देश में असहिष्णुता बढ़ने के आरोपों को कागजी और बनावटी बता कर सरकार ने मंगलवार को खारिज कर दिया। गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से देश को विश्वास दिलाया कि अगर कोई देश की सामाजिक और धार्मिक समरसता को बिगाड़ने की कोशिश करेगा, तो उसकी खैर नहीं। उन्होंने यह भरोसा भी दिया कि अगर सरकार की ओर से कोई गलती हुई है तो वह उसमें सुधार करेगी।
देश में असहिष्णुता की घटनाओं से पैदा स्थिति के बारे में लोकसभा में सोमवार को शुरू हुई विशेष चर्चा का जवाब देते हुए गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने कहा- मैं नाज के साथ कह सकता हूं कि विश्व में अगर कहीं सर्वाधिक सहिष्णुता है तो वह भारत में है। असहिष्णुता के आरोपों को खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि असहिष्णुता का अगर कोई सबसे अधिक शिकार हुआ है, तो वह भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। गृहमंत्री होने के नाते अपनी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से मैं देश को यह विश्वास दिलाना चाहता हूं कि सामाजिक और धार्मिक समरसता को बिगाड़ने की अगर कोई कोशिश करेगा तो उसकी खैर नहीं।
उन्होंने असहिष्णुता के विरोध में पुरस्कार और सम्मान वापस करने वाले लेखकों, साहित्यकारों, वैज्ञानिकों, कलाकारों और बुद्धिजीवियों से अपील की कि वे अपने पुरस्कार वापस लें और असहिष्णुता के मुद्दे पर विचार विमर्श और मार्गदर्शन के लिए वे एक बैठक बुलाएं और उन्हें (राजनाथ को) आमंत्रित करें। अगर बुद्धिजीवियों और साहित्यकारों को लगता है कि असहिष्णुता का माहौल है तो आइए मिल-बैठ कर बात करें। हमारा मार्गदर्शन करें। अगर हमसे कोई गलती हुई है तो सुधार करें। कांग्रेस, वाम दल, राजद, जद (एकी) और तृणमूल कांग्रेस ने मंत्री के जवाब से असंतोष जताते हुए सदन से वाकआउट किया।
वीके सिंह और कुछ अन्य मंत्रियों व भाजपा नेताओं की टिप्पणियों पर प्रधानमंत्री की चुप्पी के आरोप का जवाब देते हुए गृह मंत्री ने कहा कि क्या पहले जब कभी ऐसी घटनाएं हुर्इं तो तब के प्रधानमंत्री ने प्रतिक्रियां दी थीं। प्रधानमंत्री ने मुझे गृह मंत्री की जिम्मेदारी सौंपी है और घटनाओं पर प्रतिक्रिया देना मेरी जिम्मेदारी है। मैं उन पर बोलता भी हूं और आवश्यक कार्रवाई भी करता हूं। विवादास्पद बयान देने वाले भाजपा के नेताओं से मैंने कहा है कि वे संभल कर और सोच समझ कर बोलें और यह सावधानी भी बरतें कि उनके बयानों की गलत व्याख्या न हो सके।
उन्होंने कहा कि वीके सिंह से स्वयं उन्होंने बात की। उन्होंने बताया कि उनकी बात को तोड़ मरोड़ कर रखा गया है। इस बारे में उन्होंने प्रेस में भी स्पष्टीकरण दिया। इसके बाद भी उन पर आरोप लगाना ठीक नहीं है। असहिष्णुता के नाम पर कागजी और बनावटी गोले दागे जा रहे हैं। हमारा देश और समाज सहिष्णु है और ऐसा किसी के दबाव में नहीं है बल्कि सहिष्णुता हमारी परंपरा है। विपक्ष सरकार पर असहिष्णुता के जो आरोप लगा रहा है वह सरकार पर नहीं बल्कि समाज और राष्ट्र पर है।
सिंह ने कहा कि असहिष्णुता का आरोप लगाने वाले देश को बेवजह बदनाम कर रहे हैं। ये लोग तब कहां थे जब कश्मीर में लाइब्रेरियों को आग के हवाले कर दिया गया। तब कहां थे जब कश्मीरी पंडित वहां से भगाए गए, तब कहां थे जब 1984 में सिख विरोधी दंगे हुए और अकेले दिल्ली में 2000 से अधिक लोगों को मार दिया गया और 131 गुरुद्वारे नष्ट कर दिए गए। ये लोग भागलपुर, मेरठ, हाशिमपुरा, मलियाना और नेल्ली में हुए नरसंहार के समय कहां थे। तसलीमा नसरीन को जब कोलकता से खदेड़ा गया और अभिव्यक्ति की आजादी पर डाका डाला गया तब ये लोग चुप क्यों थे।
गृह मंत्री ने पाकिस्तान से लेकर पश्चिम एशिया तक के विभिन्न मुसलिम देशों का हवाला देते हुए कहा कि वहां शिया, सुन्नी, अहमदिया, वहाबी आदि विभिन्न पंथों के बीच जबर्दस्त असहिष्णुता और लड़ाई है। जबकि भारत में इस्लाम के सभी 72 फिरके पूर्ण सौहार्द के साथ रहते हैं। सरकार अभी भी दादरी में एक मुसलिम व्यक्ति की पीट-पीट कर हत्या किए जाने की घटना की सीबीआइ से जांच कराने के लिए तैयार है लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार ने इस बारे में अभी तक कोई सिफारिश नहीं की है।
उन्होंने कहा कि यह आरोप है कि मोदी सरकार बनने के बाद असहिष्णुता बढ़ी है। मैं मानता हूं कि असहिष्णुता बढ़ी है लेकिन यह असहिष्णुता भ्रष्टाचार, आतंकवाद, गरीबी, गंदगी, बच्चों और महिलाओं के प्रति अत्याचारों के विरूद्ध है। कथित असहिष्णुता के विरोध में पुरस्कार लौटाने वाले 39 लोगों में से कुछ ने 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले एक बयान जारी किया था। जिसमें कहा गया था कि मोदी जैसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहिए। इनमें से एक ने तो मोदी को फासिस्ट तक कहा था। राजनाथ ने सवाल किया कि क्या यह असहिष्णुता नहीं है। विपक्ष द्वारा वाकआउट किए जाने पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि पूरी चर्चा के दौरान उन्होंने हर सदस्य की बात को गंभीरता से सुना। लेकिन कांग्रेस में इतनी भी सहिष्णुता नहीं है कि वह अपने द्वारा ही रखे गए विचारों पर उनके (राजनाथ) के जवाब को सुन सके।

