मीणा ने अपनी ही सरकार पर भ्रष्टाचार और फोन टेपिंग के आरोप लगाए हैं। दिल्ली चुनाव में बसपा की हार से मायावती मायूस होकर पार्टी में सख्त फैसले ले रही हैं। महाराष्ट्र में निकाय चुनावों को लेकर महायुति और महाविकास अघाड़ी में खींचतान बढ़ रही है। भाजपा के मुख्यमंत्री चयन में देरी अब उसकी नई रणनीति बनती जा रही है।
मीणा की माया
किरोड़ीलाल मीणा ने राजस्थान की राजनीति में भूचाल ला दिया है। भाजपा सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं सवाई माधोपुर के विधानसभा सदस्य किरोड़ीलाल मीणा। कृषि जैसा अहम मंत्रालय संभाल रहे हैं। राजस्थान भाजपा अध्यक्ष मदन राठौड़ ने उन्हें कारण बताओ नोटिस भेजा था। अनुशासनहीनता का आरोप लगाते हुए उनसे तीन दिन में जवाब मांगा था। मीणा ने बेहिचक जवाब दे दिया और अनुशासनहीनता के आरोप को सिरे से खारिज कर दिया। पांच पन्नों में दी सफाई में उलटे यही कहा कि मकसद जनता के हितों को सामने रखना था, पार्टी या सरकार की बदनामी करना नहीं। दरअसल मीणा ने छह फरवरी को एक जनसभा में अपनी ही सरकार पर ‘फोन टेपिंग’ का आरोप लगाया था। भ्रष्टाचार का आरोप लगाने से भी नहीं चूके। विपक्ष के नेता सचिन पायलट ने तो भाजपा पर वार किया ही, विधानसभा में चुनाव से पहले लाल डायरी का मुद्दा उठाकर तबके मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का सिर दर्द बढ़ाने वाले पूर्व मंत्री राजेंद्र गुढ़ा भी इस विवाद में कूद पड़े। मीणा का समर्थन करते हुए भाजपा को अहसानफरामोश बताया। नसीहत अलग दी कि मीणा के साथ जो भी हो रहा है, वह गलत है। जहां तक मीणा का सवाल है वे अनुसूचित जन जाति के पुराने और कद्दावर नेता ठहरे। मंत्रिपद से तो उन्होंने खुद ही पिछले दिनों इस्तीफा दिया था, पर भाजपा ने मंजूर नहीं किया।
हार की हताशा
दिल्ली चुनाव में बसपा ने 70 में से 68 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। इनमें से 53 तो हजार वोट भी हासिल नहीं कर पाए। पार्टी को कुल आधा फीसद यानी नोटा के बराबर ही वोट मिल पाए। जिस उत्तर प्रदेश में बसपा का मुख्य जनाधार रहा है वहां तो विधानसभा सीट के उपचुनाव में उम्मीदवार खड़ा नहीं किया और देश की राजधानी में जहां पार्टी का खास प्रभाव नहीं, वहां 68 उम्मीदवार उतार दिए। खुद एक भी दिन प्रचार नहीं किया। मायावती जब 2008 में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री थीं तब दिल्ली में बसपा का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन था। दो सीटों पर कामयाबी पाई थी और वोट भी 14 फीसद थे। दिल्ली की हार की हताशा में अपने भतीजे और उत्तराधिकारी आकाश आनंद के ससुर अशोक सिद्धार्थ को पार्टी से निकाल दिया है। चर्चा है कि आकाश आनंद के भी पर कतरने की तैयारी में हैं और दूसरे भतीजे को आगे बढ़ाने का इरादा है।
सांसद और सीए की डिग्री
दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद आम आदमी पार्टी की मुसीबतें बढ़ने के बाद लोग राघव चड्ढा की बेपरवाही पर कटाक्ष कर रहे थे। लेकिन बजट सत्र में मध्य-वर्ग की मुसीबतों पर बात कर वे सुर्खियों में आ गए। उन्होंने जीएसटी को आम आदमी की सबसे बड़ी मुसीबत बताया। इसके साथ ही उन्होंने आरोप लगाया कि बारह लाख से ऊपर की कमाई होने पर किसी व्यक्ति को पूरे वित्तीय वर्ष की कमाई पर कर देना होगा। चड्ढा के भाषण पर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। उनके सीए की डिग्री पर भी सवाल उठे। बजट सत्र में भाषण के बाद चड्ढÞा ने एक वीडियो जारी कर कहा कि वे अपने बयान पर टिके हैं और वित्त मंत्री आगे इस तरह के निजी आक्षेप न लगाएं।
खुमारी से गफलत
महाराष्ट्र में महायुति और महाविकास अघाड़ी दोनों ही गठबंधनों में शामिल दल एक दूसरे के साथ पैंतरेबाजी कर रहे हैं। सत्तारूढ़ महायुति की दुविधा यह है कि ढाई साल तक मुख्यमंत्री रह चुके एकनाथ शिंदे को उपमुख्यमंत्री पद पर ज्यादा मजा नहीं आ रहा। महाविकास अघाड़ी के दल भी अपनी-अपनी राह चल रहे हैं। शरद पवार ने दिल्ली में एकनाथ शिंदे को सम्मान क्या दे दिया, उद्धव ठाकरे की शिवसेना के नेता संजय राऊत बिफर उठे। नसीहत देने में तो राऊत माहिर हैं ही। उधर महायुति में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अचानक एमएनएस नेता राज ठाकरे से मुलाकात कर ली। सारे गुलगपाड़े की जड़ में मुंबई नगर निगम और महाराष्ट्र के दूसरे शहरों के निकाय चुनाव हैं। दोनों ही गठबंधनों में शामिल दलों ने एलान कर दिया है कि यह चुनाव सब अकेले लड़ेंगे। मुंबई नगर निगम जहां उद्धव ठाकरे के लिए बेहद अहम है वहीं भाजपा भी इस बार निगम पर कब्जा चाहती है। राकांपा और कांगे्रस का यहां अब उतना असर नहीं बचा है। शिंदे समर्थक एक मंत्री के फरमान से भाजपा और शिंदे के बीच अनबन बढ़ी है। फरमान यह कि मंत्री के आदेश के बिना उनके विभाग का कोई अफसर कोई आदेश जारी नहीं करेगा। यह मुख्यमंत्री के अधिकार पर सवाल है। भाजपा अब शिंदे को भाव नहीं दे रही। उसके पास शिंदे के समर्थन के बिना भी सरकार चलाने लायक पर्याप्त बहुमत है। पर शिंदे के सिर से मुख्यमंत्री पद की खुमारी उतरने का नाम ही नहीं ले रही।
नाम गुम जाएगा, गर उछल जाएगा
मुख्यमंत्री चुनने में देर लगाना भाजपा का नियम बन गया है। देरी के आमतौर पर दो कारण होते हैं। एक-पार्टी के पास बहुमत न हो और दूसरा पार्टी में अंदरूनी गुटबाजी हो या पार्टी का आलाकमान कमजोर हो। यह बात कांगे्रस पर लागू होती है, भाजपा पर नहीं। भाजपा का आलाकमान तो इतना ताकतवर है कि अब उसे मुख्यमंत्री के चयन के लिए विधायकों की राय की भी जरूरत महसूस नहीं होती। पिछले कुछ वर्षों के उदाहरण सामने हैं। ऐसे नेताओं को मुख्यमंत्री बनाया गया, जिनका किसी को अनुमान तक नहीं था। छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला था। लेकिन मुख्यमंत्री चयन में समय लगा। हरियाणा में तो हद हो गई। पार्टी ने नायब सिंह सैनी को पहले से मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर रखा था। उन्हें औपचारिक रूप से चुनने के लिए नौवें दिन विधायक दल की बैठक बुलाई गई। दिल्ली में मुख्यमंत्री पद के दावेदार जुगत तो लगा रहे हैं पर मीडिया की सुर्खियों से बचना चाहते हैं। दूध के जले छाछ को फूंक कर पी रहे हैं। अगर नाम उछल गया तो फिर आलाकमान की झोली से पर्ची निकलने से रही।