उचित समय और उचित स्थान पर उचित कार्य करने की कला को नीति कहते हैं। नीति, सोच समझकर तैयार किए गए सिद्धांतों की प्रणाली है जो उचित निर्णय लेने और वांछित परिणाम प्राप्त करने में सहायक होती है। जिस प्रकार, अपने व्यक्तिगत जीवन, घर-परिवार, रोजगार-व्यवसाय आदि के सुचारु संचालन के लिए हम अपनी नीतियों के आधार पर कार्ययोजना बनाकर काम करते हैं, उसी प्रकार सरकारें भी अनेक स्तर पर तमाम नीतियां बनाती हैं और उसी के आधार पर कार्य करती हैं।

चूंकि सरकारों की नीतियां सार्वजनिक जीवन से संबंधित होती हैं और व्यापक स्तर पर प्रभाव डालती हैं, इसलिए ये सार्वजनिक नीतियां कहलाती हैं। लोकतांत्रिक कल्याणकारी राज्य वाली व्यवस्था में सरकार देश की सीमा के भीतर और बाहर तमाम क्षेत्रों में सक्रिय भूमिका अदा करती है और नीतियां बनाती है। इसमें मुख्य रूप से घरेलू, मानव संसाधन, ऊर्जा, मौद्रिक, आर्थिक, पर्यावरण, जनसंख्या, औद्योगिक, विदेश, विज्ञान, कृषि, विज्ञान, रक्षा, अंतरिक्ष, स्वास्थ्य, सूचना एवं प्रौद्योगिकी, यातायात, शिक्षा, जल आदि की नीतियां शामिल हैं।

कुछ दशकों पूर्व तक जब अधिकतम सेवाएं सरकारी या सरकार नियंत्रित हुआ करती थीं, तब नीति निर्धारण और नीति अनुपालन का कार्य मुख्य तौर पर प्रशासनिक अधिकारियों तक ही सीमित रहता था। बाद में निजी क्षेत्र की भूमिका बढ़ने पर प्रशिक्षित लोक नीति विशेषज्ञों की मांग बढ़ने लगी। 90 के दशक में हुए आर्थिक सुधारों और उदारवाद को आत्मसात करने के बाद पिछले कुछ सालों से सरकारी क्षेत्र की कंपनियों में भी विनिवेश को बढ़ावा दिया जाने लगा है। इससे नीति विशेषज्ञों, नीति विश्लेषकों, नीति मूल्यांकन विशेषज्ञों की मांग में जबरदस्त इजाफा हुआ है। विशेषज्ञों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अनेक शैक्षणिक संस्थानों ने लोक नीति (पब्लिक पालिसी) पाठ्यक्रम की शुरुआत की।

नौकरी के अवसर

आज लोक नीति विशेषज्ञ निजी, सरकारी, एनजीओ, मीडिया और तमाम राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से जुड़ कर विभिन्न स्तरों पर नीति-निर्माण में अपना योगदान दे रहे हैं। एक अनुमान के मुताबिक आने वाले समय में शहरी और ग्रामीण योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को बड़ी संख्या में लोक नीति विशेषज्ञों की जरूरत पड़ेगी।

आज कारपोरेट समूहों से लेकर स्टार्टअप्स तक में लोक नीति विशेषज्ञों को मौके मिल रहे हैं।ये विशेषज्ञ राजनीति, प्रबंधन, मीडिया, कानून सहित तमाम क्षेत्रों में किसी न किसी रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसके अलावा स्थानीय निकायों, बड़े उद्योगों, बैंकिंग क्षेत्र, रेलवे, रक्षा व निजी क्षेत्र से संबंधित संगठनों आदि में नौकरी के अवसर मिल सकते हैं।

ऐसे करें शुरुआत

इन दिनों देश के कई प्रतिष्ठित सरकारी और गैर सरकारी शिक्षण संस्थानों में लोक नीति का पूर्ण व अल्पकालीन पाठ्यक्रम संचालित किया जा रहा है। आमतौर पर इन पाठ्यक्रमों में दाखिले के लिए अभ्यर्थी का स्नातक होना आवश्यक होता है। कुछ संस्थान कार्य अनुभव रखने वाले अभ्यर्थियों को दाखिलों में तरजीह देते हैं। वैसे 12वीं के बाद तीन वर्षीय बीए (पब्लिक पालिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन) का विकल्प भी अब मौजूद है। यह पाठ्यक्रम नियमित और दूरस्थ दोनों माध्यमों में उपलब्ध है।

बारहवीं के बाद बीए (पब्लिक पालिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन) और स्नातक के बाद एमए (पब्लिक पालिसी एंड एडमिनिस्ट्रेशन) पाठ्यक्रम में दाखिला लिया जा सकता है। इन पाठ्यक्रमों में कई संस्थान जहां योग्यता के आधार पर दाखिला प्रदान करते हैं। वहीं, कुछ संस्थान प्रवेश परीक्षा के प्राप्तांकों को चयन का आधार बनाते हैं।

आवश्यक कौशल

लोक नीति विशेषज्ञ बनने के लिए समुचित शैक्षणिक योग्यता होने के साथ-साथ देश और समाज से संबंधित विभिन्न मुद्दों की अच्छी समझ, जनता की समस्याओं और चुनौतियों की जानकारी, सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक समस्याओं का समाधान ढूंढ़ने की ललक, मौजूदा नीतियों के प्रभावों, कमियों और चुनौतियों से अवगत, डेटा विश्लेषण, रचनात्मक और विश्लेषणात्मक सोच आदि की जरूरत पड़ती है।

प्रमुख संस्थान

दिल्ली विश्वविद्यालय के कई कालेज, प्रेसीडेंसी कालेज, लोयोला कालेज, सेंट जेवियर्स कालेज, मद्रास क्रिश्चियन कालेज, पेट्रोलियम व ऊर्जा अध्ययन विवि, इंडियन स्कूल आफ पब्लिक पालिसी, कौटिल्या स्कूल आफ पब्लिक पालिसी, मुंबई विवि, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विवि, महात्मा ज्योतिराव फुले विवि, जामिया मिल्लिया इस्लामिया, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, भारतीय लोक प्रशासन संस्थान आदि।

वेतनमान

लोक नीति विशेषज्ञों को शुरुआती तौर पर पर 2.50 लाख से 3.50 लाख रुपए सालाना वेतन की नौकरी मिल सकती है। अनुभव और विषय विशेषज्ञता हासिल होने के बाद आय की सीमा नहीं रह जाती है।

  • अविनाश चंद्र (लोक नीति मामलों के जानकार)