निष्क्रिय जीवन-शैली के चलते बच्चों में बढ़ते वजन की समस्या कई व्याधियों का कारण बन रही है। मधुमेह, हृदय रोग, कैंसर, उच्च रक्तचाप, अनिद्रा और अस्थमा जैसी बीमारियों के पीछे बच्चों की शारीरिक स्थूलता भी एक बड़ा कारण है। इतना ही नहीं, मोटापे के चलते उन्हें अवसाद और तनाव जकड़ रहा है। अपनी शारीरिक संरचना से असंतुष्ट बच्चे अकेले और आत्मकेंद्रित हो जाते हैं।

एक ओर कुपोषण तो दूसरी ओर मोटापा बचपन के लिए मुसीबत बन रहा है। सहज और श्रमशील जीवनशैली वाले हमारे देश में अनगिनत व्याधियों की जड़ कहा जाने वाला मोटापा नई पीढ़ी को अपनी गिरफ्त में ले रहा है। खेलने-कूदने की उम्र में स्थूल होते शरीर से बच्चों के शारीरिक ही नहीं, भावनात्मक स्वास्थ्य पर भी दुष्प्रभाव पड़ रहा है। गौरतलब है कि देश भर के आंगनबाड़ी केंद्रों में किए गए सर्वेक्षण में यह स्थिति सामने आई है।

सर्वेक्षण के अनुसार पांच वर्ष तक की आयु के तेंतालीस लाख से अधिक बच्चों में मोटापा पाया गया है। इन आंकड़ों से यह भी स्पष्ट हुआ है कि मोटे या अधिक वजन वाले बच्चों का प्रतिशत आंगनबाड़ियों में पाए जाने वाले गंभीर और मध्यम कुपोषित बच्चों की संख्या के आसपास ही है। इन केंद्रों में कुपोषित बच्चों का आंकड़ा छह फीसद था।

इस सर्वेक्षण में देश के तेरह प्रांतों में बच्चों का वजन बढ़ने की स्थितियां सामने आई हैं। मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, राजस्थान, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल में मोटापे की दर राष्ट्रीय औसत छह फीसद से अधिक है। कुपोषण का ही एक रूप कहे जाने वाले मोटापे के ये आंकड़े बेहद चिंताजनक हैं।

दरअसल, बच्चों की भोजन की आदतें ही नहीं, जीवनशैली भी पूरी तरह बदल गई है। एक तरफ स्मार्ट फोन में मगन बच्चों की खेल मैदान से दूरी बढ़ी है, तो दूसरी तरफ भोजन की अस्वस्थ आदतों ने बचपन में डेरा जमा लिया है। असंतुलित खानपान आज बड़े शहरों या महानगरों ही नहीं, गांवों-कस्बों में भी आम बात है। डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों को बच्चे खूब चाव से खाते हैं। ऐसे पदार्थों के विज्ञापनों की मनभावन रूपरेखा भी बच्चों को अपने शिकंजे में ले रही है। यही वजह है कि पारंपरिक खाद्य पदार्थों का सेवन नई पीढ़ी की जीवनशैली का हिस्सा ही नहीं बन पा रहा।

कमोबेश देश के हर हिस्से के परिवारों में नई पीढ़ी अब क्षेत्र विशेष के व्यंजनों के बजाय डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ खाना पसंद करती है। बच्चों की मासूम जिद और बड़ों की दिखावटी जीवन-शैली ने खानपान की इन आदतों को खूब बढ़ावा दिया है। ‘फास्टफूड’ और मीठे पेय पदार्थ लेते रहने की आदत शरीर में वसा जमने का अहम कारण है। जबकि ऐसे खाद्य और पेय पदार्थ बच्चों के विकसित होते शरीर को पोषण कम और कैलोरी ज्यादा देते हैं। इससे शरीर में कई अंगों का सही विकास नहीं हो पाता है। वहीं स्वाद विशेष की आदत बालमन को इनका लती बना देती है।

असंतुलित आहार और निष्क्रिय होती जीवन-शैली के चलते नई पीढ़ी में मोटापे की मुसीबत चिंताजनक हो चली है। यही वजह है कि बचपन में बढ़ते मोटापे को लेकर अभिभावक, चिकित्सक और शिक्षक भी चिंतित हैं। भारत ही नहीं, मोटापा वैश्विक स्तर पर बाल स्वास्थ्य से जुड़ा जोखिम बन गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार 2020 में पांच वर्ष से कम उम्र के 3.9 करोड़ बच्चे अधिक वजन वाले या मोटापे से ग्रस्त थे।

हमारे देश में भी बाल स्थूलता के आंकड़े वर्ष-दर-वर्ष बढ़ रहे हैं। गौरतलब है कि 2015-2016 में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 और 2019-2021 में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के आंकड़ों में भी बच्चों के वजन में बढ़ोतरी दर्ज हुई थी। इस दौरान अधिक वजन वाले पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की संख्या में इजाफा देखा गया।

