लोकसभा चुनाव के बाद देश में नई सरकार ने सत्ता संभाली तो अब चुनाव से लेकर भविष्य तक की समीक्षा और अनुमानों की चर्चा होने लगी है। कोई सीटें कम मिलने पर अपना राग अलाप रहा है तो कोई भविष्य में करना क्या है, यह सोचकर बेचैनी महसूस कर रहा है।
निशाने पर योगी
लोकसभा चुनाव के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ विरोधियों के बजाय अपनों के ही निशाने पर आ गए हैं। सहयोगी दलों के नेताओं ने बखिया उधेड़नी शुरू की तो भाजपा के नेता भी शुरू हो गए। कन्नौज में चुनाव हारे पूर्व सांसद सुब्रत पाठक ने तोहमत लगाई कि सूबे में प्रतियोगी परीक्षाओं के पर्चे लीक होने के कारण हार हुई। जबकि केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने उत्तर प्रदेश में पिछड़ों और दलितों के आरक्षण में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए योगी आदित्यनाथ को ही पत्र लिख दिया। भेजने से पहले उसे मीडिया में जारी कर दिया। इसके बाद अनुप्रिया पटेल ने 69,000 शिक्षकों की भर्ती में आरक्षण विवाद नहीं सुलझने से सियासी नुकसान होने की बात कही। सुभासपा के नेता और राज्य के मंत्री ओमप्रकाश राजभर का तो पहले से ही योगी से छत्तीस का आंकड़ा रहा है। योगी के ही एक और मंत्री निषाद पार्टी के संजय निषाद ने निषाद जाति को अनुसूचित जाति का दर्जा देने की मांग उठा दी। योगी ने वीआइपी संस्कृति पर वार किया तो उन्हीं के उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक को अखरा। कहा कि कार्यकर्ताओं का अपमान सहन नहीं होगा। अनुप्रिया के पति और योगी सरकार के मंत्री आशीष पटेल ने विश्वविद्यालयों का नामकरण पिछड़े व दलित महापुरुषों के नाम पर करने की मांग उठा दी। उधर अखिलेश यादव ने परेशानी बढ़ाते हुए बयान दे दिया कि भाजपा आलाकमान योगी को हटाना चाहता है।
बदले समीकरण
बीजू जनता दल भाजपा का सहयोगी नहीं रहा। नवीन पटनायक देर से समझे कि केंद्र की जिस भाजपा सरकार का वे हर मामले में आंख मूंदकर समर्थन करते रहे, उसी ने उनकी जड़ों को खोद दिया। पहले बीजू जनता दल के नेताओं को तोड़ा। फिर उनकी खराब सेहत को ही चुनाव में मुद्दा बना दिया। नवीन पटनायक ने साथ न दिया होता तो भाजपा सरकार को राज्यसभा में अपने विधेयक पारित करने में मुश्किल हो सकती थी। बीजू जनता दल के राज्यसभा में अभी भी 11 सदस्य हैं। संसद में ‘इंडिया’ गठबंधन का साथ देते दिखे संसद में बीजू जनता दल के सभी सांसद। वाइएसआर कांगे्रस के जगनमोहन रेड्Þडी अभी अपनी दिशा तय नहीं कर पा रहे हैं। उनके खिलाफ केंद्रीय एजंसियों की जांचों को इसकी वजह मान सकते हैं। पर चंद्रबाबू नायडू कतई सहन नहीं करेंगे कि केंद्र जगनमोहन के प्रति किसी भी तरह की नरमी दिखाए।
कश्मीर पर होगी अब नजर
इस साल तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में फिर इम्तिहान होगा राजग और इंडिया गठबंधन के दलों का। महाराष्टÑ, झारखंड और हरियाणा के विधानसभा चुनाव की चुनाव आयोग ने तैयारी भी शुरू कर दी है। महाराष्टÑ में इस समय महायुति यानि राजग की सरकार है और हरियाणा में भाजपा की। जबकि झारखंड में इंडिया गठबंधन सत्ता में है। इन तीन राज्यों से पहले तो महाभारत जम्मू कश्मीर में होगा। जहां तीस सितंबर से पहले चुनाव कराने का सुप्रीम कोर्ट का आदेश है। लेकिन उससे पहले तो वहां पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल किया जाना है। कश्मीर घाटी में लोकसभा की तीन सीटों पर भाजपा ने उम्मीदवार नहीं उतारे थे। विधानसभा में कौन किससे गठजोड़ करेगा, इस पर सबकी नजर होगी।
