अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान अपने भाषण में पीएम नरेंद्र मोदी ने विपक्षी दलों पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने अपने निशाने पर खास तौर पर अधीर रंजन चौधरी को रखा। तंज कसते हुए पीएम का कहना था कि अधीर को उनकी ही पार्टी ने बोलने नहीं दिया। कहीं कलकत्ता से कांग्रेस हाईकमान को फोन तो नहीं आ गय़ा था। मोदी का इशारा तृणमूल चीफ और प. बंगाल की सीएम ममता बनर्जी की तरफ था।

पीएम ने संसद में लाए गए अविश्वास प्रस्तावों और उनमें नेता प्रतिपक्ष की भूमिका का जिक्र किया। उनका कहना था कि 1999 में अटल विहारी वाजपेयी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था। उस दौरान शरद पवार नेता विपक्ष थे। उन्होंने शानदार तरीके से अपनी बात को रखा था। शरद पवार ने अपनी भूमिका को बखूबी निभाया और सरकार की तीखी आलोचना की।

2003 के अविश्वास प्रस्ताव का जिक्र कर की सोनिया की तारीफ

पीएम ने 2003 के अविश्वास प्रस्ताव का जिक्र कर कहा कि उस दौरान भी अटल जी की सरकार थी। सोनिया गांधी विपक्ष की नेता थीं। सोनिया गांधी ने भी अपनी भूमिका से न्याय किया और सरकार के खिलाफ तीखे लहजे में अपनी बात रखीं। सोनिया का रवैया सराहनीय था। उसके बाद मोदी ने 2018 के अविश्वास प्रस्ताव का जिक्र कर तत्कालीन नेता विपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे की भूमिका को भी सराहा। पीएम का कहना था कि खड़गे जी ने अपनी भूमिका के साथ न्याय करते हुए हमारी सरकार के खिलाफ जोरदार तरीके से अपनी बात उस दौरान देश के सामने रखी थी।

उसके बाद मोदी ने एक के बाद एक उदाहरणों का जिक्र कर अधीर रंजन चौधरी की बखिया उधेड़ डाली। उनका कहना था कि अधीर को तो उनकी पार्टी ने ही बोलने का मौका नहीं दिया। उन्हें हैरत इस बात पर भी है कि वो कांग्रेस के वक्ताओं की लिस्ट में ही नहीं थे। अमित भाई ने बुधवार को अपने भाषण में इस बात का जिक्र किया था। पीएम का कहना था कि अध्यक्ष जी आपके कहने पर ही अधीर को बोलने का मौका मिला।

बोले- पांच साल में विपक्ष ने कुछ नहीं सीखा, कर दिया गुड़ का गोबर

फिर पीएम बोले कि अधीर रंजन को कांग्रेस ने बोलने का मौका नहीं दिया, इसके पीछे उनको ममता बनर्जी दिखाई देती हैं। ममता का नाम लिए बगैर उन्होंने तंज कसा कि कहीं कांग्रेस आलाकमान को कलकत्ता से ये फोन तो नहीं आ गया था कि अधीर को बोलने न दिया जाए। इस दौरान मोदी ने विपक्ष पर जमकर हमले किए। उनका कहना था कि पांच साल पहले भी ये लोग अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए थे। उस दौरान भी ये कुछ खास नहीं कर पाए। पांच साल बाद ये फिर से अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए लेकिन बगैर तैय़ारी के साथ। सारी डिबेट का गुड़ गोबर कर डाला।