दिल्ली पुलिस ने बुधवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि दिल्ली दंगे के आरोपी शरजील इमाम के भाषणों के लिए अन्य आरोपियों को उत्तरदायी ठहराया जा सकता है और उनके खिलाफ सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है। दिल्ली पुलिस की ओर से पेश अतिरिक्त सालिसिटर जनरल (एएसजी) एसवी राजू ने न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति एनवी अंजारिया की बेंच के समक्ष यह दलील दी कि किसी भी साजिश में शामिल सभी लोग एक-दूसरे के कृत्यों के लिए उत्तरदायी हैं।

‘जानबूझकर दंगों से पहले दिल्ली छोड़ने की योजना’

राजू ने बेंच को बताया, ‘एक षड्यंत्रकारी के कृत्यों का आरोप दूसरों पर लगाया जा सकता है। शरजील इमाम के भाषणों का आरोप उमर खालिद पर लगाया जा सकता है। शरजील इमाम के मामले को दूसरों के खिलाफ सबूत के तौर पर माना जाएगा।’ एएसजी ने दलील दी कि खालिद ने जानबूझकर दंगों से पहले दिल्ली छोड़ने की योजना बनाई थी, क्योंकि वह जिम्मेदारी से बचना चाहता था। राजू ने कहा कि योजना खालिद ने बनाई थी और यह गलत बताया गया है कि वह दंगों से कथित रूप से संबंधित ‘वाट्सऐप’ समूह का ‘एडमिन’ नहीं था।

शीर्ष अदालत ने सभी वकीलों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया और उन्हें 18 दिसंबर तक लिखित दलीलें, चार्ट व अन्य दस्तावेज पेश करने का निर्देश दिया। मामले में जमानत की गुहार लगाते हुए, इमाम ने न्यायालय के समक्ष इस बात पर आक्रोश व्यक्त किया था कि बिना किसी पूर्ण सुनवाई या एक भी दोषसिद्धि के उसे खतरनाक बौद्धिक आतंकवादी करार दिया गया है।

इमाम का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने अपने मुवक्किल के हवाले से कहा कि मुझे पुलिस ने आतंकवादी करार दिया है। मैं राष्ट्र-द्रोही नहीं हूं, जैसा कि राज्य ने मुझे कहा है। मैं इस देश का नागरिक हूं, जन्म से नागरिक हूं और अब तक मुझे किसी भी अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया गया है। उन्होंने दलील दी कि इमाम को 28 जनवरी 2020 को गिरफ्तार किया गया था, जो उत्तर-पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक हिंसा से पहले का समय था, और केवल उसके भाषणों के आधार पर दंगों के मामले में आपराधिक साजिश का अपराध नहीं बनता है।

खालिद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि जब फरवरी 2020 में दंगे भड़के थे, तब उनका मुवक्किल दिल्ली में नहीं था और उसे इस तरह कैद में नहीं रखा जा सकता। गुलफिशा फातिमा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने अदालत को बताया कि कार्यकर्ता ने लगभग छह साल का समय कारावास में बिताया है।

‘दिल्ली दंगे में मेरी कोई भूमिका नहीं’

शरजील इमाम ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट से फरवरी 2020 के दिल्ली दंगों के एक मामले में जमानत देने की अपील करते हुए कहा था कि वह न तो हिंसा में शामिल था और न ही उसकी इसमें कोई भूमिका थी। वह लगभग छह साल से विचाराधीन कैदी के रूप में जेल में है। शरजील के वकील ने न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति एन वी अंजारिया की बेंच को बताया कि अभियोजन पक्ष ने उसके खिलाफ शीर्ष अदालत के समक्ष केवल एक ही बात रखी है, वह है उसके द्वारा दिए गए कथित ‘भड़काऊ भाषण’। शरजील के वकील सिद्धार्थ दवे ने कहा कि भाषणों में इस्तेमाल किए गए कुछ शब्द ‘अरूचिकर’ थे।

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