इस्तीफे का वार
किरोड़ी लाल मीणा ने राजस्थान सरकार के मंत्री पद से गुरुवार को इस्तीफा दे ही दिया। उन्होंने लोकसभा चुनाव से पहले एलान किया था कि दौसा सीट पर भाजपा उम्मीदवार कन्हैया लाल मीणा की हार हुई तो वे मंत्री पद से इस्तीफा दे देंगे। अपने उसी वचन को निभाया है। पर असल वजह भाजपा की अंदरूनी गुटबाजी को माना जा रहा है। पिछले साल दिसंबर में भाजपा आलाकमान ने एक नए चेहरे भजन लाल शर्मा को सूबे की सत्ता सौंपी थी। इससे दो बार मुख्यमंत्री रह चुकी वसुंधरा राजे का असंतुष्ट होना स्वाभाविक था। लोकसभा चुनाव में राजस्थान में भाजपा को अपनी सत्ता होने के बावजूद झटका लगा है। पच्चीस सीटों से घटकर पार्टी चौदह सीटों पर सिमट गई। रही किरोड़ी लाल मीणा की बात तो वे लगातार असंतुष्ट दिख रहे थे। भजन लाल शर्मा मंत्रिमंडल में उनके कद और अनुभव के मुताबिक विभाग जो नहीं मिला था। छह बार विधानसभा, दो बार लोकसभा और एक बार राज्यसभा के सदस्य रहे हैं मीणा। अनुसूचित जनजाति के कद्दावर नेता माने जाते हैं। खरी-खरी सुनाने से हिचकते नहीं। पिछले दिनों बयान दिया था-मुझे धोखा मिलता रहा है पर मैं जनता के लिए काम करता रहूंगा। अपनी ही सरकार के भ्रष्टाचार की भी परतें उघाड़ने से चूकते नहीं। भाजपा की इस अंदरूनी कलह पर जावेद अख्तर की यह नज्म फिट बैठती है-धुआं जो कुछ घरों से उठ रहा है, न पूरे शहर पर छा जाए तो कहना।
अभी अलविदा न कहना…
अठारहवीं लोकसभा जहां नए सदस्यों की ऊर्जा के साथ गुलजार थी वहीं राज्यसभा में कुछ सदस्य ऐसे थे जिन्होंने अपने कार्यकाल के अंतिम सत्र के तौर पर संबोधन दिया। संस्कृतिकर्मी व शास्त्रीय नृत्यांगना सोनल मानसिंह ने अपने कार्यकाल के अंतिम सत्र के भाषण में केंद्र सरकार के संस्कृति के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्यों को इंगित किया। केंद्र सरकार की स्त्री शक्ति को आगे करने की नीतियों का उल्लेख किया। वहीं, भाजपा सरकार की तरफ से वैचारिक युद्ध में सक्रिय रहने वाले राकेश सिन्हा ने भावुक होकर राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ से कहा कि उन्हें बोलने के लिए अतिरिक्त समय दिया जाए, क्योंकि यह उनका आखिरी भाषण है। लेकिन, उनकी मायूसी पर मुस्कान लाते हुए सभापति धनखड़ ने पूछा कि आपको कैसे मालूम कि यह आपका अंतिम भाषण है? धनखड़ के इस मिठास से भरे मजाक के बाद राकेश सिन्हा थोड़ी देर चुप रह कर मंद-मंद मुस्कुराने लगे। विश्वविद्यालयी शिक्षण से राज्यसभा तक पहुंचे राकेश सिन्हा इतिहासलेखन में भारतीय बौद्धिकता के विऔपनिवेशीकरण को लेकर मुखर रहे हैं। राज्यसभा के अपने कार्यकाल में उन्होंने सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से जुड़े कई मुद्दे उठाए।
संकलन: मृणाल वल्लरी