Supreme Court News: 2019 से तलाकशुदा दंपति द्वारा अपने ऑटिस्टिक बच्चे की कस्टडी के लिए लड़ी जा रही लड़ाई में गुरुवार को अचानक नया मोड़ आ गया। सुप्रीम कोर्ट ने कथित तौर पर बच्चे की तबीयत खराब होने के बाद उसके साथ रहने के लिए अमेरिका जाने के लिए पिता के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया। जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस पीके मिश्रा की बेंच ने एएसजी केएम नटराज से कड़े लहजे में सवाल करते हुए कहा कि पासपोर्ट और इस कोर्ट की इजाजत के बिना इस देश के बाहर जाने की इजाजत कैसे दी गई।
लड़के के पिता अमेरिका के ग्रीन कार्ड धारक हैं। सुप्रीम कोर्ट की बेंच इस बात से नाराज थी कि बच्चे का पिता सुप्रीम कोर्ट को बिना जानकारी दिए अमेरिका चला गया था, जहां बच्चे की कस्टडी सौंपने के बार-बार आदेश का पालन न करने के लिए पत्नी की शिकायत पर आरोप तय करने के बाद अवमानना की कार्यवाही शुरू की गई थी। पिता मनीष छोकर की तरफ से वरिष्ठ वकील विकास सिंह पेश हुए। उन्होंने बेंच को तर्क देने की कोशिश की कि मां भी भारत में है, इसलिए यह डर जायज है कि सीपीएस बच्चे को त्यागने का मामला मानकर उसे पालन-पोषण के लिए रख लेंगी, लेकिन इसका कोई फायदा नहीं हुआ।
कोर्ट ने वकील से किया सवाल
कोर्ट ने वकील से सवाल करते हुए कहा, ‘प्रतिवादी को पासपोर्ट और इस कोर्ट की इजाजत के बिना इस देश को छोड़ने की अनुमति कैसे दी गई। गृह मंत्रालय, भारत सरकार की मदद से वह इस न्यायालय को यह भी पूछताछ और अवगत करा सकते हैं कि देश से भागने में प्रतिवादी की मदद किसने की और इसमें कौन अधिकारी और अन्य व्यक्ति शामिल हैं।’
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क्या था पूरा मामला?
इस जोड़े की शादी फरवरी 2006 में हुई थी और बाद में वे अमेरिका चले गए। हालांकि, इस जोड़े के बीच वैवाहिक मतभेद थे और पति ने 9 सितंबर 2017 को मिशिगन, यूएसए के ओकलैंड फैमिली डिवीजन काउंटी के सर्किट कोर्ट से तलाक का आदेश हासिल कर लिया। महिला ने भारत में भी छोकर के खिलाफ कई कार्यवाही शुरू की थी, लेकिन बहुत बाद में 21 अक्टूबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के सामने दोनों पक्षों के बीच समझौता हो गया। समझौते का एक आधार यह था कि वह बच्चे की कस्टडी मां को देगा। जब ऐसा नहीं किया गया तो उन्होंने छोकर के खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्यवाही शुरू की। सुप्रीम कोर्ट ने 9 सितंबर 2024 को उनके खिलाफ आरोप तय किए।
कई बार मामले को सुलझाने की कोशिश की गई
बेंच ने कहा कि इस मामले पर कोर्ट के पिछले आदेश से पता चलता है कि मामले को सुलझाने की कई कोशिश की गई थी, क्योंकि यह बच्चे की कस्टडी का मामला था। यहां पर इस कोर्ट ने पिता को रियायत देने में अपनी सारी हदें पार कर दीं। इस उम्मीद में कि वह बच्चे को उसकी मां को सौंप देगा और अपने समझौते की शर्तों का सम्मान करेगा, लेकिन फिर भी उसने ऐसा नहीं किया। कोर्ट ने कहा कि इस मामले की पिछली सुनवाई को कथित तौर पर कोर्ट में मौजूद नहीं था। यह इस आदेश का उल्लंघन है। बेटियों के हक पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला पढ़ें पूरी खबर…