मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने एक बार फिर से राफेल डील की जांच संयुक्त संसदीय समिति से कराने की मांग की है। दरअसल, कांग्रेस की यह मांग एक अंग्रेजी अखबार ‘द हिन्दू’ में छपी उस खबर के बाद फिर से मजबूत हुई है, जिसमें कहा गया है कि फ्रांस से होने वाली इस रक्षा खरीद में सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय का दखल था। हालांकि, रक्षा मंत्रालय ने उस दखल का विरोध किया था। अखबार में प्रकाशित सरकारी दस्तावेज दावा कर रहा है कि तत्कालीन रक्षा सचिव जी मोहन कुमार ने दिसंबर 2015 में राफेल सौदे के संदर्भ में तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर को एक पत्र लिखा था। पत्र में रक्षा मंत्रालय की तरफ से कहा गया था कि प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा राफेल सौदे में समानांतर बातचीत से रक्षा मंत्रालय की नेगोशिएशन टीम की कोशिशों को धक्का लग सकता है।
रक्षा सचिव के इस नोटिंग पर रक्षा मंत्री ने अपने हाथों से साफ सुथरी और करसिव हैंडराइटिंग में टिप्पणी की है। पर्रिकर ने अपने नोट में लिखा है, “ऐसा प्रतीत होता है कि पीएमओ और फ्रांसीसी राष्ट्रपति का कार्यालय उस मुद्दे की प्रगति की निगरानी कर रहा है जो शिखर बैठक का एक परिणाम था। पैरा 5 एक ओवर रिएक्शन प्रतीत होता है। डीआई सेक [रक्षा सचिव] प्रधानमंत्री के प्रिंसिपल सेक्रेटरी से परामर्श कर समस्या/मामले को हल कर सकते हैं।”

रक्षा मंत्री की टिप्पणी वाले इस नोटिंग के बाद कांग्रेस के उन आरोपों को बल मिला है कि राफेल जेट की खरीद से जुड़ी डील में प्रधानमंत्री कार्यालय सीधे दखल दे रहा था। अखबार में इस पत्र के छपने के बाद शुक्रवार (8 फरवरी) को संसद में मुद्दे को उठाया गया। टीएमसी सांसद सौगत रॉय ने संसद में सवाल उठाया कि जब राफेल विमान खरीदने के लिए रक्षा मंत्रालय और फ्रांस सरकार के बीच बातचीत जारी थी तो क्यों प्रधानमंत्री कार्यालय से हस्तक्षेप किया गया? कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे गंभीर मामला बताते हुए कहा कि जब प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री और एयर चीफ मार्शल इस मुद्दे पर अलग-अलग बात कह रहे हैं तब सच्चाई उजागर करने के लिए सिर्फ जेपीसी का रास्ता बचता है।
विपक्ष के आरोपों के बीच रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में सफाई दी और राफेल मामले पर सभी आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला देश के सामने है। बावजूद इसके विपक्ष गड़े मुर्दे उखाड़ने की कोशिश कर रहा है।