुर साहिब नाम से अपनी नई पार्टी के गठन की तैयारी कर ली है। बस औपचारिक घोषणा बाकी है। सरबजीत सिंह इंदिरा गांधी के हत्यारे बेअंत सिंह के बेटे हैं। अमृतपाल आतंकवाद के आरोप में जेल में बंद हैं। अमृतपाल खालिस्तान के मुखर समर्थक रहे हैं। इसीलिए उनके पार्टी बनाने के एलान से बाकी सारे दलों की परेशानी बढ़ी है।
मिल्कीपुर की जंग
लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में मिली शिकस्त का हिसाब अब भाजपा मिल्कीपुर विधानसभा सीट के उपचुनाव में चुकता करना चाहेगी। मिल्कीपुर में उपचुनाव के लिए मतदान पांच फरवरी को दिल्ली विधानसभा के चुनाव के साथ ही होगा। मिल्कीपुर सीट अयोध्या के बगल में है और अयोध्या की तरह ही फैजाबाद लोकसभा सीट के तहत आती है। पिछले साल जनवरी में अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हुई थी। राम मंदिर के पुरजोर प्रचार का सूबे में भाजपा को अपेक्षित लाभ तो मिला ही नहीं था, फैजाबाद की लोकसभा सीट भी भाजपा हार गई थी। मिल्कीपुर की आरक्षित सीट के विधायक अवधेश प्रसाद को अखिलेश यादव ने फैजाबाद की सामान्य सीट पर लोकसभा उम्मीदवार बनाया था। अवधेश प्रसाद की जीत के बहाने इंडिया गठबंधन ने भाजपा की खूब लानत-मलानत की थी। अवधेश प्रसाद के इस्तीफे के कारण ही मिल्कीपुर में उपचुनाव हो रहा है। कांगे्रस ने यहां सपा का समर्थन कर दिया है। पिछले महीने नौ विधानसभा सीटों के उपचुनाव में उम्मीदवार उतारकर अपनी भद पिटवा चुकी मायावती ने मिल्कीपुर में उम्मीदवार न उतारने का फैसला किया है। मुकाबला सपा और भाजपा के बीच होगा। भाजपा ने अपना उम्मीदवार अभी घोषित नहीं किया है। सपा ने अवधेश प्रसाद के बेटे को उतारा है। पासी और यादव बहुल सीट होने के कारण भाजपा को यहां दिक्कत है। फिर भी योगी आदित्यनाथ ने यहां अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।
गड्डियों दा गढ़, वीआइपी नंबर
ऑडी एजी, लैंबार्गिनी एसपीए, बेंटले, मर्सिडीज बेंज एजी, जैगुआर लैंड रोवर, पोर्शे एजी जर्मनी, मसराती, फरारी…इनमें से कोई एक शाही गाड़ी रखना हर किसी का सपना हो सकता है। लेकिन चंडीगढ़ वैसा शहर है जहां हर घर ऐसी पांच गाड़ियों का मालिक है। शहर की जनसंख्या 12.30 लाख और पंजीकृत गाड़ियां 13 लाख। पिछले दिनों आए इस आंकड़े के बाद अगर चंडीगढ़ को गड्डियों दा गढ़ कहा जाए तो कोई नाइंसाफी नहीं होगी। चंडीगढ़ के बाशिंदे न सिर्फ महंगी गाड़ियों के शौकीन हैं बल्कि इनमें अति विशिष्ट नंबर की तख्ती लगवाने के लिए लाखों खर्च करने के लिए तैयार रहते हैं। खास पसंद की नंबरों के लिए साढ़े तेरह लाख से लेकर इक्कीस लाख रुपए तक खर्च किए गए हैं। कार के अलावा महंगी बाइक के खरीददार बनने में चंडीगढ़ के लोग सबसे आगे रहे हैं। तेज गति वाली 30 से ज्यादा महंगी बाइक इस साल पंजीकृत हुई हैं जिनकी कीमत शुरू ही 15 लाख से होती है। बीएमडब्लू और मर्सीडीज बेंज फिलहाल शहर के लोगों के लिए सबसे पसंदीदा बनी हुई हैं।