पीएमओ के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार (PSA) के विजय राघवन की हेल्थ सेक्टर में काफी अच्छी पकड़ है। (उन्होंने साल 2017 में गुजरात ग्लोबल समिट में 9 नोबेल विजेता वैज्ञानिकों को जुटाकर पीएम मोदी को प्रभावित भी किया था)। हालांकि के विजय राघवन एक मॉलिक्यूलर बायोलॉजिस्ट हैं और कोई डॉक्टर या वायरोलॉजिस्ट नहीं हैं, इसके बावजूद वह इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) और अन्य हेल्थ अथॉरिटीज पर दबदबा बनाए हुए हैं।

के विजय राघवन की सलाह पर ही कोरोना के इलाज में HCQ दवाई का इस्तेमाल शुरू किया गया था। राघवन को यह भी लगता था कि आईसीएमआर को प्रेरित कर 15 अगस्त से पहले कोरोना की वैक्सीन लायी जाए। हालांकि यह संभव नहीं था। हाल ही में राघवन ने इजरायल से आयी 20 विशेषज्ञों की टीम को दिल्ली के अस्पतालों से कोरोना मरीजों के लार के सैंपल लेने की अनुमति दी है, जिसके लिए उन्होंने आईसीएमआर से कोई चर्चा भी नहीं की है। हालांकि राघवन ने डीआरडीओ से इसकी इजाजत ली थी लेकिन इस काम के लिए डीआरडीओ सही अथॉरिटी नहीं है। बताया जा रहा है कि मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार के विजय राघवन और आईसीएमआर के बीच संबंध मधुर नहीं हैं।

बता दें कि के विजय राघवन की गिनती देश के टॉप बायोलॉजिस्ट में होती है और उन्हें इसी साल मार्च में मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार के पद पर नियुक्ति दी गई थी। के विजय राघवन ने न्यूक्लियर फिजिसिस्ट आर.चिदंबरम की जगह ली थी। इससे पहले राघवन डिपार्टमेंट ऑफ बायोलॉजी के सचिव भी रह चुके हैं। मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार पद अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा साल 1999 में शुरू किया गया था। सरकार की विज्ञान संबंधी पॉलिसी पर PSA सलाह देते हैं।

वहीं दिल्ली में इस तरह की चर्चाएं थी कि अमित शाह को गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल से दिल्ली स्थित एम्स शिफ्ट किया जा सकता है। अमित शाह द्वारा कोरोना के इलाज के लिए मेदांता में भर्ती होने के पीछे सरकारी अस्पताल में विश्वास की कमी नहीं है बल्कि असल चिंता मेडिकल जानकारी लीक होने की है।

दरअसल इससे पहले भी एम्स में भर्ती वीआईपी मरीजों की मेडिकल जानकारी लीक हो चुकी है। इनमें पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली को कैंसर होने की जानकारी लीक होना भी शामिल है। बहरहाल अमित शाह अस्पताल के बिस्तर से भी काम कर रहे हैं और सुबह फाइलों पर साइन करने के बाद आराम करते हैं।