वैश्विक क्यूएस विश्वविद्यालय रैंकिंग के अनुसार जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) भारत में सर्वोच्च रैंक वाला विश्वविद्यालय है। विकास अध्ययन श्रेणी में यह विश्वविद्यालय विश्व स्तर पर 20वें स्थान पर रहा। उच्च शिक्षा विश्लेषण संबंधी कंपनी क्वाक्वेरेली साइमंड्स (क्यूएस), लंदन की ओर से बुधवार को घोषित विषय आधारित प्रतिष्ठित रैंकिंग में 59 भारतीय विश्वविद्यालयों ने जगह बनाई।

भारतीय प्रबंधन संस्थान (आइआइएम) अहमदाबाद व्यवसाय एवं प्रबंधन अध्ययन श्रेणी में विश्व के शीर्ष 25 संस्थानों में से एक है। इसी तरह भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) मद्रास, दिल्ली और बांबे ने भी दुनिया के 50 शीर्ष संस्थानों में जगह बनाई। चेन्नई स्थित ‘सविता इंस्टीट्यूट आफ मेडिकल एंड टेक्निकल साइंसेज’ दंत चिकित्सा अध्ययन श्रेणी में विश्व स्तर पर 24वें स्थान पर है।

वहीं, 25 विषयों के अध्ययन के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) को दुनिया के शीर्ष विश्वविद्यालयों में से एक के रूप में नामित किया गया है। आइआइटी मद्रास को पेट्रोलियम इंजीनियरिंग में 29वां स्थान और इंजीनियरिंग-यांत्रिक, वैमानिकी व विनिर्माण में 44वां स्थान प्राप्त हुआ है।

आइआइटी दिल्ली कंप्यूटर विज्ञान व सूचना तंत्र में 63वें, इंजीनियरिंग-इलेक्ट्रिकल व इलेक्ट्रानिक में 55वें और इंजीनियरिंग-सिविल व संरचनात्मक में 39वें स्थान पर रहा। आइआइटी बांबे को रसायन विज्ञान में 95वीं, कैमिकल इंजीनियरिंग में 64वीं, गणित में 89वीं, खनिज व खनन इंजीनियरिंग में 25वीं और डेटा विज्ञान व कृत्रिम मेधा में 30वीं रैंकिंग हासिल हुई।

क्यूएस की मुख्य कार्यकारी (सीईओ) जेसिका टर्नर ने कहा कि भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक गुणवत्तापूर्ण शिक्षा है। उन्होंने कहा कि 2020 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में 2035 तक 50 फीसद सकल नामांकन अनुपात का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया गया है। उन्होंने कहा कि क्यूएस ने यह गौर किया है कि भारत के निजी तौर पर संचालित तीन उत्कृष्ट संस्थानों के कई कार्यक्रमों ने इस साल प्रगति की है जो भारत के उच्च शिक्षा क्षेत्र को आगे बढ़ाने में अच्छी तरह से विनियमित निजी प्रावधान की सकारात्मक भूमिका को प्रदर्शित करता है। हालांकि मानकों में सुधार, उच्च शिक्षा तक पहुंच, विश्वविद्यालयों की आभासी तैयारी और वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता के लिए अब भी बहुत काम किया जाना बाकी है लेकिन यह स्पष्ट है कि भारत सही दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम उठा रहा है।

क्यूएस के अनुसार, भारत दुनिया में सबसे तेजी से विस्तार करने वाले शोध केंद्रों में से एक है। उसने कहा कि 2017 से 2022 के बीच शोध में 54 फीसद तक की वृद्धि हुई है जो न केवल वैश्विक औसत के दोगुने से अधिक है, बल्कि पश्चिमी समकक्षों से भी काफी अधिक है। क्यूएस के वरिष्ठ उपाध्यक्ष बेन साटर ने कहा कि मात्रा के लिहाज से, भारत अब शोध क्षेत्र में दुनिया का चौथा सबसे बड़ा देश है और इस अवधि में 13 लाख अकादमिक शोध पत्र तैयार किए गए जो चीन के 45 लाख, अमेरिका के 44 लाख और ब्रिटेन के 14 लाख से पीछे है। उन्होंने कहा कि मौजूदा गति को देखते हुए, भारत शोध उत्पादकता में ब्रिटेन को पीछे छोड़ने के करीब है।

उन्होंने कहा कि हालांकि, ‘उद्धरण गणना’ द्वारा मापे गए शोध प्रभाव के संदर्भ में, भारत 2017-2022 की अवधि के लिए विश्व में नौवें स्थान पर है। साटर ने कहा कि यह एक प्रभावशाली परिणाम है और उच्च गुणवत्ता वाले प्रभावशाली अनुसंधान को प्राथमिकता देना तथा अकादमिक समुदाय के भीतर इसका प्रसार अगला कदम है। क्यूएस के अनुसार एशिया क्षेत्रीय संदर्भ में, भारत ने विश्वविद्यालयों की संख्या (69) के मामले में दूसरा स्थान हासिल किया है और केवल चीन (101) ही उससे आगे है।