Ayodhya Ram Mandir Udghatan: अयोध्या में 22 जनवरी को राम मंदिर ‘प्राण प्रतिष्ठा’ का आयोजन होने वाला है। इसकी शुरुआत हो चुकी है। लोग इस अनुष्ठान के बारे में जानना चाह रहे हैं। लोगों के मन में जिज्ञासा है कि आखिर ‘प्राण प्रतिष्ठा’ क्या है और यह अनुष्ठान कैसे होता है। मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास से जानिए कि ‘प्राण प्रतिष्ठा’ कैसे होती है।
आचार्य सत्येंद्र दास ने प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान के बारे में बताया “उस परमात्मा भगवान श्री राम और ये बनी हुई जो प्रतिमा है, इसमें उस परमात्मा की साक्षात सारी शक्तियां समाविष्ट हो जाएं। यह वेदों के मंत्र से किया जाता है। जिससे हमारे देश और दर्शन करने वाले भक्तों का कल्याण हो सके। जो उस परम परमात्मा की शक्ति है वह इस प्रतिमा में आ जाए। उस परमात्मा की तपस्या और भक्ति से हमें शक्ति मिलती है, उसी प्रकार की शक्ति इस प्रतिमा में भी है। जिससे इस परमात्मा का दर्शन करने से भी हमें वही फल मिले जो हमें उस परमात्मा की भक्ति से मिलती है।
भगवान राम सारी शक्तियां मूर्ति में समाविष्ट हो जाएं
इसका यही मतलब है कि भगवान राम की जो सारी शक्तियां हैं वे इस मूर्ति में समाविष्ट हो जाएं। इसलिए जो भी दर्शन करने वाले हैं, पूजा करने वाले हैं, मांगने वाले हैं उनका कल्याण होता है। यही प्राण प्रतिष्ठा है। यह विषम दिनों में की जाती है। ये विषम दिन 7 हो जाएं, 11 हो जाएं या फिर 21 हो जाएं। इसलिए इस कार्यक्रम की शुरुआत 17 से हो रही है, जो 23 को समाप्त हो रही है।
जब प्रत्यक्ष रूप से प्राण प्रतिष्ठा हो रही है तो इसे लोग देख सकते हैं। सब सामने हो रहा है। पहले कलश यात्रा हुई फिर मूर्ति का नगर भ्रमण हुआ। इसके बाद सरयू में स्नान हुआ। सरयू से जल लेकर आए। ये सारी प्रक्रिया सामने दिखाई दे रही है। ये प्रारंभिक है, इसके बाद से सरयू के जल से सभी काम पूर्ण किए जाएंगे। 6 दिनों तक पूरा कार्यक्रम चलता रहेगा।
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इस विधि का करना होता है पालन
इसके बाद 7वें यानी अंतिम दिन 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा की जो मूर्ति है उसका जलाधिदिवास (जल में रखना), दुग्धादिवास (दूध में रखना), पुष्पादिवास, (फूल में रखना, औषधिवास (औषधि में रखना), अन्नादिवास (अन्न में रखना) के बाद स्नान कराया जाएगा। तब उस मूर्ति में मंत्रों के द्वारा प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। उस वक्त मूर्ति की आंख बंधी रहेगी। अंतिम रूप में जब मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा के बाद शक्ति आ जाती है तो इसे स्थापित किया जाता है। इसके बाद आंख खोली जाती है फिर काजल लगाया जाता। इसके बाद भगवान का दर्शन किया जाता है।