‘पोषण ट्रैकर’ से राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के तहत जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 में मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में पांच वर्ष से कम उम्र के अधिक वजन वाले बच्चों का फीसद सबसे अधिक पाया गया। इन राज्यों के बाद ‘सी’ सूची में सिक्किम और त्रिपुरा रहे। दूसरी ओर, मध्यप्रदेश, बिहार और आंध्र प्रदेश में पांच वर्ष से कम उम्र के अधिक वजन वाले बच्चों का फीसद सबसे कम रहा। ज्ञात हो कि एनएफएचएस-4 में मोटापे से ग्रस्त बच्चों की संख्या 2.1 फीसद थी, इस सर्वेक्षण में बढ़कर 3.4 फीसद तक पहुंच गई।

चिंतनीय है कि नई पीढ़ी के जीवन में पैठ बना चुकी भोजन की अस्वस्थ आदतें शारीरिक संरचना ही नहीं, भावनात्मक स्वास्थ्य और व्यवहारगत बदलाव से भी जुड़ी हैं। बालमन और जीवन से जुड़े हर मोर्चे पर सेहत से जुड़ी परेशानियों को बढ़ाने वाली हैं। खेलने-कूदने की उम्र में भी मोटापाग्रस्त बच्चों को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है। आनलाइन खेलों तक सिमटे बच्चे पूरी तरह सुस्त जीवन-शैली का शिकार हो जाते हैं। इतना ही नहीं, चीनी और वसायुक्त खाद्य पदार्थों का सेवन बच्चों के व्यवहार पर भी नकारात्मक असर डालता है।

ऐसा खानपान बच्चों को आलसी और मन से बेचैन बनाता है। शारीरिक श्रम बहुत ज्यादा थकावट पैदा करता है। मोटापे के शिकार बच्चों का कद बढ़ना रुक जाता है। गरीब परिवार खर्च न कर पाने की विवशता के चलते पौष्टिक आहार से दूर हो रहे हैं, तो आर्थिक रूप से सक्षम परिवारों में आधुनिक जीवन-शैली के फेर में बच्चे ऐसे पदार्थों का सेवन कर रहे हैं।

नतीजतन, निष्क्रिय जीवन-शैली के चलते बच्चों में बढ़ते वजन की समस्या कई व्याधियों का कारण बन रही है। मधुमेह, हृदय रोग, कैंसर, उच्च रक्तचाप, अनिद्रा और अस्थमा जैसी बीमारियों के पीछे बच्चों की शारीरिक स्थूलता भी एक बड़ा कारण है। इतना ही नहीं, मोटापे के चलते उन्हें अवसाद और तनाव जकड़ रहा है। अपनी शारीरिक संरचना से असंतुष्ट बच्चे अकेले और आत्मकेंद्रित हो जाते हैं।

एक चिंताजनक पहलू यह भी है कि बचपन में ज्यादा वजन की समस्या से जूझने वाले लोगों में 50 से 80 फीसद बड़े होने पर भी मोटापे की जद में रहते हैं। नतीजतन, बालपन में जड़ें जमाने वाली बहुत-सी शारीरिक समस्याएं उम्र भर पीछा नहीं छोड़तीं। बावजूद इसके, बहुत से परिवारों में बच्चे के बढ़ते वजन को कोई समस्या ही नहीं माना जाता।

जबकि बाल स्वास्थ्य से जुड़े इस जोखिम को संबोधित ‘अमेरिकन एकेडमी आफ पिडियाट्रिक्स’ द्वारा मोटापे से मुक्ति पाने वाली आदतों और दिशानिर्देशों की सूची में सबसे पहले इस समस्या को पहचाने की बात कही गई है। बच्चे के वजन की स्थिति का आकलन और उससे जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं को समझते हुए आहार से जुड़ी आदतों, शारीरिक गतिविधियों के स्तर और स्मार्ट फोन पर बिताए जा रहे समय को लेकर उचित बदलाव लाने की बात कही गई है।

बच्चों में बढ़ते वजन की यही गति रही, तो 2025 तक भारत बच्चों के मोटापे के मामले में दुनिया में दूसरे स्थान पर होगा। हालांकि कुछ बच्चों में आनुवंशिक कारणों से भी मोटापे की समस्या रहती है, पर अधिकतर मामलों में शारीरिक निष्क्रियता और खानपान की गलत आदतें ही बच्चों की काया को स्थूल बना रही हैं। ऐसे में परंपरागत खानपान और सक्रिय जीवनशैली ही नई पीढ़ी को अनगिनत व्याधियों की जड़ बन रहे मोटापे से बचा सकते हैं। इतना ही नहीं, अभिभावकों को बाजार की आक्रामक रणनीति से भी बच्चों को बचाना होगा।

मोटापे से निपटने के लिए बच्चों के पालन-पोषण से जुड़े अन्य पहलुओं के समान इस मोर्चे पर भी माता-पिता को सजग रहना होगा। संतुलित और स्वस्थ आहार को बढ़ावा देते हुए ऐसे क्रमिक बदलाव किए जा सकते हैं। स्मार्ट उपकरणों से माता-पिता स्वयं भी दूसरी बनाएं, और बच्चों को भी हर पल तकनीकी दुनिया में गुम रहने से बचाएं। भटकाव भरे मौजूदा समय में नई पीढ़ी को स्वस्थ जीवन-शैली से जुड़े बदलावों को अपनाने का मार्गदर्शन अभिभावकों से मिलना ही चाहिए।