बढ़ती आबादी के दबाव में और औद्योगीकरण से पानी की मांग बढ़ती जा रही है। इसलिए भूजल का अंधाधुंध दोहन हो रहा है और नतीजतन, जमीन के अंदर पानी के स्तर में लगातार गिरावट होती जा रही है। नदियों पर हर संभावित प्राकृतिक स्थल पर बांध बनाए गए हैं। बांधों की ऊंचाई के दुष्परिणाम भी हुए।
जंगल डूब में आते चले गए और ग्रामीण इलाकों में रहने वाली एक बहुत बड़ी आबादी का विस्थापन हुआ। रहवासी क्षेत्रों के अंधाधुंध सीमेंटीकरण, पालीथिन के व्यापक उपयोग और कचरे के समुचित निपटान के अभाव में, हर साल तेज बारिश के समय या बादल फटने की प्राकृतिक घटनाओं से शहर, सड़कें बस्तियां लगातार डूब में आने की घटनाएं बढ़ी हैं।
हर अगले साल प्रकृति के कोप और उससे उपजी बाढ़ की इन समस्याओं के तकनीकी समाधान क्या हैं? नदियों को जोड़ने की योजनाएं अब तक हकीकत नहीं बन पाई हैं। यांत्रिक सुविधाओं और तकनीकी रूप से विगत दो दशकों में हम इतने संपन्न हो चुके हैं कि समुद्र की तलहटी पर भी उत्खनन के काम हो रहे हैं। समुद्र पर पुल तक बनाए जा रहे हैं। बिजली और आप्टिकल सिग्नल तारों का जाल बिछाया जा रहा है।
अब जरूरी है कि अभियान चलाकर बांधों में जमा गाद ही न निकाली जाए, बल्कि भूगर्भ विज्ञान विशेषज्ञों की सलाह के अनुरूप बांधों को गहरा करके उनकी जल संग्रहण क्षमता बढ़ाए जाने के लिए हर स्तर पर प्रयास किए जाए। शहरों के किनारे से होकर गुजरने वाली नदियों में ग्रीष्म काल में जल धारा सूख जाती है। हाल ही क्षिप्रा के तट पर संपन्न उज्जैन के सिंहस्थ के लिए क्षिप्रा में नर्मदा नदी का पानी पम्प करके डालना पड़ा था। अगर क्षिप्रा की तली को गहरा करके जलाशय बना दिया जाए तो उसका पानी स्वत: ही नदी में बारहों माह संग्रहित रहेगा।
इस विधि से बरसात के दिनों में बाढ़ की समस्या से भी किसी हद तक और गिरते हुए भूजल स्तर पर भी नियंत्रण हो सकता है, क्योंकि गहराई में पानी संग्रहण से जमीन फिर जलीकृत होगी। साथ ही जब नदी में ही पानी उपलब्ध होगा तो लोग ट्यूब वेल का इस्तेमाल भी कम करेंगे। इस तरह दोहरे स्तर पर भूजल में वृद्धि होगी। वर्तमान में पहाड़ खोदे जा रहे हैं, जिससे पर्यावरण को व्यापक स्थायी नुकसान हो रहा है, क्योंकि पहाड़ियों की खुदाई करके पत्थर और मुरम तो प्राप्त हो रहे हैं, पर इन पर लगे वृक्षों का विनाश हो रहा है। पहाड़ियों के खत्म होते जाने से स्थानीय बादलों से होने वाली वर्षा भी प्रभावित हो रही है।
नदियों की तलहटी की खुदाई से एक और बड़ा लाभ यह होगा कि इन नदियों के भीतर छिपी खनिज संपदा का अनावरण सहज ही हो सकेगा। पनबिजली बनाने के लिए अवश्य ऊंचे बांधों की जरूरत बनी रहेगी, पर उसमें भी तकनीकी के नवाचार के जरिए विद्युत उत्पादन को बढ़ावा देकर गहरे जलाशयों के पानी का उपयोग किया जा सकता है।
बरसात में हर क्षेत्र की नदियों में बाढ़ की तबाही मचाता जो पानी व्यर्थ बह जाता है और साथ में मिट्टी बहा ले जाता है, वह नगर-नगर में नदी के क्षेत्रफल के विस्तार में ही गहराई में साल भर संगृहीत रह सके और इन प्राकृतिक जलाशयों से उस क्षेत्र की जल आपूर्ति वर्ष भर हो सके।
विवेक रंजन श्रीवास्तव विनम्र भोपाल।
स्वदेश के प्रति
अमेरिका में बढ़ती भारतवंशियों की चमक ने सिद्ध कर दिया है कि पढ़ाई और कमाई में आगे रहने वाले भारतवंशियों ने ही विश्व में अमेरिका की चमक बढ़ाने से अन्य देशों में भी भारतीयों की मांग बढ़ती जा रही है। ‘पलायन के पीछे’ (संपादकीय, 24 जुलाई) पढ़ा। भारत से इंजीनियर, वैज्ञानिक, चिकित्सक और तकनीक विशेषज्ञ आदि विदेशों में मिलने वाली सुविधा आदि की वजह से दो लाख से अधिक लोग विदेश चले गए। सवाल है कि अच्छी-खासी जनसंख्या वाले देश में रोजगार और सुविधा का अभाव क्या पलायन का एकमात्र का कारण है?
