जिन लोगों ने राजनीति के बारे में टीवी और सोशल मीडिया से नहीं, इतिहास की किताबें पढ़ कर जाना हो, वे जानते हैं कि राजनीतिक घटनाएं अचानक नहीं घटती हैं। यह बात खासतौर पर राजनीतिक हिंसा की घटनाओं के बारे में कही जा सकती है। पिछले सप्ताह हरियाणा के नूंह शहर में एक हिंदू धार्मिक यात्रा पर मुस्लमानों ने पथराव किया था, तो इसलिए कि उनको अंदेशा था कि इसकी अगुआई मोनू मानेसर नाम का एक ऐसा व्यक्ति कर रहा है, जिसके गोरक्षक दल ने कई मुस्लमानों को जान से मारा है। इस बजरंग दल के व्यक्ति को इतना विश्वास था कि उसको हमेशा सरकार से कवच मिलता रहेगा कि इसने यात्रा के एक दिन पहले सोशल मीडिया पर एलान कर दिया था कि अगुआई वही करेगा और जितने लोग साथ देना चाहते हैं, वे फलां जगह फलां समय पहुंच जाएं।
वह जानता होगा कि नूंह में मुसलमान आबादी ज्यादा है और जानता होगा कि ऐसी घोषणा के बाद मुसलिम समाज के लोग हिंसा के लिए तैयारी करना शुरू कर देंगे। हाल में राजस्थान के दो मुसलमान व्यक्तियों को उनकी गाड़ी में जिंदा जला दिया गया था और शक मोनू मानेसर के गोरक्षकों पर गया था, लेकिन किसी को न पकड़ा गया और न शासन ने गोरक्षकों को काबू में करने के लिए कोई कदम उठाए।
सो, जब विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल की यात्रा पहुंची नूंह के चौक पर, उस पर पथराव किया मुस्लमानों ने। हिंदू भी उस यात्रा में हथियारबंद थे, फिर तो दंगा शुरू होना ही था। हरियाणा सरकार के आला मंत्री और अधिकारियों से जब हिंसा काबू में नहीं आई तो गजेंद्र शेखावत जैसे केंद्र सरकार के आला मंत्री खुल कर कहने लगे कि ऐसी घटनाएं अन्य प्रदेशों में भी होती हैं सुनियोजित तरीके से और इनके पीछे जो लोग हैं उनको बख्शा नहीं जाएगा। हरियाणा के गृहमंत्री से जब टीवी पत्रकारों ने मोनू मानेसर के बारे में पूछा, तो उन्होंने कवच बन कर साफ कहा कि मोनू मानेसर जुलूस में नहीं था।
बेशक उस दिन यात्रा में नहीं था बजरंग दल का यह नेता, लेकिन हिंसा का माहौल बनाने में क्या उसका कोई हाथ नहीं था? क्या हिंदुओं और मुस्लमानों के बीच जो दरारें पैदा हुई हैं, वे अचानक पैदा हुई हैं? नहीं। पिछले दस सालों में उत्तर भारत में इन दरारों को राजनेताओं ने सोच-समझ पैदा किया है, कई तरह से।
इन्हें पैदा करने में इतने सफल हुए हैं संघ परिवार से जुड़े लोग कि जब चलती ट्रेन पर चेतन सिंह नाम के रेलवे सिपाही ने मुस्लमानों को चुन-चुन कर मारा, तो गवाहों के मुताबिक उसने मुस्लमानों के खिलाफ गालियां बकी थीं। चार में से तीन लोग, जो रेलवे सुरक्षा बल के इस जवान की गोलियों से मारे गए थे, मुसलमान थे। बाद में कहा गया कि चेतन की मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी। यह सच होता तो क्या उसके हाथों में बंदूक दी जाती?
चेतन जैसे कई लोग मिलते हैं आजकल भारत के शहरों-कस्बों में। मेरे अपने दोस्तों में पढ़े-लिखे लोग हैं, जो खुलके कहते हैं दिल्ली और मुंबई के आला जश्नों में कि उनको मुस्लमानों से सख्त नफरत है। ये ऐसे लोग हैं, जो दस साल पहले कभी इस तरह की बातें नहीं किया करते थे। नफरत के वर्तमान माहौल ने उनको नफरत करना सिखाया है और जब देखते हैं कि देश के बड़े-बड़े राजनेता भी मुस्लमानों के खिलाफ बातें करते हैं तो उनको प्रेरणा मिलती है।
मंदिर-मस्जिद के विवादों को भड़काने में भारतीय जनता पार्टी के कई मुख्यमंत्री शामिल हैं। हरियाणा के दंगों से कुछ दिन पहले योगी आदित्यनाथ ने टीवी पर कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद को अगर मस्जिद कहा जाएगा तो विवाद होगा। और अच्छा होगा अगर मुसलिम समाज इस मस्जिद को हिंदुओं को लौटा दे, यह स्वीकार करके कि उनके पूर्वजों से ऐतिहासिक गलती हुई थी।
मेरा मानना है कि काशी और मथुरा में जो विवादित मस्जिदें हैं, वे बनी हैं हिंदू मंदिरों को तोड़ कर और इनकी जगह फिर से मंदिर बन जाने चाहिए। लेकिन इस काम को किया जा सकता है, बिना नफरत फैलाए, बिना मुस्लमानों की आस्था को चोट पहुंचाए। यह कैसे होगा, अगर राजनेता इस तरह की बातें करते फिरेंगे? इनका साथ पूरी तरह दे रहे है हम मीडिया वाले।
मैं हैरान रह गई थी जब टीवी के एक प्रसिद्ध एंकर से सीमा हैदर को पाकिस्तान वापस भेजने की बात सुनी। वह बदकिस्मत औरत हिंदू बन गई है एक हिंदू आदमी से प्यार में और इस बात को उसने टीवी पर कई बार स्पष्ट किया है, सो अगर उसको पाकिस्तान वापस भेजा जाता है अपने चार छोटे बच्चों के साथ, तो उसकी जान को खतरा है। मगर उस पर जासूसी का आरोप मीडिया वाले लगा रहे हैं, ऐसे जैसे कि खुफिया संस्थाओं के जासूस हों, पत्रकार नहीं। जासूसी करने आई होती सीमा तो क्या खुलके टीवी पर अपनी कहानी बताती? छुपके न रहती?
दस साल पहले आई होती भारत अपने प्रेमी के साथ शादी करने, तो उसका स्वागत होता। आज के भारत में, लेकिन माहौल मुस्लमानों के लिए इतना बिगड़ गया है कि भारतीय मुसलमान होना ही गुनाह माना जाता है। तो क्या इस माहौल को जानबूझ कर पैदा किया है भारतीय जनता पार्टी और संघ परिवार वालों ने अगले लोकसभा चुनाव को ध्यान में रख कर? ऐसा लगता तो है, लेकिन जो लोग ऐसा कर रहे हैं, वे जानते नहीं हैं कि नफरत और दंगे जिस देश में फैलते हैं उस देश से निवेशक भाग जाते हैं। क्या जानते नहीं हैं कि देश को कितना नुकसान होगा?