प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को ऐलान किया कि भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा। यह घटनाक्रम मोदी सरकार द्वारा बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा के कुछ दिनों बाद आया है। इसे लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी का मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है।

लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न मिलना महत्वपूर्ण

96 वर्षीय भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी के साथ पीएम मोदी के कठिन संबंधों को देखते हुए उनके लिए भारत रत्न की घोषणा महत्वपूर्ण है। यह माना जाता है कि यह लालकृष्ण आडवाणी ही थे, जिन्होंने नरेंद्र मोदी को एक युवा आरएसएस कार्यकर्ता के रूप में आगे बढ़ाया और उन्हें भाजपा रैंक में ऊपर उठाया, जिससे उन्हें 2000 के दशक की शुरुआत में गुजरात का सीएम बनने में मदद मिली। यह भी कहा जाता है कि वह आडवाणी ही थे, जिन्होंने 2002 के गुजरात दंगों के बाद नरेंद्र मोदी की सीएम कुर्सी बचाई थी, जब तत्कालीन पीएम अटल बिहारी वाजपेयी उनसे नाराज थे।

हालांकि 2012 के बाद जैसे ही नरेंद्र मोदी ने खुद को राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी के प्रमुख चेहरे के रूप में उभरना शुरू किया, लाल कृष्ण आडवाणी ने असहजता दिखाई। सत्ता में आने के बाद लालकृष्ण आडवाणी को भाजपा के मार्गदर्शक मंडल में भेज दिया गया।

आडवाणी के लिए भारत रत्न की घोषणा इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के ठीक बाद हुई है। आडवाणी को व्यापक रूप से अयोध्या आंदोलन का एक प्रमुख वास्तुकार माना जाता है, जिसने भाजपा को आगे बढ़ाया। इस समय आडवाणी को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिए जाने से आगामी लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा के मंदिर के दावे को और बल मिलेगा।

राजनीतिक संदेश देने की कोशिश

पद्म और भारत रत्न पुरस्कार हमेशा किसी व्यक्ति के योगदान को मान्यता देने के अलावा राजनीतिक संदेश देने का एक तरीका रहे हैं। इसमें कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का मामला भी शामिल है। यह ऐसे समय में आया जब विपक्ष जाति जनगणना की अपनी मांग को इतना मजबूत मुद्दा बनाने की उम्मीद कर रहा है कि वह भाजपा के राम मंदिर निर्माण के बाद के हिंदुत्व के उत्साह का मुकाबला कर सके।

पीएम मोदी के सत्ता में आने के बाद से जिन अन्य पांच लोगों को भारत रत्न से सम्मानित किया गया उनमें शिक्षाविद् और स्वतंत्रता सेनानी और एक बार कांग्रेस अध्यक्ष रहे मदन मोहन मालवीय शामिल हैं। साथ ही पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई, पूर्व राष्ट्रपति और कांग्रेस नेता प्रणब मुखर्जी, असमिया गायक और संगीतकार भूपेन हजारिका और आरएसएस नेता नानाजी देशमुख शामिल हैं। मोदी सरकार के गठन के एक साल के भीतर 2015 में मदन मोहन मालवीय और अटल बिहारी वाजपेयी को सम्मान मिला।

मदन मोहन मालवीय कांग्रेस का हिस्सा थे और चार कार्यकाल तक इसके अध्यक्ष रहे। उन्हें संघ परिवार ने हमेशा अपनी विचारधारा के करीब माना है। मालवीय अखिल भारतीय हिंदू महासभा (1906) और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक भी थे। उन्होंने 1919 से 1938 तक विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में कार्य किया। भारत रत्न संघ के इस दृष्टिकोण का प्रतीक था कि मालवीय इसके तहत उनका हक नहीं मिला।

वहीं अटल बिहारी वाजपेयी भाजपा के दिग्गज नेता थे, जिनके सभी दलों में मित्र थे और उनका संसदीय करियर चार दशकों से अधिक समय तक चला, जिसमें लोकसभा में नौ कार्यकाल और राज्यसभा में दो कार्यकाल शामिल थे। 1977-79 की जनता पार्टी सरकार में उन्होंने विदेश मंत्री के रूप में कार्य किया था और 1994 में पी वी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के तहत उन्हें ‘सर्वश्रेष्ठ सांसद’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

2019 में मोदी सरकार ने कांग्रेस के सबसे पुराने दिग्गजों में से एक प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न के लिए चुना। यह पुरस्कार प्रणव मुखर्जी को नागपुर में आरएसएस मुख्यालय में एक कार्यक्रम में शामिल होने के ठीक एक साल बाद मिला था।