पीड़ा होती है जब भारत के लोग विदेशी नागरिकता स्वीकारते और वहीं बस जाते हैं। यह एक तरह से अपनी मातृभूमि के प्रति संवेदनहीन होना है। कोई व्यक्ति विदेश घूमने, पढ़ाई करने या किसी अन्य कार्य से जाता है तो उसका एक अलग पक्ष हो सकता है। स्थिति यह भी है कि पढ़ें भारत में और सेवाएं विदेश में दें, तो भारत की शीघ्र प्रगति कैसे हो सकेगी? सरकार को ऐसा माहौल बनाना होगा कि भारतवासी स्वदेश में ही सेवा दे सकें, ताकि स्वदेश लौटने की भी मानसिकता बने और स्वदेशी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने में भारतीय प्रतिभा का योगदान हो सके।
बीएल शर्मा ‘अकिंचन’, उज्जैन।
बिगड़ते हालात
दक्षिणपूर्व यूरोप का देश ग्रीस इन दिनों जंगलों में फैली आग से सबसे ज्यादा परेशान दिख रहा है। उसके दो द्वीप रोड्स और कोर्फू में लगातार फैली आग के कारण वहां के निवासी और पर्यटक दोनों को हजारों की संख्या में निकालने का काम किया जा रहा है। यूनानी राष्ट्रपति ने कहा कि आग के कारण देश में व्याप्त असाधारण स्थितियों को देखते हुए सोमवार को प्रस्तावित राष्ट्रीय अवकाश रद्द कर दिया गया है।
ग्रीस का ये दोनों द्वीप पर्यटकों से सालों भर खचाखच भरा रहता है। मगर जलवायु परिवर्तन के कारण लगता है धरती का हर कोना अब प्रभावित होता जा रहा है। आपदा हमारे दरवाजे तक पहुंच चुकी है और हुक्मरान अभी भी 30 से 50 साल का समय सीमा तय कर रहे हैं, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को शून्य करने के लिए, जीवाश्म ऊर्जा के स्थान पर हरित ऊर्जा विकसित करने के लिए। मगर प्रकृति हमें अब शायद कुछ दिन का भी समय देने को तैयार नहीं है।
जंग बहादुर सिंह, गोलपहाड़ी, जमशेदपुर।
सेहत की खातिर
चिकित्सा विज्ञान की बदौलत अब इंसान की औसत आयु बढ़ी है। पहले कुछ बीमारियां लाइलाज थीं, पर अब ऐसा नहीं है। ऐसी बहुत कम बीमारियां बची हैं, जिनका इलाज संभव नहीं है। दूसरी तरफ कम आयु में मृत्यु का आंकड़ा पहले के मुकाबले बढ़ा है जो चिंता का विषय है। इनमें हृदय गति रुक जाने के कारण होने वाली मृत्यु ज्यादा है।
इसकी वजह है आज की हमारी जीवन शैली। हमने अपने जीवन को इतना जटिल बना लिया है जिसका पूरा भार हमारे दिल और दिमाग पर पड़ता है। असंतुलित, असमय खानपान, अधूरी नींद, तनाव, व्यसन आदि मुख्य कारण हैं। हमें चाहिए कि हम इन कारणों पर गौर करें और इनसे बचें।
विनय मोघे, चिंचवड़, पुणे।