गुजरात में यह चर्चा जोरों पर है कि ओबीसी नेता और कांग्रेस विधायक अल्‍पेश ठाकोर पाला बदल भाजपा में शामिल हो सकते हैं। 2017 के विधानसभा चुनावों के समय खासी सुर्खियां बटोरने वाले ठाकोर का पार्टी से मोहभंग होता दिख रहा है। जब ठाकोर ने पार्टी ज्‍वाइन की थी, तब स्‍थानीय नेताओं को पीछे छोड़ सीधे कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी से हॉटलाइन पर बात करते थे। द इंडियन एक्‍सप्रेस में अपने साप्‍ताहिक कॉलम Inside Track में वरिष्‍ठ पत्रकार कूमी कपूर लिखती हैं कि अब राहुल ने ठाकोर का फोन उठाना बंद कर दिया है और राज्‍य कांग्रेस उन्‍हें धरातल पर लाना चाहती है।

पिछले महीने, ठाकोर ने दावा किया था कि उनके समुदाय के लोग ‘ठगा और उपेक्षित’ महसूस कर रहे हैं। उन्‍होंने कहा था, “मुझे लगता है कि मेरे समुदाय की उपेक्षा की जा रही है। पार्टी के भीतर मेरे समुदाय को उचित प्रतिनिधित्‍व नहीं मिल रहा है। राज्‍य में होने वाली हर बुरी घटना के लिए हमें दोषी ठहराया जा रहा।” ठाकोर ने लगभग धमकाते हुए कहा था, “अगर मेरे लोगों को कुछ न मिला तो मैं चुप नहीं बैठने वाला, विधायक पद पर नहीं बना रहूंगा।”

राहुल तक पहुंच न हो पाने की यह शिकायत नई नहीं है। हाल ही में, आंध्र प्रदेश से पांच बार सांसद रहे के सी देव ने भी यह कहते हुए कांग्रेस छोड़ दी थी कि उन्‍हें नवंबर (2018) से राहुल से मिलने का समय ही नहीं दिया जा रहा है। अखिलेश यादव के समर्थक कहते हैं कि राहुल से समाजवादी पार्टी का मोहभंग होने के पीछे एक बड़ी वजह यह भी है कि 2017 यूपी विधानसभा चुनावों में सपा-कांग्रेस गठबंधन की हार के बाद राहुल ने अखिलेश को फोन करना ही बंद कर दिया।

असम से आने वाले हिमंत बिस्‍व शर्मा उन शुरुआती कांग्रेसियों में से थे जिन्‍होंने राहुल पर वक्‍त न देने का आरोप लगा पार्टी छोड़ी थी। कांग्रेसियों का मानना है कि राहुल तक पहुंच न हो पाने की वजह खराब सचिवालय के चलते हैं। उन्‍हें उम्‍मीद है कि प्रियंका गांधी इस दिक्‍कत को दूर करेंगी।