पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के दफ्तर (पीएमओ) में तैनात तत्कालीन अधिकारी वजाहत हबीबुल्लाह ने नई किताब में दावा किया है कि 1986 में राजीव गांधी को अयोध्या में बाबरी मस्जिद-रामजन्मभूमि परिसर में ताला खोले जाने की जानकारी नहीं थी। जम्मू-कश्मीर कैडर के पूर्व आईएएस अफसर हबीबुल्लाह मशहूर दून स्कूल में राजीव गांधी के जूनियर थे और बाद में पीएमओ में संयुक्त सचिव के पद पर तैनात किए गए थे।

हबीबुल्लाह ने अपनी नई किताब ‘माई इयर्स विद राजीव गांधी ट्रिंफ एंड ट्रेजडी’ में दावा किया है कि जब उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री से पूछा था कि क्या वह अयोध्या में ताला खुलवाने के फैसले में शामिल थे, तो राजीव गांधी का जवाब सीधा था और तत्काल था, “किसी भी धार्मिक स्थलों के कामकाज में हस्तक्षेप करना सरकार का काम नहीं है। मुझे इस बारे में तब तक कुछ पता नहीं था जब तक कि आदेश पारित नहीं हो गया और तब तक मुझे इस बारे में बताया नहीं गया।”  हबीबुल्लाह की किताब वेस्टलैंड पब्लिकेशन से प्रकाशित हुई है, जो इस साल अक्टूबर में बाजार में आने की संभावना है।

बता दें कि 1 फरवरी, 1986 को फैजाबाद के डिस्ट्रिक्ट जज के एम पांडेय ने महज एक दिन पहले (31 जनवरी, 1986) दाखिल की गई एक अपील पर त्वरित सुनवाई करते हुए करीब 37 साल से बंद पड़ी बाबरी मस्जिद का गेट खुलवा दिया था। सियासी गलियारों में आज तक ऐसी चर्चा है कि राजीव गांधी के इशारे पर ऐसा इसलिए किया गया था ताकि तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता देने से संबंधित शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया था उससे मुस्सिल समुदाय में नाराजगी थी और उसे कम करने के लिए मस्जिद का ताला खुलवाया गया था। उस वक्त यूपी में भी कांग्रेस की सरकार थी और वीर बहादुर सिंह सीएम थे।

हालांकि, हबीबुल्लाह का साफ मानना है कि शाहबानो केस की वजह से यह मुस्लिम तुष्टिकरण के तहत किया गया फैसला नहीं था। बतौर हबीबुल्लाह, एक फरवरी को तत्कालीन केंद्रीय मंत्री अरुण नेहरू यूपी के सीएम वीर बहादुर सिंह के साथ ही लखनऊ में थे।

हबीबुल्लाह ने लिखा है कि जब उन्होंने ताला खुलवाने पर राजीव गांधी से पूछा था कि आप प्रधानमंत्री थे, तब भी आपको पता नहीं चला? तब राजीव गांधी ने कहा था, “वास्तव में मैं अनजान था। मुझे इस कार्रवाई के बारे में सूचित नहीं किया गया था। मैंने वीर बहादुर सिंह (यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री, जिनकी देखरेख में (जैसा कि अफवाह थी) और जिनके निर्देशों के तहत मजिस्ट्रेट ने यह फैसला लिया था, या मैं इसे घातक निर्णय कहूंगा) से स्पष्टीकरण मांगा था। मुझे संदेह है कि अरुण (नेहरू) और फोतेदार (माखन लाल) इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं। अगर यह सच है तो मुझे कार्रवाई पर विचार करना होगा।” अरुण नेहरू तब राजीव सरकार में राज्यमंत्री थे।

किताब में कहा गया है कि राजीव गांधी और लेखक हबीहुल्लाह के बीच यह संवाद सितंबर 1986 में हुआ था, जब दोनों एक-दूसरे के सामने विमान में बैठे थे और गुजरात में सूखा प्रभावित इलाकों का हवाई दौरा करने जा रहे थे।